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कोई समझता ही नहीं,मेरे अल्फाजों को, कोई पढ़ता ही न

कोई समझता ही नहीं,मेरे अल्फाजों को,
कोई पढ़ता ही नहीं,मेरे आँखों को।

फिलहाल, मैं भी बेचैन हूँ 
अपने दिल की बात करने को,

बैठा हूँ इंतजार में उनकी दरिया किनारे,
कायनात कृपा कर उन्हें हमसे मिलादे।

©Saurabh Kumar
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