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jashvant2251
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Jashvant

चलते फिरते हुए महताब दिखाएंगे तुम्हें , हमसे मिलना कभी, पंजाब दिखाएंगे तुम्हें | चांद हर छत पर है, सूरज है हर आंगन में, नींद से जागो तो कुछ ख्वाब दिखाएंगे तुम्हें |

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Jashvant

मिरे जुनूँ का नतीजा ज़रूर निकलेगा
इसी सियाह समुंदर से नूर निकलेगा

गिरा दिया है तो साहिल पे इंतिज़ार न कर
अगर वो डूब गया है तो दूर निकलेगा

उसी का शहर वही मुद्दई वही मुंसिफ़
हमें यक़ीं था हमारा क़ुसूर निकलेगा

यक़ीं न आए तो इक बात पूछ कर देखो
जो हँस रहा है वो ज़ख़्मों से चूर निकलेगा

उस आस्तीन से अश्कों को पोछने वाले
उस आस्तीन से ख़ंजर ज़रूर निकलेगा

©Jashvant
  #UskeHaath
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Jashvant

White हुस्न जितना ही सादा होता है
गेसू-ए-ना-कुशादा होता है

जब कभी शग़्ल-ए-बादा होता है
एक आलम ज़ियादा होता है

जब वो आते हैं ज़िंदगी के क़रीब
दिल भी दूर-ऊफ़्तादा होता है

क्या ख़बर ये फ़शुर्दा-ए-अंगूर
कितना ख़ूँ हो के बादा होता है

उन का जल्वा न दूर है न क़रीब
नूर है कम ज़ियादा होता है

हुस्न होता है सादा-ओ-रंगीं
इश्क़ रंगीन-ओ-सादा होता है

गुनगुनाता हूँ फ़ुर्सतों में 'नुशूर'
शेर तन्हाई-ज़ादा होता है

©Jashvant
  #Husna   Andy Mann  vineetapanchal  PФФJД ЦDΞSHI  Rakesh Srivastava  R... Ojha

#husna Andy Mann vineetapanchal PФФJД ЦDΞSHI Rakesh Srivastava R... Ojha #Life

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Jashvant

White सहर और शाम से कुछ यूँ गुज़रता जा रहा हूँ मैं
कि जीता जा रहा हूँ और मरता जा रहा हूँ मैं

तमन्ना-ए-मुहाल-ए-दिल को जुज़्व-ए-ज़िंदगी कर के
फ़साना ज़ीस्त का पेचीदा करता जा रहा हूँ मैं

गुल-ए-रंगीं ये कहता है कि खिलना हुस्न खोना है
मगर ग़ुंचा समझता है निखरता जा रहा हूँ मैं

मिरा दिल भी अजब इक साग़र-ए-ज़ौक़-ए-तमन्ना है
कि है ख़ाली का ख़ाली और भरता जा रहा हूँ मैं

कहाँ तक इर्तिबात-ए-जान-ओ-जानाँ का तअल्लुक़ है
सँवरते जा रहे हैं वो सँवरता जा रहा हूँ मैं

जवानी जा रही है और मैं महव-ए-तमाशा हूँ
उड़ी जाती है मंज़िल और ठहरता जा रहा हूँ मैं

बहुत ऊँचा उड़ा लेकिन अब इस ओज-ए-तख़य्युल से
किसी दुनिया-ए-रंगीं में उतरता जा रहा हूँ मैं

'नुशूर' आख़िर कहाँ तक फ़िक्र-ए-दुनिया दिल दुखाएगी
ग़म-ए-हस्ती को ज़ौक़-ए-शेर करता जा रहा हूँ मैं

©Jashvant
  Gazal by Nushur wahidi Andy Mann  vineetapanchal  Ek Alfaaz Shayri  Lalit Saxena  Raj Guru

Gazal by Nushur wahidi Andy Mann vineetapanchal Ek Alfaaz Shayri Lalit Saxena Raj Guru #Life

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Jashvant

White फ़स्ल-ए-गुल साथ लिए बाग़ में क्या आती है
बुलबुल-ए-नग़्मा-सारा रू-ब-क़ज़ा आती है

