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White साल बदलता गया, तारीखें बदली कभी युद्ध हुआ,

White साल बदलता गया, तारीखें बदली 
कभी युद्ध हुआ, कभी मोमबत्तियां पिघली
इन सबके बीच कुछ नहीं बदला तो
औरतों के अंदर का डर...

डर, अपने चरित्र को बचाने की
समाज में बराबर का ओहदा पाने की
खुदको सफल और संपन्न बनाने की

डर, इस बात की, कहीं कोई बात न हो जाए
घर – दफ्तर के बीच कहीं ज्यादा रात न हो जाए
एक गलत कदम और सब कुछ बर्बाद न हो जाए

डर कायम रहा...
लेकिन वो नारी है, इतनी जल्दी कहां हारी है
औरतें इतने पर रुकीं नहीं, वक्त के आगे झुकी नहीं
चलती गई, अपने सपने बुनती गई

साल बदलता गया, तारीखें बदली 
कभी युद्ध हुआ, कभी मोमबत्तियां पिघली
इन सबके बीच कुछ नहीं बदला तो
औरतों के अंदर का डर...

©shinning shristi
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