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हमने इश्क़ किया,बंद कमरों में फ़िजिक्स पढ़ते हुए,

हमने इश्क़ किया,बंद कमरों में
फ़िजिक्स पढ़ते हुए, ऊंची छतों पर बैठकर
तारे देखते हुए, रोटियां सेक रही मां के सामने बैठकर चपर-चपर खाते हुए
हमने नहीं रखी
बटुए में तस्वीरें, किताबों में गुलाब, अलमारियों में चिट्ठियां
हमारे कस्बे में नहीं थे
सिनेमाहॉल, पार्क और पब्लिक लाइब्रेरी हम तय करके नहीं मिले,
हमने इश्क़ किया
जिसमें सब कुछ अनिश्चित था, कहीं अचानक टकरा जाना सड़क पर
और हफ़्तों तक न दिखना भी,
और उन लड़कियों से किया इश्क़ हमने
जिन्हें तमीज़ नहीं थी प्यार की, जिनके सुसंस्कृत घरों की
चहारदीवारी में नहीं सिखाई जाती थी प्यार की तहज़ीब
हमने उनसे किया इश्क़
जिन्हें हमेशा जल्दी रहती थी,किताबें बदलकर लौट जाने की,
मुस्कुराकर चेहरा छिपाने की,
मंदिर के कोनों में,अपने हिस्से का चुंबन लेकर,वापस दौड़ जाने की
ऊनकी भाभियां
उकसाती, समझाती रहती थीं उन्हें,मगर वे साथ लाती थीं सदा
गैस पर रखे हुए दूध का, छोटे भाई के साथ का या घर आई मौसी का ताज़ा बहाना,
 जल्दी लौट जाने का
हमने डरपोक, समझदार, सुशील, आज्ञाकारी लड़कियों से इश्क़ किया
जो ट्रेन की आवाज़ सुनकर भी काट देती थीं फ़ोन,
छूने पर कांप जाया करती थीं,
देखने वालों के आने पर, सजकर बैठ जाती थी छुइमुइयां बनकर
कपड़ों के न उघड़ने का ख़्याल रखते हुए,सारी रात सोने वाली
महीने के कुछ दिनों में, अकारण चिड़चिड़ी हो जाने वाली,
अंगूठी, कंगन, बालियों, और गुस्सैल पिताओं से बहुत प्यार करने वाली
सच्चरित्र लड़कियों से किया हमने प्यार
जो किसी सोमवार, मंगलवार या शुक्रवार की सुबह
अचानक विदा हो गईं, सजी हुई कारों में बैठकर,
उसी रात उन्होंने फूंका
बहुत समर्पण, बेसब्री और उन्माद से अपना सहेजकर रखा हुआ कुंवारापन
चुटकी भर लाल पाउडर,और भरे हुए बटुए में
अपनी तस्वीर लगवाने के लिए बिकीं, करवाचौथ वाली सादी लड़कियों से
ऐसा किया हमने इश्क़
कि चांद, तारों, आसमान को बकते रहे रातभर गालियां
खोए सब उन घरों के संस्कार, गुलाबों में घोलकर पी शराब,
मांओं से की बदतमीज़ी, होते रहे बर्बाद बेहिसाब।

🌼

©एक अजनबी #हमने_इश्क_किया #कृपया_पूरी_पढ़े 🙏🏻
#बहुत_मेहनत_लगी_है। 


हमने इश्क़ किया,बंद कमरों में
फ़िजिक्स पढ़ते हुए, ऊंची छतों पर बैठकर
तारे देखते हुए, रोटियां सेक रही मां के सामने बैठकर चपर-चपर खाते हुए
हमने नहीं रखी

#हमने_इश्क_किया #कृपया_पूरी_पढ़े 🙏🏻 बहुत_मेहनत_लगी_है। हमने इश्क़ किया,बंद कमरों में फ़िजिक्स पढ़ते हुए, ऊंची छतों पर बैठकर तारे देखते हुए, रोटियां सेक रही मां के सामने बैठकर चपर-चपर खाते हुए हमने नहीं रखी

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