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darpankanpuri2032
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Darpan Kanpuri

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Darpan Kanpuri

अपने  दोस्तों में  मेरा भी  शुमार  कर लो । 
मेरे  दिल पे  अपना  अख़्तियार  कर लो ।।
माना तुम्हें मुझसे नफ़रत है तो क्या हुआ ।
चलो  ! नफ़रत  मिला के  प्यार  कर  लो ।।

©Darpan Kanpuri #नफ़रत
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Darpan Kanpuri

मैं शायर नहीं हूं , 
किसी और शायर की कही हुई बात मैं बताऊंगा ।   
अन्दाज़ , अल्फ़ाज़ और ख़्यालात मैं उसके चुराऊंगा ‌,
लेकिन यकीं  कीजिए , वो ज़ख्म मेरा ही होगा , 
जो मैं आपको दिखाऊंगा ।।

©Darpan Kanpuri #ज़ख़्म
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Darpan Kanpuri

“एक प्रतिक्रियावादी इन्सान , जिसने साम्राज्यवादी ताकतों की सहायता करने के लिए अपने ही लोगों को धोखा दिया । जो आम आदमी का दोस्त और अंग्रेज़ों का दुश्मन होने का दिखावा करता रहा । जिसनेे धार्मिक पक्षपात का व्यापक रूप से अनुचित लाभ उठाया ।”

ये शब्द The Great Soviet Encyclopaedia में किसी और के लिए नहीं बल्कि भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के लिए लिखे गए थे । और The Great Soviet Encyclopaedia में ऐसा ही कुछ जवाहर लाल नेहरू के लिए भी लिखा गया था ।

©Darpan Kanpuri #गांधी
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Darpan Kanpuri

Please try to Solve this COROLLARY (उप प्रमेय)

विनम्र न होना = अहंकार  

अहंकार = अज्ञान 

अज्ञान = दुःख सुख 

दुख सुख = जीवन मरण का बंधन 

जीवन मरण का बंधन = मोक्ष न मिलना

मोक्ष न मिलना = अंसफ़ल मनुष्य जीवन , 

अत: ~~~ 

विनम्र न होना = अंसफ़ल  मनुष्य जीवन

©Darpan Kanpuri #अहंकार
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Darpan Kanpuri

ये क्या कि उनका इतना भी एतबार न किया ।
क्या किया ग़र उम्र भर भी इन्तज़ार न किया ।।

(दर्पन कानपुरी)

©Darpan Kanpuri #इन्तज़ार
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Darpan Kanpuri

मुझको ठुकरा के कई बार आज फिर याद किया है ।
शायद उसने फिर कोई नया सितम ईजाद किया है ।।

यूं तो मेरा इस तमाम ज़माने ने सबक़ याद किया है ।
ग़म ने मुझे शागिर्द किया ग़म ही ने उस्ताद किया है ।।

कुछ इस तरह से मैंने  ख़ुद को  रोज़ बर्बाद किया है ।
ख़ुदा को पांच बार और उन्हें हर वक्त याद किया है ।।

इस तमाम उम्र किया है ख़ुद ही ख़ुद को बर्बाद मैंने ।
इसी तरह मैंने ख़ुद को तमाम उम्र आबाद किया है ।।

अपने अन्दर मैं  रोज़ किसी को  गिरफ़्तार करता हूं । 
फिर किसे मैंने अपने अन्दर रोज़  आज़ाद किया है ।।

©Darpan Kanpuri
  #आज़ाद
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Darpan Kanpuri

मुझको ठुकरा के कई बार आज फिर याद किया है ।
शायद उसने फिर कोई नया सितम ईजाद किया है ।।

यूं तो मेरा इस तमाम ज़माने ने सबक़ याद किया है ।
ग़म ने मुझे शागिर्द किया ग़म ही ने उस्ताद किया है ।।

कुछ इस तरह से मैंने  ख़ुद को  रोज़ बर्बाद किया है ।
ख़ुदा को पांच बार और उन्हें हर वक्त याद किया है ।।

इस तमाम उम्र किया है ख़ुद ही ख़ुद को बर्बाद मैंने ।
इसी तरह मैंने ख़ुद को तमाम उम्र आबाद किया है ।।

अपने अन्दर मैं  रोज़ किसी को  गिरफ़्तार करता हूं । 
फिर किसे मैंने अपने अन्दर रोज़  आज़ाद किया है ।।

©Darpan Kanpuri
  #शायरी

शायरी

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Darpan Kanpuri

आपकी आंखों में  किसका ख़्याल जलता है ।
आप मुझ पे फ़िदा हैं ये साफ़ पता चलता है ।।

©Darpan Kanpuri #फ़िदा
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Darpan Kanpuri

मौत के आलम में भी वो  ज़िन्दगी सा  असर रखती है ।
वो नज़र  ! नज़र नहीं आती जो सब पे नज़र रखती है ।।

©Darpan Kanpuri #नज़र
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Darpan Kanpuri

शीशे जैसा दिल और पत्थर जैसे हालात लिए ।
सहेली कैसे जिएगी तू उम्र से लम्बी रात लिए ।।

©Darpan Kanpuri #शायरी

शायरी

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