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गुलामी के विचारों का‌ पिंजड़ा तोड़कर मन‌ स्वछंद पक

गुलामी के विचारों का‌ पिंजड़ा तोड़कर
मन‌ स्वछंद पक्षी कि तरह उड़ता है

दबी हुई इच्छाओं के पंखों को खोलकर
मंजिलों के नए आकाश को ये ढुंढता है

घुटन के बांधो को तोड़कर
नया समंदर यह ढूंढता है

खोखले समाज के बंधन को छोड़कर
एक नए समाज को यह खोजता है।

©Amit Sir KUMAR
  #BhaagChalo गुलामी के विचारों को तोड़कर....

#BhaagChalo गुलामी के विचारों को तोड़कर.... #शायरी

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