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बहुत रो लिए अब सम्भलकर के देखते हैं। खुद के लिए खु

बहुत रो लिए अब सम्भलकर के देखते हैं।
खुद के लिए खुद को बदलकर के देखते हैं।

इतनी बेईमानी भी ठीक नहीं है इस उम्र में,
अब थोड़ा सा उस रब से डरकर के देखते हैं।

सुना है, आज भी हमें वो बहुत याद हैं करते,
तो कुछ दिन उसके शहर में ठहर के देखते हैं।

वो हमनवां मेरा आज भी उतना ही नेक है,
तो उसकी गलियों से गुजरकर के देखते हैं।

उनके 'गीत' ग़ज़ल सब बड़े चाव से हैं सुनते,
थोड़ा हम भी उन्हें आज सुनकर के देखते हैं।

©Sneha Agarwal 'Geet'
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