मैं भी कविता हूं """""""""""""""" मैं प्रमोद हूं, मैं भी कविता हूं। शब्दों में घुलकर रोलाता हूं, शब्दों के जादू से हंसाता हूं, कभी शब्दों के संग मिलकर, प्रेरणा स्त्रोत बन जाता हूं। गरिमामय शब्दों को खुद में पिरोकर, कवितामय इतिहास बन जाता हूं। कुछ में हंसी का फौव्वारा, कुछ में निर्मम हत्यारा, कहीं देश भक्ति समाहित है मुझमें, संस्कृति और साहित्य है मुझमें। मैं भी एक विलक्षण कविता हूं, राष्ट,राजनीति, धर्म और जातिवाद का जहर घोलकर, मैं शब्दों में पिता हूं। मैं प्रमोद हूं, मैं भी कविता हूं।। ००००००००००००००००० प्रमोद मालाकार कि कलम से 22.10.23 ©pramod malakar #मैं भी कविता हूं।