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brahmprakash1960
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BRAHM PRAKASH

मैं पंछी उन्मुक्त गगन का

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BRAHM PRAKASH

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BRAHM PRAKASH

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BRAHM PRAKASH

चुप रहो

चुप रहो #कविता

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BRAHM PRAKASH

मैं किसान हूँ
आसमान में धान बो रहा हूँ
कुछ लोग कह रहे हैं
कि पगले! आसमान में धान नहीं जमा करता
मैं कहता हूँ पगले!
अगर ज़मीन पर भगवान जम सकता है
तो आसमान में धान भी जम सकता है
और अब तो दोनों में से कोई एक होकर रहेगा

मैं किसान हूँ आसमान में धान बो रहा हूँ कुछ लोग कह रहे हैं कि पगले! आसमान में धान नहीं जमा करता मैं कहता हूँ पगले! अगर ज़मीन पर भगवान जम सकता है तो आसमान में धान भी जम सकता है और अब तो दोनों में से कोई एक होकर रहेगा

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BRAHM PRAKASH

चुप रहो..
चुप रहो कि बोलना गुनाह हैं।
आपदा में अवसर कि आलोचना गुनाह हैं!
जो बिक रहा हैं,बिकने दो।
क्योंकि ईमान का लब खोलना गुनाह हैं!
तार-तार लोकतंत्र हो भले।
पर गरिमा गिराती स्तम्भो कि आलोचना गुनाह हैं!

©Brahm Prakash चुप रहो...

#shadesoflife

चुप रहो... #shadesoflife

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BRAHM PRAKASH

मिट्टी तेरी, पानी तेरा
जैसी चाही शक्ल बना दी

छोटा लगता था अफ्साना
मैंने तेरी बात बढ़ा दी

©निदा फ़ाज़ली #जीवन
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BRAHM PRAKASH

मन बैरागी, तन अनुरागी, कदम-कदम दुशवारी है
जीवन जीना सहल न जानो बहुत बड़ी फनकारी है मन बैरागी, तन अनुरागी, कदम-कदम दुशवारी है
जीवन जीना सहल न जानो बहुत बड़ी फनकारी है

निदा फ़ाज़ली

मन बैरागी, तन अनुरागी, कदम-कदम दुशवारी है जीवन जीना सहल न जानो बहुत बड़ी फनकारी है निदा फ़ाज़ली #Shayari

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BRAHM PRAKASH

लोकतंत्र में जनता की राजनीतिक,सामाजिक और आर्थिक जागरूकता ही सत्ता को अनुशासित रख सकती हैं।
©ब्रह्म प्रकाश
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BRAHM PRAKASH

अकेलापन में छटपटाहट है

तो एकांत में सुकून और आराम है ...

अकेलेपन में घबराहट है तो

एकांत में परम् शान्ति ...

जब तक हमारी नज़र बाहर की और है ,

तब तक हम अकेलापन महसूस करते रहते हैं

और

जैसे ही दृष्टि भीतर की और मुढ़ी , एकांत ही एकांत है !

यह जीवन और कुछ नहीं , केवल अकेलेपन से एकांत की और एक यात्रा है ...

ऐसी यात्रा जिसमें रास्ता भी हम हैं
और मंज़िल भी हम ही हैं  ...!!
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BRAHM PRAKASH

आसक्ति क्या है,
आपत्ति या जीवन ?

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