दिल धड़कता है ये कहते हुए उस महफ़िल में
याँ किसी को ख़फ़क़ाँ की भी दवा आती है

आज वो शोख़ है और कसरत-ए-आराइश है
देख किस वास्ते पिसने को हिना आती है

क्या खुले बाग़ में वो चश्म-ए-हिजाब-आलूदा
आँख उठाते हुए नर्गिस को हया आती है

जाँ-कनी हुस्न-परस्तों को गिराँ क्या गुज़रे
भेस में हूर-ए-बहिश्ती के क़ज़ा आती है

इस लिए रश्क-ए-चमन बाग़ में गुल हँसते हैं
कि उड़ाती तिरी रफ़्तार सबा आती है

मरज़-ए-इश्क़ से 'बीमार' जो घबराता है
यार कहता है मुझे ख़ूब दवा आती है

©Jashvant
  #Sad_shayri  PФФJД ЦDΞSHI  Sangeet...  Andy Mann  vineetapanchal  Rakesh Srivastava

#Sad_shayri PФФJД ЦDΞSHI Sangeet... Andy Mann vineetapanchal Rakesh Srivastava #Life

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Jashvant

White रंजिश तिरी हर दम की गवारा न करेंगे
अब और ही माशूक़ से याराना करेंगे

बाँधेंगे किसी और ही जोड़े का तसव्वुर
सर ध्यान में उस ज़ुल्फ़ के मारा न करेंगे

इम्कान से ख़ारिज है कि हूँ तुझ से मुख़ातिब
हमनाम को भी तेरे पुकारा न करेंगे

यक बार कभी भूले से आ जाएँ तो आ जाएँ
लेकिन गुज़र इस घर में दोबारा न करेंगे

क्या ख़ूब कहा तू ने जो खोलूँ अभी आग़ोश
मिलने से मिरे आप किनारा न करेंगे

गो ख़ाक में मिल जाएँ हम और वज़्अ बदल जाएँ
पर तुझ से मुलाक़ात ख़ुद-आरा न करेंगे

उस नर्गिस-ए-'बीमार' से रखते हैं शबाहत
हरगिज़ सू-ए-अबहर भी इशारा न करेंगे

©Jashvant
  #alone_sad_shayri
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Jashvant

White सहर और शाम से कुछ यूँ गुज़रता जा रहा हूँ मैं
कि जीता जा रहा हूँ और मरता जा रहा हूँ मैं

तमन्ना-ए-मुहाल-ए-दिल को जुज़्व-ए-ज़िंदगी कर के
फ़साना ज़ीस्त का पेचीदा करता जा रहा हूँ मैं

गुल-ए-रंगीं ये कहता है कि खिलना हुस्न खोना है
मगर ग़ुंचा समझता है निखरता जा रहा हूँ मैं

मिरा दिल भी अजब इक साग़र-ए-ज़ौक़-ए-तमन्ना है
कि है ख़ाली का ख़ाली और भरता जा रहा हूँ मैं

कहाँ तक इर्तिबात-ए-जान-ओ-जानाँ का तअल्लुक़ है
सँवरते जा रहे हैं वो सँवरता जा रहा हूँ मैं

जवानी जा रही है और मैं महव-ए-तमाशा हूँ
उड़ी जाती है मंज़िल और ठहरता जा रहा हूँ मैं

बहुत ऊँचा उड़ा लेकिन अब इस ओज-ए-तख़य्युल से
किसी दुनिया-ए-रंगीं में उतरता जा रहा हूँ मैं

'नaksha' आख़िर कहाँ तक फ़िक्र-ए-दुनिया दिल दुखाएगी
ग़म-ए-हस्ती को ज़ौक़-ए-शेर करता जा रहा हूँ मैं

©Jashvant
  #Sad_shayri
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Jashvant

