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navneetthakur2246
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नवनीत ठाकुर

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नवनीत ठाकुर

New Year 2024-25 चमक उठे हर ख़्वाब नया,
दिल में हो विश्वास सजा।
राहों में हो रोशनी का आलम,
हर कदम पर मिले नया परचम।

बर्फ से ठंडे सपने पिघलें,
हौसलों की चिंगारी फिर से मचलें।
हर गिरने पर हो खड़ा होने की जिद,
हर हार में छुपी हो जीत की लयबद्ध।

आसमान भी झुके हौसले के आगे,
हर मुश्किल सलाम करे रास्ते ।
बन मिसाल, हर दिल का गुरूर,
जीत गूंजे फलक के हर छोर।

संघर्ष की आग में निखरे इंसान,
सपनों को मिले मुकाम का मान।
जीवन की लड़ाई में न रहे कोई दंग,
नए वर्ष में बनो, हर मंजिल का रंग।

©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर NewYear2024-25
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नवनीत ठाकुर

कभी चूल्हे की राख में जलता सपना खोजो,
कभी चाँद की ठंडी रौशनी को अपनाना देख लो।

कभी बच्चों की हंसी में सादगी का राज समझो,
तो कभी बूढ़ी आंखों में उम्र का फसाना देख लो।

कभी चलती हवा के संग बह जाने की कोशिश करो,
कभी अपनी मंजिल का पत्थर बन जाना देख लो।

कभी मुसाफिर की थकन में घर का चैन ढूंढो,
तो कभी सफर के रास्तों में नया ठिकाना देख लो।

हर पल जो गुजरे, उसे अनमोल मानकर जी लो,
कभी वक्त को पकड़ना, कभी उसे जाने देना देख लो।

कभी अंधेरों की गहराई में उजालों की किरण ढूंढो,
कभी रोशनी के सफर में छिपा साया देख लो।

कभी भीड़ के शोर में खुद को तलाशने बैठो,
कभी खामोशी के साए में गहरा ठिकाना देख लो।

©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर
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नवनीत ठाकुर

कभी पहाड़ों की ऊंचाई में हौसले की बात समझो,
कभी गहरी घाटियों में खोया ख़जाना देख लो।

कभी समंदर की लहरों में बेकसी का जुनून देखो,
तो कभी किनारों की खामोशियों का फ़साना देख लो।

कभी सुबह की पहली रोशनी में अरमान जगाओ,
तो कभी रात की चादर में छिपा जमाना देख लो।

कभी परिंदों के उड़ने में आज़ादी का सबक लो,
कभी ठहरे दरख्तों की जड़ें गहरी बनाना देख लो।

कभी बहते झरनों के गीतों में रूह को बहला लो,
कभी सूखे रेगिस्तान में उम्मीद का दीवाना देख लो।

कभी तारों की टिमटिमाहट में खोया सा महसूस करो,
कभी सूरज की तपिश में जलता अफसाना देख लो।

कभी पुरानी हवाओं में यादों की खुशबू खोज लो,
कभी नए ख्वाबों का आसमान सजाना देख लो।

©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर
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नवनीत ठाकुर

अब सांसों में बस धुंध बाकी,
दिल के रास्ते बंजर निकले।
कहानी लिखी थी इश्क़ की,
अंजाम मगर बेअसर निकले।

जो सपने बुनते थे रातों को,
सुबह उनकी परछाई भी न निकले।
जिन लम्हों की खैर मांगी थी,
वो ही तकदीर के शिकार निकले।

मोहब्बत के सफर का क्या हाल कहें,
हर मोड़ पे खड़े सवाल निकले।
जो दिल से लिखा था उनके लिए,
वो लफ्ज़ भी अब बेमहल निकले।

©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर
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नवनीत ठाकुर

ख्वाब जो देखे थे आंखों में,
वो सब अश्कों में बह निकले।
हमने चाहा था उन्हें जान से,
पर वो तो वफा से दूर निकले।

दिल की राहों में थी रौशनी,
पर चिराग सब बेनूर निकले।
जिन पर था भरोसा सबसे ज्यादा,
वो ही वादे अधूरे निकले।

अब हर धड़कन की ख्वाहिश है,
जो निकले, सिर्फ उनका नाम निकले।
पर अफसोस है इस दिल को,
हर रास्ता अब वीरान निकले।

©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर
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नवनीत ठाकुर

सुकून की तलाश में न भटका करो यूं ही,
जो भी तुम्हारे पास हो, उसी में खुश रहो।
ज़िंदगी की राहों में कभी न रुको,
जो भी मिला है, उसे जी भर के जी लो।

ख्वाहिशों का तो कोई अंत नहीं,
पर खुश रहने का तरीका है यही—
जो कुछ भी है, उसे ही क़ीमत दो,
कभी न किसी और की तलाश में खो।

सपनों का पीछा करो, पर हकीकत को न भूलो,
रात चाहे जैसी हो, दिन को उजाला बना लो।
जो दिल कहे, वही करो,
बस खुद से सच्चे रहो, वही सबसे बड़ा गुरुर करो।

©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर 
सुकून की तलाश में न भटका करो यूं ही,
जो भी तुम्हारे पास हो, उसी में खुश रहो।
ज़िंदगी की राहों में कभी न रुको,
जो भी मिला है, उसे जी भर के जी लो।

ख्वाहिशों का तो कोई अंत नहीं,
पर खुश रहने का तरीका है यही—

#नवनीतठाकुर सुकून की तलाश में न भटका करो यूं ही, जो भी तुम्हारे पास हो, उसी में खुश रहो। ज़िंदगी की राहों में कभी न रुको, जो भी मिला है, उसे जी भर के जी लो। ख्वाहिशों का तो कोई अंत नहीं, पर खुश रहने का तरीका है यही— #कविता

