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अंधेरी रात है जाने किधर खड़ा हूं मैं मेरी आदत

  अंधेरी रात है जाने किधर खड़ा हूं मैं
  मेरी आदत है नींद में ही चल पड़ा हूं मैं
 
  मुझे आवाज दे रहा था कोई ख्वाबों में
   मुझे खुद भी पता न  किसको ढूंढता हूं मैं
 
   ना कोई चांद है तारे भी छुप गए सारे
   मगर क्यों उसके जुस्तजू में  ही अड़ा हूं मैं

   कोशिशें कर के थक गए न बदलती आदत,
   मुझे खुद भी पता न किस डगर बढ़ा हूं मैं

  काश राहों मेरे  इक चिराग जल जाए
  जीत होगी अंधेरे से बहुत लड़ा हूं मैं

©Sunil Kumar Maurya Bekhud
  # नींद में चलना

# नींद में चलना #शायरी

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