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किसने यह उपजाए सोचो,भांति-भांति के रोग। विविध रसाय

किसने यह उपजाए सोचो,भांति-भांति के रोग।
विविध रसायन से बनते हैं,घर-घर छप्पन भोग।।
मानव की प्रतिरोधक क्षमता बची कहां अब शेष?
इसीलिए तो असमय दुनिया छोड़ रहे हैं लोग।।

प्रदीप वैरागी

©साहित्य संजीवनी
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