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ऋतुराज पपनै "क्षितिज"

स्वयं की निर्मित छंद हूँ मैं। ऋतुराज हूँ मैं बसंत हूँ मैं।।

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ऋतुराज पपनै "क्षितिज"

सीधे से एक साँचे को खंजर बना दिया।
दुनिया ने बेरुखी का कैसा मंजर बना दिया।
काँटों की चुभन लेकर बस जिये जा रहा हूँ।
गुलशन को फ़खत फूलों से बंजर बना दिया।

©ऋतुराज पपनै "क्षितिज" #selfhate 
#खंजर_बंजर_मंजर
#ऋतुराज_पपनै
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ऋतुराज पपनै "क्षितिज"

हम दर्द लिख रहे थे।


लोग शायरी बोलकर चले गए।

©ऋतुराज पपनै "क्षितिज" #PenPaper
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ऋतुराज पपनै "क्षितिज"

White  ✍️"एक नयी यात्ना"

यात्नाओं की राहों में,
सफ़र करते करते।
यात्नाओं में ज़िन्दगी की
बसर करते-करते।
हर मोड़ यात्नाओं की।
ये होड़ यात्नाओं की।
पर्वत यात्नाओं के
जंगल यात्नाओं के।
सागर यात्नाओं के 
दलदल यात्नाओं के।
रुदन यात्नाओं का,
ये स्वर यात्नाओं के।
बंजर यात्नाओं के,
निर्झर यात्नाओं के।
दूर किसी बस्ती में
इक बोर्ड पर लिखा था
"एक नयी यात्रा"
चेहरे पर मुस्कान लिए
चश्मा पहन के देखा तो
उस पर भी लिखा था "➡️एक नयी यात्ना"।
(*यात्ना= पीड़ा/दर्द)

©ऋतुराज पपनै "क्षितिज" #एक_नयी_यात्ना
#Rituraj_Papnai 
#ऋतुराज_पपनै
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ऋतुराज पपनै "क्षितिज"

White    अपनी राहों के अकेले हफसफर हैं।
यूँ ही नहीं हम सबसे बेखबर हैं।
पैसे के बाजारों में,कौन पराया अपना कौन?
लाशें भी यहाँ बिक जाएं,हो जाएं जब मुर्दे मौन।

©ऋतुराज पपनै "क्षितिज" #sad_quotes 
#Rituraj_Papnai 
#ऋतुराज_पपनै
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ऋतुराज पपनै "क्षितिज"

White "जो बेरोजगार होते हैं न साहब!
उन्हें बार-बार अहसास दिलाया जाता है कि वो बेरोजगार हैं।"

©ऋतुराज पपनै "क्षितिज" #बेरोजगारी 
#ऋतुराज
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ऋतुराज पपनै "क्षितिज"

White कान्हा तेरे प्रीत को तरसी,
भइ बाँवरी पीर।
प्रीत जुरी मैं माला सी,
और टूटी तो जंजीर।।

©ऋतुराज पपनै "क्षितिज" #मीरा
#ऋतुराज
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ऋतुराज पपनै "क्षितिज"

सूर्यास्त हुआ इच्छाओं का
आकांक्षाओं और आशाओं का।
भावनाओं में विरक्ति
आत्मा है परखती।
देह जल रहा विकारों से
मन जल रहा विचारों से।
अन्तर्मन में द्वंद्व संजोये।
मेघ क्षीर के अश्रु पिरोये।
तन में क्यों अनुराग ज्येष्ठ?
मन में फिर बैराग श्रेष्ठ।
मोह-माया का भीषण छल
भौतिकता का कोलाहल।
उन सब में इक आग है श्रेष्ठ
जलती चिता की राख है श्रेष्ठ।

©ऋतुराज पपनै "क्षितिज" #SunSet 
#ऋतुराज_पपनै
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ऋतुराज पपनै "क्षितिज"

White   अपनी राहों के अकेले हफसफर हैं।
यूँ ही नहीं हम सबसे बेखबर हैं।
पैसे के बाजारों में,कौन पराया अपना कौन?
लाशें भी यहाँ बिक जाएं,हो जाएं जब मुर्दे मौन।

©ऋतुराज पपनै "क्षितिज" #bad_time  
#ऋतुराज_पपनै_क्षितिज
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ऋतुराज पपनै "क्षितिज"

White सूर्यास्त हुआ इच्छाओं का
आकांक्षाओं और आशाओं का।
भावनाओं में विरक्ति
आत्मा है परखती।
देह जल रहा विकारों से
मन जल रहा विचारों से।
अन्तर्मन में द्वंद्व संजोये।
मेघ क्षीर के अश्रु पिरोये।
तन में क्यों अनुराग ज्येष्ठ?
मन में फिर बैराग श्रेष्ठ।
मोह-माया का भीषण छल
भौतिकता का कोलाहल।
उन सब में इक आग है श्रेष्ठ
जलती चिता की राग श्रेष्ठ।

©ऋतुराज पपनै "क्षितिज" #सूर्यास्त
#ऋतुराज
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ऋतुराज पपनै "क्षितिज"

White  थोड़ा सा ही बचा है,फिर भी सता रहा है।
हाथ में थामे खंजर,वो दिसम्बर जा रहा है।।

©ऋतुराज पपनै "क्षितिज" #दिसम्बर
#धोखेबाज_दोस्त
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