White ये गाँव का मंज़र सन्नाटा और शाम की धुँदली तारीकी
इक शाम बहुत रंगीन मगर मुफ़्लिस की निगाहों में फीकी
धरती पे ये पानी सोने का आकाश पे नहरें चाँदी की
ये चाँद ये तारे ये दरिया मेरे लिए क्या है कुछ भी नहीं
ये शहर की चलती सड़कों पर हर सम्त दुकानें नूरानी
बिजली में भी जलता हो जैसे इफ़्लास के पत्ते का पानी
चीज़ों की गिरानी में शामिल ग़ुर्बत के लहू की अर्ज़ानी
ये साज़ ये सामान-ए-इशरत मेरे लिए क्या है कुछ भी नहीं
रातों के अँधेरे में जगमग जगमग ये फ़ज़ा मय-ख़्वानोंं की
मेज़ों पे नज़ारे मस्ती के बहकी हुई लय दीवानों की
बोतल की नवा-ए-कुलकुल में हल्की सी ख़ुनुक पैमानों की
ये शीशा ये साक़ी ये सहबा मेरे लिए क्या है कुछ भी नहीं
सड़कों पे हसीनों का ताँता जादू का परा चलता फिरता
साड़ी की लपेटूँ से जिन की छिलके है जवानी की सहबा
मस्ती के क़दम सँभले सँभले आँचल का सिरा ढलका ढलका
ये हुस्न-ओ-जवानी रंग-ओ-अदा मेरे लिए क्या है कुछ भी नहीं
आँखों पे मिरी एहसास है क्या सब्ज़ों पे अगर है बरनाई
क्यूँ पूछने जाऊँ क्यारी में फूलों का मिज़ाज-ए-रानाई
क्या काम है मुझ को गुलशन से कलियाँ हो खिली या मुरझाई
ये फूल ये शबनम शेर-ओ-फ़ज़ा मेरे लिए क्या है कुछ भी नहीं
कॉलेज की ये ता'मीर-ए-ख़ंदाँ मम्नून ग़मों लाम नहीं
इस में किसी मुफ़्लिस के घर के ग़मगीन पिसर का नाम नहीं
सामान-ए-तिजारत है ये भी सामान-ए-मफ़ाद-ए-आम नहीं
ये इल्म ये हिकमत होश-रुबा मेरे लिए क्या है कुछ भी नहीं
बे-जान हो जब नक़्श-ए-हस्ती तस्वीर-ए-तमन्ना क्या बोले
ताराज के ख़ूनी पंजे में तहज़ीब की मीना क्या बोले
चीलों के निजासत खाने में बेचारा पपीहा क्या बोले
ये नग़्मा ये शेर-ओ-साज़-ओ-नवा मेरे लिए क्या है कुछ भी नहीं

©Jashvant
  #sawan_2024
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Jashvant

White मैं खिल नहीं सका कि मुझे नम नहीं मिला
साक़ी मिरे मिज़ाज का मौसम नहीं मिला

मुझ में बसी हुई थी किसी और की महक
दिल बुझ गया कि रात वो बरहम नहीं मिला

बस अपने सामने ज़रा आँखें झुकी रहीं
वर्ना मिरी अना में कहीं ख़म नहीं मिला

उस से तरह तरह की शिकायत रही मगर
मेरी तरफ़ से रंज उसे कम नहीं मिला

एक एक कर के लोग बिछड़ते चले गए
ये क्या हुआ कि वक़्फ़ा-ए-मातम नहीं मिला

©Jashvant
  #guru_purnima
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Jashvant

मिरा अकेला ख़ुदा याद आ रहा है मुझे
ये सोचता हुआ गिरजा बुला रहा है मुझे

मुझे ख़बर है कि इक मुश्त-ए-ख़ाक हूँ फिर भी
तू क्या समझ के हवा में उड़ा रहा है मुझे

ये क्या तिलिस्म है क्यूँ रात भर सिसकता हूँ
वो कौन है जो दियों में जला रहा है मुझे

उसी का ध्यान है और प्यास बढ़ती जाती है
वो इक सराब कि सहरा बना रहा है मुझे

मैं आँसुओं में नहाया हुआ खड़ा हूँ अभी
जनम जनम का अंधेरा बुला रहा है मुझे

©Jashvant
  #Mera Akela khuda mujhe yaad aa raha

#Mera Akela khuda mujhe yaad aa raha #Life

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Jashvant

दामन में आँसुओं का ज़ख़ीरा न कर अभी
ये सब्र का मक़ाम है गिर्या न कर अभी

जिस की सख़ावतों की ज़माने में धूम है
वो हाथ सो गया है तक़ाज़ा न कर अभी

नज़रें जला के देख मनाज़िर की आग में
असरार-ए-काएनात से पर्दा न कर अभी

ये ख़ामुशी का ज़हर नसों में उतर न जाए
आवाज़ की शिकस्त गवारा न कर अभी

दुनिया पे अपने इल्म की परछाइयाँ न डाल
ऐ रौशनी-फ़रोश अंधेरा न कर अभी

©Jashvant
  #Gulaab
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