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मुक्तक: प्रेम ही कलकल विकल रहता ह

                मुक्तक: प्रेम ही कलकल

विकल रहता हृदय मेरा, तुम्हारी  याद मे हर पल।
तुम्हें ही ढूंढता है मन, कहीं पर हो अगर हलचल।
रहूं मैं  भीड़  में  चाहे,  रहूं  या  फिर  अकेला  मैं।
रगों में  बह  रहा मेरे,  तुम्हारा  प्रेम ही  कलकल॥

Dinesh Pandey

©दिनेश कुशभुवनपुरी
  #Mulaayam #मुक्तक #प्रेम_ही_कलकल  Anshu writer Babli Gurjar }{}{ PREET }{}{ विवेक ठाकुर "शाद" MƳ ƊŘĚÃM ÌŞ MŶ ŁÎFÉ  ANOOP PANDEY कवि आलोक मिश्र "दीपक" gungun gusain Lalit shrivastava sabdvanshi Suhana parvin  सूर्यप्रताप सिंह चौहान (स्वतंत्र) करन सिंह परिहार Dheeraj Srivastava सुनील 'विचित्र' R K Mishra " सूर्य "