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'प्रगति की चाहतों ने.. ' मानव ने कहीं आग, कहीं बा

'प्रगति की चाहतों ने.. '

मानव ने कहीं आग, कहीं बारूद जोड़ा है..
गम हर लेनेवाली.. हवाओं को मोड़ा है,
अभिलाषायें अनंत होनी जरुरी तो नहीं..
प्रगति की चाहतों ने.. प्रकृति को तोड़ा है!

भूल गया की जीवन.. थोड़े में थोड़ा है,
अनजाने में अपने आनंद को मरोड़ा है..
भूल को फिर दोहराना जरुरी तो नहीं..
प्रगति की चाहतों ने.. प्रकृति को निचोड़ा है!

क्या एक दिन, एक पेड़ लगाना काफी है?
उतना तो वापस करो.. जितना झिंझोड़ा है,
हर बार बचकर निकलना जरूरी तो नहीं..
प्रगति की चाहतों ने.. प्रकृति को छोड़ा है।

©Anand Dadhich #प्रगति #प्रकृति #kaviananddadhich #poetananddadhich #hindipoetry #eveningthoughts

#MoonBehindTree
'प्रगति की चाहतों ने.. '

मानव ने कहीं आग, कहीं बारूद जोड़ा है..
गम हर लेनेवाली.. हवाओं को मोड़ा है,
अभिलाषायें अनंत होनी जरुरी तो नहीं..
प्रगति की चाहतों ने.. प्रकृति को तोड़ा है!

भूल गया की जीवन.. थोड़े में थोड़ा है,
अनजाने में अपने आनंद को मरोड़ा है..
भूल को फिर दोहराना जरुरी तो नहीं..
प्रगति की चाहतों ने.. प्रकृति को निचोड़ा है!

क्या एक दिन, एक पेड़ लगाना काफी है?
उतना तो वापस करो.. जितना झिंझोड़ा है,
हर बार बचकर निकलना जरूरी तो नहीं..
प्रगति की चाहतों ने.. प्रकृति को छोड़ा है।

©Anand Dadhich #प्रगति #प्रकृति #kaviananddadhich #poetananddadhich #hindipoetry #eveningthoughts

#MoonBehindTree