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नवनीत ठाकुर

न चाहिए कोई ताज, न तख्त-ओ-ताज,
भूख लगी है, नहीं ख्वाब चाहिए।
दो वक्त की सिर्फ रोटी,
या थोड़ा सा अनाज चाहिए।

महल नहीं, एक छत काफी है,
आराम नहीं, बस राहत काफी है।
सुकून की तलाश में भटक रहा हूँ,
खाली पेट को बस बरकत काफी है।

न शानो-शौकत, न चाहत बड़ी,
बस इंसान की भूख मिट जाए।
जिंदगी की असली हकीकत यही,
कि पेट भरे, तो सुकून आ जाए।

©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर 
न चाहिए कोई ताज, न तख्त-ओ-ताज,
भूख लगी है, नहीं ख्वाब चाहिए।
दो वक्त की सिर्फ रोटी,
या थोड़ा सा अनाज चाहिए।

महल नहीं, एक छत काफी है,
आराम नहीं, बस राहत काफी है।

#नवनीतठाकुर न चाहिए कोई ताज, न तख्त-ओ-ताज, भूख लगी है, नहीं ख्वाब चाहिए। दो वक्त की सिर्फ रोटी, या थोड़ा सा अनाज चाहिए। महल नहीं, एक छत काफी है, आराम नहीं, बस राहत काफी है। #कविता

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नवनीत ठाकुर

आरज़ू भी कहां सुकूं देती,
सांस आती है पर नहीं जाती।
हर दुआ जैसे बेमकसद ठहरी,
 आवाज कहीं असर नहीं पाती।

यह सफर, यह तमाम रास्ते,
खुद से मिलने की खबर नहीं लाती।
किससे कहें ये दिल के किस्से,
कोई सुनता है पर नहीं सुन पाती।

आरज़ू और भी बढ़ती जाती है,
मगर मंज़िल की कोई खबर नहीं आती।
हर लम्हा ठहर-सा जाता है,
जैसे सांस चलती, मगर नहीं आती।

किसी मोड़ पर शायद जवाब मिले,
पर सवालों की गूंज थम नहीं पाती।
हमने खुद को भुला दिया है यहां,
और जिंदगी ये समझ नहीं पाती।

©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर 
आरज़ू भी कहां सुकूं देती,
सांस आती है पर नहीं जाती।
हर दुआ जैसे बेमकसद ठहरी,
कहीं आवाज असर नहीं पाती।

यह सफर, यह तमाम रास्ते,
खुद से मिलने की खबर नहीं लाती।

#नवनीतठाकुर आरज़ू भी कहां सुकूं देती, सांस आती है पर नहीं जाती। हर दुआ जैसे बेमकसद ठहरी, कहीं आवाज असर नहीं पाती। यह सफर, यह तमाम रास्ते, खुद से मिलने की खबर नहीं लाती। #शायरी

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नवनीत ठाकुर

Unsplash ज़िंदगी जैसे एक उलझी हुई डोर,
सुलझाते हैं, पर सुलझ नहीं पाती।
हर तरफ धुंध-सी फैली हुई है,
हकीकत कभी नजर नहीं आती।

आरज़ू में कटती हैं सदियां,
पर तमन्ना कभी मर नहीं पाती।
सफर भी है और मंज़िल भी है,
पर कोई राह समझ नहीं आती।

हर कदम पर ख्वाब टूटे यहां,
पर आंखों से उम्मीद नहीं जाती।
मौत से भी आगे कुछ होगा शायद,
वरना ये रूह क्यों डर नहीं पाती।

©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर 
ज़िंदगी जैसे एक उलझी हुई डोर,
सुलझाते हैं, पर सुलझ नहीं पाती।
हर तरफ धुंध-सा फैला हुआ है,
हकीकत कभी नजर नहीं आती।

आरज़ू में कटती हैं सदियां,
पर तमन्ना कभी मर नहीं पाती।

#नवनीतठाकुर ज़िंदगी जैसे एक उलझी हुई डोर, सुलझाते हैं, पर सुलझ नहीं पाती। हर तरफ धुंध-सा फैला हुआ है, हकीकत कभी नजर नहीं आती। आरज़ू में कटती हैं सदियां, पर तमन्ना कभी मर नहीं पाती। #शायरी

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नवनीत ठाकुर

न जाने क्यों उन्हें मेरा साथ गवारा लगने लगा।

हमसे हुए मुखातिब, तो हमारा साथ उन्हें जन्नत लगा।
हुआ है सामना मेरा आज जमाने की जिल्लत से,

हुए है वो भी रूबरू अपनी जिंदगी से हाल ही में,

आज उन्होंने जन्नत को भूल जाना ही बेहतर समझा।

©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर 
न जाने क्यों उन्हें मेरा साथ गवारा लगने लगा
हमसे हुए मुखातिब, तो हमारा साथ उन्हें जन्नत लगा,
हुआ है सामना मेरा आज जमाने की जिल्लत से,
हुए है वो भी रूबरू अपनी जिंदगी से हाल ही में,
आज उन्होंने जन्नत को भूल जाना ही बेहतर समझा

#नवनीतठाकुर न जाने क्यों उन्हें मेरा साथ गवारा लगने लगा हमसे हुए मुखातिब, तो हमारा साथ उन्हें जन्नत लगा, हुआ है सामना मेरा आज जमाने की जिल्लत से, हुए है वो भी रूबरू अपनी जिंदगी से हाल ही में, आज उन्होंने जन्नत को भूल जाना ही बेहतर समझा #कविता

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