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घर के अंदर दीवारें खानों मे बटा संसार है अब कहाँ

 घर के अंदर दीवारें खानों मे बटा संसार है 
अब कहाँ वो पहले जैसा लोगों के दिलों मे प्यार है 

कौन करता है अब शिरकत पराये गम में यहाँ 
हर कोई मसरूफ है खुद में खुद मे ही बेकरार है 

वो खतो के दिन वो लहू से लिखी मोहब्बत 
अब कहाँ पेड़ की छांव तले किसी का इन्तज़ार हैं 

खुदगर्ज हो गए देखो लोग कितने यहाँ 
रिश्ते नाते दोस्त यार सब एक व्यापार है 

दुनियाँ सिमट कर कितनी छोटी हो गई है 
घर की मुंडेर पर चार दिये इतना ही त्योहार है 

बदल गई दुनियाँ बदल गया इंसान भी 
फिर भी न जाने क्यूँ मुझे उस का अभी तक इन्तज़ार है

©Ravikant Dushe
  #aaina  Parul (kiran)Yadav Sangeet... Neel vineetapanchal poonam atrey