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navneetthakur2246
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नवनीत ठाकुर

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नवनीत ठाकुर

White पाँव जो फिसले तो सम्भल जाएंगे,
मगर नज़रों से गिरे तो उठ कहाँ पाएंगे।

भूलें तो वक़्त भी सुधार देता है अक्सर,
मगर इज्ज़त के ज़ख़्म कहाँ भर पाएंगे।

©नवनीत ठाकुर #नवनीत_ठाकुर
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नवनीत ठाकुर

White सामने जो था, हर इल्ज़ाम उसी पर आया,
जिसे देखा ही नहीं, वो निर्दोष नज़र आया।

सच कहने चला जो, ग़लत कहलाया,
ख़ामोश जो रहा, वो समझदार आया।

दर्द सहे जिसने, वही ग़ुनहगार ठहरा,
जो तमाशाई था, वो होशियार नज़र आया।

जो मिट्टी से उठा, वो रुसवा हुआ,
महलों में जो था, वो मसीहा करार आया।

©नवनीत ठाकुर #नवनीत_ठाकुर
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नवनीत ठाकुर

कौन रोता है किसके लिए ऐ दोस्त, 
यहां हर चेहरे को बस मुस्कुराना है।

 लोग पूछेंगे हाल तो हंसकर कहना, 
हर ज़ख़्म को अब ख़ुद ही सहलाना है।

 ग़म की चादर ओढ़कर बैठे हैं हम, 
ज़माने को फिर भी बहलाना है।

आंसुओं की कीमत यहां कौन जाने, 
हर दर्द को हंसी में छुपाना है।

जो टूट गए हैं, वो क्या शिकायत करें, 
अब खुद को ही फिर से बनाना है। 

बिछड़कर भी कोई याद क्यों आता है, 
दिल को हर रोज़ ये समझाना है।

रौशनी के शहरों में अंधेरा मिला,
 अपनी परछाईं से भी घबराना है।

तन्हाइयों ने अब दोस्ती कर ली,
 हर शाम खुद को ही अपनाना है।

©नवनीत ठाकुर #नवनीत_ठाकुर
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नवनीत ठाकुर

White रिश्तों को बातों का लिबास नहीं उढ़ाया करते,
 उड़ जायेगे, सच् की आंधी सह नहीं सकते । 

अरे पागल, ये रिश्ते एहसासों से हैं पनपते , 
बिना शब्दों के भी करीब हैं आते । 

जो वक़्त की धूप में झुलस जाएँ, 
वो सायों में भी सुकून नहीं देते। 

जो दिल की चौखट में ठहर न पाए,
 ' नवनीत ' वो लफ्ज़ों में भी टिके नहीं बनते।

©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर
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नवनीत ठाकुर

मुझे कमजोर समझने की भूल न कर,
मैं शांत हूँ, मगर लाचार नहीं।
जो सह लिया, वो सब्र था मेरा,
पर हर घाव अब बेक़रार नहीं।

मेरी खामोशी को मेरी हार न मान,
मैं लहर हूँ, मगर किनारा नहीं।
जो आज ठहरा हूँ, तो वक़्त की चाल है,
पर जब चलूँगा, तो सहारा नहीं।

बदले की आग को मत हवा दे,
मैं चिंगारी हूँ, पर राख नहीं।
जो जल गया, वो खाक हुआ,
पर मैं वो हूँ, जो बुझा नहीं।

©नवनीत ठाकुर #नवनीत_ठाकुर
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नवनीत ठाकुर

हर राह में चट्टानों का सामना होगा,
तेरे हौसले का हर पल इम्तिहान होगा।
मत सोच कि रुक जाएगी तेरी उड़ान,
आंधियों के परे भी एक आसमान होगा।

जो जलता है, वही सूरज कहलाता है,
अंधेरों से लड़कर ही सवेरा आता है।
मंज़िल उन्हीं को बाहों में भरती है,
जो गिरकर भी हर बार मुस्कुराता है।

