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Virendra Singh Diwakar

20/01/1999

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Virendra Singh Diwakar

यह कोई कविता नहीं उसकी जिंदगी का किस्सा है
जो दर्द बताने वाला हूं उसकी जिंदगी का हिस्सा है

चंद खून की छींटे लज्जित कर देती है उसको
कोई क्यों नहीं सोचता कितना दर्द होता होगा उसको

नारी होना आसान नहीं समझाओ उन नसमझो को
रूह कांप जाती जब चोट लगती हैं मर्दों को

मंदिर और रसोई में भी जाने को रोक लगाते हैं 
कुछ लोग पास में बैठने से भी मुँह बिगाड़ लेते है






न जाने क्यों लोग इसे बीमारी समझते हैं
 *उसे दर्द से ही तो घरों में चिराग जलते है* 

यह कोई कविता नहीं उसकी जिंदगी का किस्सा है
जो दर्द बताने वाला हूं उसकी जिंदगी का हिस्सा है
VS.Diwakar

©Virendra Singh Diwakar #Women #womenempowerment #Women_Special यह कोई कविता नहीं उसकी जिंदगी का किस्सा है
जो दर्द बताने वाला हूं उसकी जिंदगी का हिस्सा है

चंद खून की छींटे लज्जित कर देती है उसको
कोई क्यों नहीं सोचता कितना दर्द होता होगा उसको

नारी होना आसान नहीं समझाओ उन नसमझो को
रूह कांप जाती जब चोट लगती हैं मर्दों को

#Women #womenempowerment #Women_Special यह कोई कविता नहीं उसकी जिंदगी का किस्सा है जो दर्द बताने वाला हूं उसकी जिंदगी का हिस्सा है चंद खून की छींटे लज्जित कर देती है उसको कोई क्यों नहीं सोचता कितना दर्द होता होगा उसको नारी होना आसान नहीं समझाओ उन नसमझो को रूह कांप जाती जब चोट लगती हैं मर्दों को

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Virendra Singh Diwakar

जिम्मेदार नागरिक मैंने एक खत लिखा है 
सिर्फ तुम्हारे लिए
मैं आशिक बना भी तो 
सिर्फ तुम्हारे लिए
जो पहाड़ सा अडिग था वो भी झुक गया
सिर्फ तुम्हारे लिए
हर पल याद करते हैं तुम्हे
अब यह दिल भी धड़कता तो 
सिर्फ तुम्हारे लिए
चल रही है अब जो सांस मेरी वह भी 
सिर्फ तुम्हारे लिए
VS.Diwakar

©Virendra Singh Diwakar #PoetInYou मैंने एक खत लिखा है 
सिर्फ तुम्हारे लिए
मैं आशिक बना भी तो 
सिर्फ तुम्हारे लिए
जो पहाड़ सा अडिग था वो भी झुक गया
सिर्फ तुम्हारे लिए
हर पल याद करते हैं तुम्हे
अब यह दिल भी धड़कता तो

#PoetInYou मैंने एक खत लिखा है सिर्फ तुम्हारे लिए मैं आशिक बना भी तो सिर्फ तुम्हारे लिए जो पहाड़ सा अडिग था वो भी झुक गया सिर्फ तुम्हारे लिए हर पल याद करते हैं तुम्हे अब यह दिल भी धड़कता तो #कविता

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Virendra Singh Diwakar

मैं वो किताब हूं
जिसे किसी ने पढ़ा नहीं
जिसने पढ़ा उसने समझा नहीं

©Virendra Singh Diwakar #मैं #वो #किताब #हूं
#जिसे #किसी ने #पढ़ा नहीं
#जिसने पढ़ा उसने #समझा #नहीं
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Virendra Singh Diwakar

प्यार और डिग्रियों से घर नही चलता है
घर तो मजदूरियों से चलता है
VS.Diwakar

©Virendra Singh Diwakar #Aditya&Geet  
प्यार और डिग्रियों से घर नही चलता है
घर तो मजदूरियों से चलता है

