Nojoto: Largest Storytelling Platform

"बाढ़ का पानी" जैसे ही घटा घनघोर छाए, पानी का सैला

"बाढ़ का पानी"
जैसे ही घटा घनघोर छाए,
पानी का सैलाब उमड़ता ही जाए।
धरती का कटाव बढ़ता जाए,
मायूसी चारों ओर छाए।
पानी का शोर बढ़ता ही जाए,
रास्ता  कहीं न नज़र आए।
खेत खलिहान सारे डूबते जाए,
सपने सारे टूटते जाए।
जान पर आफ़त बन जाए,
आंखों के सामने अपने बिछड़ते जाए।
प्रकृति ने अजब खेल दिखाए,
हौंसले सारे जवाब दे जाए।
नदी नालों ने रौद्र रूप दिखाए।
पानी घरों में घुसता ही जाए,
मलबे में सब डूबते ही जाए।
अपनों से बिछड़ने का दर्द सताए।
कल की नहीं आज की चिंता सताए,
पर इस मन को कौन समझाए।
बीमारियां अपने साथ लाए,
ईलाज के अभाव में कोई न बच पाए।
चारों ओर पानी ही पानी नजर आए,
दिल की धड़कनें बढ़ती जाए।
चीख पुकार निकलती जाए,
हे ईश्वर रहम हमपर किया जाए।
बस करूं यही पुकार
किसी मां की गोद सूनी न हो जाए,
माना हमने मानव ने
 प्रकृति के साथ खिलवाड़ किए,
अब तो फ़रियाद सुनो हमारी
इस पानी ने कितनों के घर उजाड़ दिए।

©Shishpal Chauhan
  #बाढ़ का पानी

#बाढ़ का पानी #कविता

27 Views