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shadabalam2392
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Shadab Alam

Mujhe Ghazle , Nazm , Shayri Bohot Pasand Hai +91-73020-75020

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Shadab Alam

Ghazal

" نظر نواز نظاروں میں جی نہیں لگتا"
بچھڑ کے تجھ سے بہاروں میں جی نہیں لگتا 

"नज़र-नवाज़ नज़ारों में जी नहीं लगता"
बिछड़ के तुझ से बहारों में जी नहीं लगता 

وہ ماہتاب ہوا جب سے بدلیوں میں قید 
دمکتے چاند ستاروں میں جی نہیں لگتا 

वो माहताब हुआ जब से बदलियों में क़ैद 
दमकते चाँद सितारों में जी नहीं लगता 

ضعیف باپ جواں بیٹوں سے ہراساں ہے
اب اس کا اپنے ہی پیاروں میں جی نہیں لگتا 

ज़ईफ़ बाप जवाँ बेटों से हिरासाँ हैं 
अब उस का अपने ही प्यारों में जी नहीं लगता

سبھی کو محفل رقص و سرور ہے درکار 
کسی کا درد کے ماروں میں جی نہیں لگتا 

सभी को महफ़िल-ए-रक़्स-ओ-सुरूर है दरकार 
किसी का दर्द के मारों में जी नहीं लगता 

ہم اپنے گاؤں میں تنہا بھی مست رہتے تھے 
یہ شہر ہے کہ ہزاروں میں جی نہیں لگتا 

हम अपने गाँव में तन्हा भी मस्त रहते थे 
ये शहर है कि हज़ारों में जी नहीं लगता 

سب اپنے دوست ہیں کوئی کسی کا دوست نہیں 
یہ جب سے جانا ہے یاروں میں جی نہیں لگتا

 सब अपने दोस्त हैं कोई किसी का दोस्त नहीं 
ये जब से जाना है यारों में जी नहीं लगता 

چلو بسائیں کسی برف زار کو شیبانؔ 
اب آگ اگلتے دیاروں میں جی نہیں لگتا

चलो बसाएँ किसी बर्फ़-ज़ार को 'शैबांन'
अब आग उगलते दयारों में जी नहीं लगता 

Syed Shiban Qadri

©Shadab Alam #AWritersStory
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Shadab Alam

क़िताबों कापियों के बन्द पन्नों में मरूँगा,
किसी मरहूम शाइर की मैं ग़ज़लों में मरूँगा।

जिया हूँ आज तक अपने समय से दूर रह कर,
न जाने कौनसे वीरान लम्हों में मरूँगा।

मुझे हर दर्द की तक़लीफ़ अपनी लग रही है,
कभी मैं डूब कर अपने ही ज़ख़्मों में मरूँगा।

लिखी है मौत पानी में अगर मेरी नज़ूमी,
नदी से दूर खेतों की मैं नहरों में मरूँगा।

फ़क़ीरी और सुल्तानी को मैं अपना चुका हूँ,
किसी दिन देख मिट्टी के घरोंदों  में मरूँगा।

मुझे तफ़सील से ये इश्क़ ने समझा दिया है,
ख़ुदा की रहमतों वाले मैं जलवों में मरूँगा।

तेरे घर की तरफ़ मैं इसलिए जाता रहा हूँ,
मुझे मालूम है मैं तेरी गलियों में मरूँगा।

मुझे रखने नहीं आए कभी गर फ़ासले तो,
किसी दिन रूह और  जिस्मों के झगड़ों में मरूँगा।

©Shadab Alam #paper
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Shadab Alam

अपने हाथों की लक़ीरों में बसा ले मुझको 
 मैं हूँ तेरा तू नसीब अपना बना ले मुझको 
 
 मुझसे तू पूछने आया है वफ़ा के मानी 
 ये तेरी सादा-दिली मार न डाले मुझको 
 
 मैं समंदर भी हूँ, मोती भी हूँ, ग़ोता-ज़न भी 
 कोई भी नाम मेरा लेके बुला ले मुझको 
 
 तूने देखा नहीं आईने से आगे कुछ भी 
 ख़ुदपरस्ती में कहीं मार ने डाले मुझको 
 
 कल की बात और है मैं अब सा रहूँ या न रहूँ 
 जितना जी चाहे तेरा आज सता ले मुझको 
 
 ख़ुद को मैं बाँट न डालूँ कहीं दामन-दामन 
 कर दिया तूने अगर मेरे हवाले मुझको 
 
 मैं जो काँटा हूँ तो चल मुझसे बचाकर दामन 
 मैं हूँ गर फूल तो जूड़े में सजा ले मुझको 
 
 मैं खुले दर के किसी घर का हूँ सामाँ प्यारे 
 तू दबे पाँव कभी आ के चुरा ले मुझको 
 
 तर्क-ए-उल्फ़त की क़सम भी कोई होती है क़सम 
 तू कभी याद तो कर भूलने वाले मुझको 
 
 वादा फिर वादा है मैं ज़हर भी पी जाऊँ क़तील 
 शर्त ये है कोई बाँहों में सम्भाले मुझको__!! Qateel Shifai....

Qateel Shifai.... #Shayari

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Shadab Alam

Tum Farishte Ho To Sambhal Ke Rakho Taqaddus Apna,


Main Insan Hu To Aib-O-Hunar Bhi Rakhta Hu... Farishta...

Farishta... #Shayari

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Shadab Alam

Aap Aaye Hai Hamara Haal Poocha Hai,


Khawaab Aise Bhi Humne Dekh Rakhe Hai.. khawaab

khawaab #Shayari

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Shadab Alam

Daawe Muflis Se Mohabbat Ke To Sabhi Karte Hai,

Dekhna Ye Hai Ki Woh Imdad Kab Karte Hai,


Zayka Chand Ameero Ki Zuba'n Tak Hi Nahi

Khoon Mazdoor Ka Raste Bhi Talab Karte Hai...😢😢 Muflis

Muflis #Shayari

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Shadab Alam

Usne Kaha chhod do Sara Nasha Washa,

Mene Nazar Mila Ke Kaha Or Tumhare Honth...!! Or Tumhare Honth...

Or Tumhare Honth...

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Shadab Alam

Jaane Waalo Ne Ye Sikhaya Hai,


Aane Waalo Ko Auqaat Me Rakhna Auqaat...

Auqaat... #Shayari

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Shadab Alam

कश्मकश में है कुल जहां , अब रहम का  फ़रमान कर!

मौला तू  मुश्किलकुशा है , मुश्किलें आसान  कर ! Reham Kar Ab...

Reham Kar Ab... #thought

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Shadab Alam

#LabourDay  अगर इस जहाँ में मजदूर का नi नामों निशाँ होता,

फिर न होता हवामहल और न ही ताजमहल होता #Labour_Day
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