#aditya&Geet प्यार और डिग्रियों से घर नही चलता है घर तो मजदूरियों से चलता है #विचार

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Virendra Singh Diwakar

मोहतरमा 
प्यार से घर नही चलता है
घर तो मजदूरियों से चलता है

©Virendra Singh Diwakar
  #devdas मोहतरमा 
प्यार से घर नही चलता है
घर तो मजदूरियों से चलता है

#devdas मोहतरमा प्यार से घर नही चलता है घर तो मजदूरियों से चलता है #विचार

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Virendra Singh Diwakar

बनाना है तो बाज बनो 
धोखेबाज नहीं

©Virendra Singh Diwakar #Dussehra बनाना है तो बाज बनो 
धोखेबाज नहीं

#Dussehra बनाना है तो बाज बनो धोखेबाज नहीं #विचार

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Virendra Singh Diwakar

.....रात के अंधेरों में दिन के.....
उजाले ने जगा रखा है
देखने वाले कहते हैं रात रंगीन इसकी 
यहां तो कल की भूख ने रुला रखा है.....

©Virendra Singh Diwakar #Darkरात के अंधेरों में दिन के उजाले ने जगा रखा है
देखने वाले कहते हैं रात रंगीन इसकी 
यहां तो कल की भूख ने रुला रखा है

#Darkरात के अंधेरों में दिन के उजाले ने जगा रखा है देखने वाले कहते हैं रात रंगीन इसकी यहां तो कल की भूख ने रुला रखा है #विचार

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Virendra Singh Diwakar

डर
अब डर तो इसी बात का है 
की
अब डर ही नहीं लगता है.....ll
VS.Diwakar

©Virendra Singh Diwakar #rain डर
अब डर तो इसी बात का है 
की
अब डर ही नहीं लगता है.....ll
VS.Diwakar

#rain डर अब डर तो इसी बात का है की अब डर ही नहीं लगता है.....ll VS.Diwakar #शायरी

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Virendra Singh Diwakar

डर
डर तो इसी बात का है 
की
अब डर ही नहीं लगता है.....ll
VS.Diwakar

©Virendra Singh Diwakar
  डर
डर तो इसी बात का है 
की
अब डर ही नहीं लगता है.....ll
VS.Diwakar

डर डर तो इसी बात का है की अब डर ही नहीं लगता है.....ll VS.Diwakar #कविता

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Virendra Singh Diwakar

आज ख्वाहिश है 
फिर कोई मुझे बचपन सा
 सँवार दें
लग जाए नजर तो बे झिझक
 उतार दें
बस मां जैसा दुलार चाहता हूं ।
विपत्ति की भीड़ में हाथ थाम ले
कंधे पर बैठाकर
आपत्ति से उबार ले
बस पिता जैसा प्यार चाहता हूं।
जो कह न सके हम बात को 
वो आवाज दे मेरे 
जज़्बात को
बस चाचा वाला अनुराग चाहता हूं ।
मेरी कुछ गलतियों को
नादानी समझ कर 
जो सबसे छुपा ले 
बस बहन वाला स्नेह चाहता हूं ।
अगर हो कहीं मुसीबत मे 
तो कहे मैं हूं 
अगर हो परेशान
तो भाई जैसा संभाल ले 
बस ऐसा यार चाहता हूं ।
VS.Diwakar

©Virendra Singh Diwakar आज ख्वाहिश है 
फिर कोई मुझे बचपन सा
 सँवार दें
लग जाए नजर तो बे झिझक
 उतार दें
बस मां जैसा दुलार चाहता हूं ।

विपत्ति की भीड़ में

आज ख्वाहिश है फिर कोई मुझे बचपन सा सँवार दें लग जाए नजर तो बे झिझक उतार दें बस मां जैसा दुलार चाहता हूं । विपत्ति की भीड़ में #कविता

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