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थर-थर हाँथ कांपते उसके, मस्तक पर चिंतातुर रेखी।जरा

थर-थर हाँथ कांपते उसके, मस्तक पर चिंतातुर रेखी।जरा-मरा बूढ़ा वह जीभर, मिटा सका न प्रभु की लेखी।
                   ✍️शैलेन्द्र राजपूत

©HINDI SAHITYA SAGAR
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