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दूर बहुत दूर चले गए सब छोड़ कर मुझको तन्हा अकेला

दूर बहुत दूर चले गए सब 
छोड़ कर मुझको तन्हा अकेला 
मैं यहाँ से कहीं जा ना सका 
तन्हा अकेला यहीं पर पड़ा रहा 
इंतज़ार बस इंतज़ार कर रहा हूँ 
कोई आएगा फिर पास मेरे
मेरे छांव में बैठकर 
कुछ पल आराम फरमाएगा 
मेरे डालों से लिपटकर खेलेगा 
फल खाने को मुझ पर 
एकाद पत्थर फिर से फेंकेगा 
वो दिन बहुत जल्द फिर आएगा 
प्रकृति फिर से हरा भरा हो जाएगा

©Prabhat Kumar
  #प्रभात