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कब रुकता है।। पांव के छाले देखकर चलना कब रुकता है

कब रुकता है।।

पांव के छाले देखकर चलना कब रुकता है।
तम से घिरा ये जुगनू जलना कब रुकता है।।

तुम में मैं तुम मुझमे दोनों एक मे शामिल,
जो हाथों से छूटे हाथ बढ़ना कब रुकता है।

एक लहु है एक जमीं अम्बर एक है अपना,
रात से डर सूरज का चढ़ना कब रुकता है।

मेरा कंधा या तेरा कंधा है दोनों का अपना,
भार से डर पेड़ का फलना कब रुकता है।

एक कदम पे है मंज़िल पांव बढ़ा कर देख,
गहराई से डर बोलो झरना कब रुकता है।

अनन्त नही आयु तेरी काम नेक कर जा,
इक्षाओं से डर बोलो मरना कब रुकता है।

इस कागज़ पे सार तुम्हारा मैंने है लिख डाला,
किसी से डर कवि का कहना कब रुकता है।।

©रजनीश "स्वछंद" कब रुकता है।।

पांव के छाले देखकर चलना कब रुकता है।
तम से घिरा ये जुगनू जलना कब रुकता है।।

तुम में मैं तुम मुझमे दोनों एक मे शामिल,
जो हाथों से छूटे हाथ बढ़ना कब रुकता है।
कब रुकता है।।

पांव के छाले देखकर चलना कब रुकता है।
तम से घिरा ये जुगनू जलना कब रुकता है।।

तुम में मैं तुम मुझमे दोनों एक मे शामिल,
जो हाथों से छूटे हाथ बढ़ना कब रुकता है।

एक लहु है एक जमीं अम्बर एक है अपना,
रात से डर सूरज का चढ़ना कब रुकता है।

मेरा कंधा या तेरा कंधा है दोनों का अपना,
भार से डर पेड़ का फलना कब रुकता है।

एक कदम पे है मंज़िल पांव बढ़ा कर देख,
गहराई से डर बोलो झरना कब रुकता है।

अनन्त नही आयु तेरी काम नेक कर जा,
इक्षाओं से डर बोलो मरना कब रुकता है।

इस कागज़ पे सार तुम्हारा मैंने है लिख डाला,
किसी से डर कवि का कहना कब रुकता है।।

©रजनीश "स्वछंद" कब रुकता है।।

पांव के छाले देखकर चलना कब रुकता है।
तम से घिरा ये जुगनू जलना कब रुकता है।।

तुम में मैं तुम मुझमे दोनों एक मे शामिल,
जो हाथों से छूटे हाथ बढ़ना कब रुकता है।

कब रुकता है।। पांव के छाले देखकर चलना कब रुकता है। तम से घिरा ये जुगनू जलना कब रुकता है।। तुम में मैं तुम मुझमे दोनों एक मे शामिल, जो हाथों से छूटे हाथ बढ़ना कब रुकता है। #Poetry #Quotes #Life #kavita #hindikavita #hindipoetry