ये समा बड़ा बेगाना है कुछ मज़ा रहा ना जीने में कुछ कसक भरी है जो दिल में अब मजा रहा ना पीने में भीनी भीनी सी महक उठी ना वास रही पसीने में क्या समझेगा कोई यहां क्या राज छुपे हैं सीने में! मन्दिर में ईश्वर मिलें नहीं ना मिले खुदा मस्जिदों में ना सत्यता है लोगों में ना चमक रही नगीने में! कुछ भय में जीवन काट रहे कुछ मारे गए हालातों से कुछ बेच चुके ईमान आज ना कर्म होय करीने में! बेटी को बेटी मानें नहीं समझें महज सामान उसे जो जख्म दिए हैं अपनों ने थोड़ा वक्त लगेगा सीने में! जरा बन जाओ इंसान ये वक्त नहीं फिर आएगा कुछ नेक करो काम आज कुछ पुण्य करो इस महीने में! वेद भारद्वाज #ज़िन्दगी #हकीकत #सच्चाई