मत झुकना कभी तू हालातों के आगे,
लहू से इरादों की लौ और जला ले।
क़िस्मत भी उसके कदमों में आ झुके,
जो खुद पे भरोसे को हथियार बना ले।

©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर
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नवनीत ठाकुर

चंद दिन आँसुओं का उधार सा रहा, 
फिर हर कोई हँसने को तैयार सा रहा। 

जो रोए थे सबसे आगे खड़े हुए, 
आज महफिलों में फिर शुमार सा रहा।

जो कल थे संग, आज परछाईं भी नहीं, 
दुआ के लफ्ज़ तक अब सुनाई नहीं। 

श्मशान की राख अभी ठंडी भी न हुई, 
और उनके लहज़े में वो गहराई नहीं। 

जिसे कंधों पे उठाया था रोते हुए, 
उसी का ज़िक्र भी अब कोई करता नहीं। 

क़ब्र पर दिया जलाकर गए थे जो,
 आज उस राह से भी कोई गुज़रता नहीं।

यूँ ही मिट्टी में दफ़न होती हैं यादें, 
यूँ ही रिश्ते भी गर्द बन के उड़ जाते हैं। 

क़ब्र की मिट्टी अभी सूखी भी नहीं, 
और लोग नए फ़साने बना जाते हैं।

©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर
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नवनीत ठाकुर

हम जिसे फूल समझकर संजोने बैठे,
 वो बिखरता गया, ख़ुशबू बनके उड़ता गया। 
तेरी एक छूअन जिसे छू ले बस, 
वो कांटा भी गुल बनके महकता गया।

हमने चाहा जिसे, वो नसीबों में ढल गया, 
हर राह में खोया, हर मोड़ पर बदल गया। 
तू जो नज़र भर के देख ले उसे, 
वो भटकी हुई राहों का मंज़र बन गया।

हम जिसे चाँद समझकर निहारा किए, 
वो घटता गया, धुंध में कहीं खोता गया।
 तेरी किरण जिसे बस छू भर ले, 
वो अमावस भी पूनम सा होता गया।

हमने चाहा जिसे, वो कहानी बन गया, 
हर सफ़र में भटकता सा निशानी बन गया। 
तू जो इक बार सहारा दे उसे, 
वो बिखरा हुआ लम्हा भी ज़िंदगानी बन गया।

©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर
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नवनीत ठाकुर

जिसे चाहा था, उसको ही खोना पड़ा, 
अब किस्मत से शिकवा बचा भी नहीं। 

अब सवालों के घेरे में रहता हूँ मैं, 
पर जवाबों से कोई सिलसिला भी नहीं।

जो अपना था, वो भी पराया लगा,
 रिश्तों में अब कोई भरम भी नहीं। 

जिसे दिल ने आवाज़ दी उम्र भर,
 वो पलट कर सुना तो कभी भी नहीं।

जिसे चाहा था, उसे जब पुकारा, 
सुनने वाला कोई रहा भी नहीं।

©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर
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नवनीत ठाकुर

लफ़्ज़ बिखरे पड़े हैं किताबों में यूँ, 
जैसे क़िस्सा कोई अधूरा रहा। 

मैंने चाहा बहुत ख़ुद को समझूँ, 
पर मैं ही मुझसे जुदा सा रहा। 

मुद्दतों से मैं ख़ुद में ही गुम हूँ, 
बाहरी दुनिया का भरम भी गया।

एक ख़्वाब था जो हक़ीक़त न बन सका, 
साथ रहकर भी वो मेरा न था। 

मैं ख़ुद से ही मिलने की राहों में था, 
मगर लौटने का हौसला भी न था।

उम्र भर वक़्त के साथ चलता रहा,
 पर वो लम्हा कहीं भी रुका न था। 

ख़ुद से मिलने की चाहत थी दिल में, 
मगर रास्ता कोई खुला न था।

©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर
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