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दीप बुझते हुए सब जलाने चले । बेवफ़ा को गले से लगाने

दीप बुझते हुए सब जलाने चले ।
बेवफ़ा को गले से लगाने चले ।।१

संग कितना रही राधिका कृष्ण के ।
छोड़कर राधिका देख जाने लगे ।।२

बात करते सभी हैं वफ़ा की मगर ।
आज कितने वफ़ा को निभाने चले ।।३

प्रेम इंसान से हो रहा दूर क्यों ।
स्वार्थ जो सब दिलों में बसाने लगे ।।४

प्रेम की इक अलग देख भाषा रही ।
अब वही जानवर सब सिखाने लगे ।।५

भूल जाना उसे तो न आसान था ।
याद आये नही खत जलाने लगे ।।६

आज होकर ज़ुदा जी रहा हूँ तो बस  ।
आस तुझसे मिलन की लगाने लगे ।।७

देखता आज रिश्तों की दहलीज हूँ ।
लोग रिश्ते सभी आजमाने लगे ।।८

आ गया तू प्रखर पापियों के नगर ।
पाप कर लोग गंगा नहाने लगे ।।९
२३/०९/२०२३    -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दीप बुझते हुए सब जलाने चले ।

बेवफ़ा को गले से लगाने चले ।।१


संग कितना रही राधिका कृष्ण के ।

छोड़कर राधिका देख जाने लगे ।।२
दीप बुझते हुए सब जलाने चले ।
बेवफ़ा को गले से लगाने चले ।।१

संग कितना रही राधिका कृष्ण के ।
छोड़कर राधिका देख जाने लगे ।।२

बात करते सभी हैं वफ़ा की मगर ।
आज कितने वफ़ा को निभाने चले ।।३

प्रेम इंसान से हो रहा दूर क्यों ।
स्वार्थ जो सब दिलों में बसाने लगे ।।४

प्रेम की इक अलग देख भाषा रही ।
अब वही जानवर सब सिखाने लगे ।।५

भूल जाना उसे तो न आसान था ।
याद आये नही खत जलाने लगे ।।६

आज होकर ज़ुदा जी रहा हूँ तो बस  ।
आस तुझसे मिलन की लगाने लगे ।।७

देखता आज रिश्तों की दहलीज हूँ ।
लोग रिश्ते सभी आजमाने लगे ।।८

आ गया तू प्रखर पापियों के नगर ।
पाप कर लोग गंगा नहाने लगे ।।९
२३/०९/२०२३    -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दीप बुझते हुए सब जलाने चले ।

बेवफ़ा को गले से लगाने चले ।।१


संग कितना रही राधिका कृष्ण के ।

छोड़कर राधिका देख जाने लगे ।।२

दीप बुझते हुए सब जलाने चले । बेवफ़ा को गले से लगाने चले ।।१ संग कितना रही राधिका कृष्ण के । छोड़कर राधिका देख जाने लगे ।।२ #शायरी