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स्त्री मन की व्यथा स्त्री के मन को समझना हर किसी

स्त्री मन की व्यथा 

स्त्री के मन को समझना हर किसी के बस की बात नही है ,
और एक स्त्री जितनी सहनशीलता ,संयम और धैर्य धरती के अलावा और किसी मे नही है ,
अक़्सर ये प्रश्न उठता है कि स्त्री आख़िर चाहती क्या है ,
धन दौलत ,रुपया पैसा और रुतबा 🤔,
मगर यहाँ आकर पुरुषों की सोच ठहर जाती है
 संसाधनों ,रुपया पैसा और शारीरिक जरूरतें ,
बस ये कयास लगाया जाता है कि स्त्री इन सबसे सन्तुष्ट हो जाती है,
मगर कोई उससे ये नही पूछता कि आख़िर तुम्हे चाहिए क्या,
उसका एक सरल सा जवाब है वक़्त ,
वो वक़्त जिसमें उसका सिर्फ़ उसका अस्तित्व हो ,वो वक़्त जिसमें उसकी भावनाएं  उसकी खुशियाँ हो ,वो जिसके पीछे अपना घर परिवार माता पिता और अपने सपनों को भी छोड़ आई थी ,
और साथ में हो एक प्रश्न  कि तुम ख़ुश तो हो तुम्हारी किसी भी जरूरत का पूर्ण दायित्व मुझ पर है ,वो जीवन साथी जिसके इर्द गिर्द उसकी पूरी दुनिया घूमती है ,उसकी सभी बातों को पूर्ण तल्लीनता के सुने बिना किसी अनर्गल टिप्पणी के ।
,एक स्त्री स्वयं को पूर्ण रूप से परिवार के लिए समर्पित कर देती है ,बिना किसी थकान ,बिना किसी अनावश्यक माँग के ,
थकान पर भी एक मुस्कान ओढ़ कर रखती है ,
परन्तु इतना सब करने के बाद जब उसे सुनने मिलता है कि तुम करती क्या हो तब वह अपने आप को शिथिल छोड़ देतीं है महज एक शरीर मानकर ,अस्तित्व हीन हो जाती है वो जब कोई उसे सुनने वाला नही मिलता ,या अनसुना कर दिया जाता है उसकी हर ज़रूरत को ,तब वह स्त्री स्त्री नही रह जाती बन जाती है महज़ एक हाड़ माँस का पुतला जिसमें ना भावनाएं हैं ना आत्मा ।।

पूनम आत्रेय

©poonam atrey
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