ग़ज़ल किसलिए है बेचारी किस्मत । कर्म के आगे हारी किस्मत ।।१ मैं न जानूँ इन रेखाओं को । मेरी तो महतारी किस्मत ।।२ नाम ऊँचा कल होगा मेरा । कर लूँ मैं अब दो धारी किस्मत ।।३ तू भाग्य भरोसे क्यों है बैठा । तेरी तो अभी कुँवारी किस्मत ।।४ वक्त के साथ चला जो भी है । उसकी नही है जुआरी किस्मत ।।५ अब गया मान देखो इस सच को । की अपनी तो दुखयारी किस्मत ।। ६ जो नहीं था अपने जीवन में । क्यों उस पर भी मतिमारी किस्मत ।।७ भूल जो हमने की बचपन में । अब उसका कर्ज उतारी किस्मत ।। ८ कुछ न अब याद प्रखर तुम करना । तुम पर है यह बलिहारी किस्मत ।।९ ३०/१०/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल किसलिए है बेचारी किस्मत । कर्म के आगे हारी किस्मत ।।१