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एक अजनबी

#एक_स्त्री_और_पुरुष #कृपया_पूरी_पढ़े 🙏🏻 *एक पुरुष और स्त्री के आपसी संबंधों की परिणति, सिर्फ देह ही तो नहीं हो सकती। क्या एक स्त्री और पुरुष किसी और तरह नहीं बँध सकते आपस में ? और बँधें ही क्यों ? उन्मुक्त भी तो रह सकते हैं, समाज के बने बनाए एक ही #Society

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एक पुरुष और स्त्री के आपसी संबंधों की परिणति,
सिर्फ देह ही तो नहीं हो सकती।
क्या एक स्त्री और पुरुष किसी और तरह नहीं बँध सकते आपस में ?
और बँधें ही क्यों ?
उन्मुक्त भी तो रह सकते हैं, समाज के बने बनाए एक ही
तरह के खाके से जिसमें सदियों पुरानी एक सड़ांध सी है।

एक स्त्री और पुरुष
बौध्दिकता के स्तर पर भी एक हो सकते हैं
उपन्यास, कविताएँ, कहानियों, ग़ज़लों पर विमर्श करना
कहानियों की पौध रोपना क्या दैहिक सम्बन्धों की परिभाषाएँ लाँघता है ?

एक स्त्री और पुरुष-घण्टों बातें कर सकते हैं
 फूल के रंगों के बारे में, तितलियों के पंखों के बारे में,
समुद्र के दूधिया किनारों के बारे में,  और
ढलती शाम के सतरंगी आसमानों के बारे में, 
पत्तों पर थिरकती, बारिश की सुरलहरियों के बारे में;
इनमें तो कहीं भी देह की महक नहीं, दूर - दूर तक नहीं।
फिर दायरे, वही दायरे बाँध देते हैं दोनों को।

एक स्त्री और पुरुष- आपस में बाँट सकते हैं - 
एक दूसरे का दुःख, ठोकरों से मिला अनुभव,
कितनी ही गाँठें सुलझा सकते हैं, साथ में मन की।
मगर, नहीं कर पाते, ......क्योंकि
दोनों को कहीं न कहीं रोक देता है, उनका स्त्री और पुरुष होना।

एक स्त्री और पुरुष - के आपसी सानिध्य की उत्कंठा - की दूसरी धुरी..
आवश्यक तो नहीं कि दैहिक खोज ही हो;
मन के खाली कोठरों को सुन्दर विचारों से भरने में भी
सहभागी हो सकते हैं - स्त्री और पुरुष।
यूँ भी तो हो सकता है कि - उनके बीच कुछ ऐसा पनपने को
उद्वेलित हो, जो देह से परे हो,
प्रेम की पूर्व गढ़ित परिभाषाओं से भी अछूता हो,
 क्यों न दें इस नई परिभाषा को?
स्त्री और पुरुष के बीच।

©एक अजनबी #एक_स्त्री_और_पुरुष #कृपया_पूरी_पढ़े 🙏🏻


*एक पुरुष और स्त्री के आपसी संबंधों की परिणति,
सिर्फ देह ही तो नहीं हो सकती।
क्या एक स्त्री और पुरुष किसी और तरह नहीं बँध सकते आपस में ?
और बँधें ही क्यों ?
उन्मुक्त भी तो रह सकते हैं, समाज के बने बनाए एक ही

एक अजनबी

#हमने_इश्क_किया #कृपया_पूरी_पढ़े 🙏🏻 बहुत_मेहनत_लगी_है। हमने इश्क़ किया,बंद कमरों में फ़िजिक्स पढ़ते हुए, ऊंची छतों पर बैठकर तारे देखते हुए, रोटियां सेक रही मां के सामने बैठकर चपर-चपर खाते हुए हमने नहीं रखी

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