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vijaykumargupta4829
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Vijay Kumar Gupta

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Vijay Kumar Gupta

विवेकानंद जयंती--युवा शक्ति
******************
विवेक में आनंद है, धर्म कर्म के ध्यान से,
मानव उत्थान हित, जीवन में चलिये।
युवा शक्ति प्रचंड हो, यथेष्ट तर्क ज्ञान से,
मानवता के पथ पे, दुनिया में रहिये।।

द्वेष छल पाखंड को, सदा सृजन कर्म से 
करो तुम खंड खंड , सदभाव रखिये।
विवेकानंद का पर्व, गर्व से है भरपूर
धर्म कर्म सेवा काज, अंगीकार करिये।।

(रचयिता: विजय गुप्ता दुर्ग छ ग)
12 01 2022

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Vijay Kumar Gupta

जन्म दिवस- काव्य पुष्प
******************* 

2021 त्रासदी निज हौसलों से पार किया
बहुत भली दुआएं लगीं जो अपनों ने दिया 
हर अंत  तो एक नई शुरुआत लेकर आए
गुजरते वर्ष का पल फिर नई सौगात लाए 
जब जन्म दिवस ही हो इकतीस दिसंबर
सारे विश्व की आशा है खुशियों की रहबर 
कुदरती करिश्मा जब किसी अंत का जश्न
नए वर्ष की पूर्व शाम जन्मदिन में हो मग्न 
स्वयं में निहित गुण प्रभु प्रतिसाद समझना
रिश्ते नातों के कष्टों में अवसाद नहीं रखना 
दायित्व निभाने सदा ततपर कभी नहीं मना
'सरिता' तो यथेष्ट जीवन में सुंदर प्रवाह बना 
जीवन में आबाद रहो और हमेशा खुश रहना
कर्म धर्म से सब क्लेश हटाकर सफल बनना 
अड़तीसवा  जन्म पर्व की तुम्हें असीम बधाई
एकजुट परिवार संग परस्पर करते रहें भलाई 
चौबीस वर्षों से सतत रखी निष्ठा अपने साथ
विजय इंडस्ट्रीज की सेवा में नित हाथों हाथ 
रचयिता: विजय कुमार गुप्ता,31 12 2021

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Vijay Kumar Gupta

              गुरु पूर्णिमा-गुरु दक्षिणा

गुरु दक्षिणा में वस्तु दान, सच्चा नहीं समाधान।
भंडारों के हीरे जवाहरात,दीक्षा में अनुचित बात
शिष्य मंशा उजागर, गुरु प्रतिसाद पुण्य बहाकर
एक दर्पण अक्स हजार, सत्य सामने है हर बार
दाता मंशा के मोती रत्न,झलक जाए कपट यत्न
गुरु जो करें पूर्ण शिक्षा,दीक्षा आदेश सही परीक्षा
(कवि विजय गुप्ता दुर्ग छ ग)

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Vijay Kumar Gupta

                        अनुशासन
                        *******
अनुशासन प्रयोग से, निखरे जीवन रंग
वक्र चाल करती सदा, लोक-लाज को भंग।

अनुशासन मार्ग बिना, कब बनती है धाक
साथी रिश्तेदार मध्य, जीवन होगा चाक।

यथा समय है सीख का, करिए अंगीकार
पिता बनोगे एक दिन, देना है संस्कार।

जब छोटों के सामने, खूब मचेगा शोर
करना याद 'विजय' तभी, नहीं चलेगा जोर।

अनुशासित मार्ग सदा, अधिक सही परिणाम
शाला सेना पुलिस को, करे सभी प्रणाम
(कवि विजय गुप्ता, दुर्ग)

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Vijay Kumar Gupta

होती उमंग बचपन से ही कार चलाने की
आसमां में उड़ते जहाज से ललचाने की
मन उड़ान बचपन की कैसे रोक लगा पाए।
पर धरातल सच्चाई आरजू अरमान जगाए
घर परिवार का छोटा होना भी जैसे शामत।
हर नई वस्तु पाना रहती बहुत बड़ी आफत
बड़ी बहन की शादी जैसे ही सम्पन्न हो गई।
क्लास छठी में लेडीज़ साईकल मेरी हो गई।
(कवि विजय गुप्ता, दुर्ग छ ग)
 Welcome to the Day 10 of #MeMoWriMo or the Memoir Writing Month. i.e. July.

Today, talk about your first bicycle. #myfirstbicycle #remembertowrite   #YourQuoteAndMine
Collaborating with YourQuote Baba

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Vijay Kumar Gupta

शिक्षा संस्कार का प्रारंभिक दौर,
भ्रामकता दूर करे।
कथनी करनी का अंतर,
प्रयासों से ही दूर करे।
वर्ष-दर-वर्ष व्यक्ति अपना,
व्यक्तित्व ही पालता।
विकास कदम ही व्यक्ति और,
व्यक्तित्व का वास्ता।
(विजय गुप्ता, दुर्ग,छ ग)

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Vijay Kumar Gupta

काम दाम के मोह जगत में,
हर वक़्त काल बुला रखा है।
'विजय' प्रेरणा जगे चेतना,
क्यों नहीं भाल पे लिखा रखा है।
जन साधारण भाषा तो कहती,
कैसा क्या हाल बना रखा है।
गूढ़ रहस्य से भरे मनुज को जाने,
क्या ये ढाल चढ़ा रखा है।
(विजय गुप्ता, दुर्ग छ ग)

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Vijay Kumar Gupta

मिलने जुलने के हर अवसर को,
खुद बला से टाल रखा है।
न शेर बना, न ढेर हुआ,
सिर्फ खाल दिखा रखा है।
जन साधारण भाषा तो कहती
कैसा कैसा क्या हाल बना रखा है।
गूढ़ रहस्य से भरे मनुज को माने,
क्या ये ढाल बना रखा है।
(विजय गुप्ता दुर्ग, छ ग)

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Vijay Kumar Gupta

आंखें सबकी दिखता सबको,
फिर भी कैसा जाल बना रखा है
काया माया के पीछे जग में,
जैसे सारा माल छुपा रखा है।
जन साधारण भाषा तो कहती
कैसा क्या हाल बना रखा है
गूढ़ रहस्य से भरे मनुज को जाने
क्या ये ढाल बना रखा है।
(विजय गुप्ता, दुर्ग छ ग)

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Vijay Kumar Gupta

जन साधारण भाषा तो कहती
कैसा क्या हाल बना रखा है
गूढ़ रहस्य से भरे मनुज को जानें
क्या ये ढाल चढ़ा रखा है
साधारण सी चालों  को भी
शतरंजी चाल बना रखा है
जाने क्या मिलता लोगों को
क्यों ये हाल बना रखा है
गूढ़ रहस्य से भरे मनुज को जाने
क्या ये ढाल बना रखा है।
(विजय गुप्ता, दुर्ग छ ग)

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