वो बहता लहू, थमती साँसे और पुकारती चीखें जिनमें नि

वो बहता लहू, थमती साँसे
और पुकारती चीखें
जिनमें निकलते प्राण
पर हाथ में तिरँगा 
यह एहसास
 मैं जता नही सकता
 शहादतों से वतन महफूज़ है सैनिक
आपका होना क्या है, कुछ लफ़्ज़ों में


मैं बता नही सकता

©कृतान्त अनन्त नीरज...
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