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arunkumarvishwas7599
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Arun Kumar Vishwas

poet

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Arun Kumar Vishwas

खुशी का हम उत्थान देखेंगे
रंगीन आज परिधान देखेंगे

गिले भूलकर लग रहें है गले 
अब असली हिंदुस्तान देखेंगे

©Arun Kumar Vishwas #Holi
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Arun Kumar Vishwas

अब याद नहीं मेरा ठिकाना मुझको
दुनिया मान बैठी है दीवाना मुझको

आंखों में शायद तेरी तस्वीर रहती है
बड़े गौर से देखता है ज़माना मुझको

©Arun Kumar Vishwas
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Arun Kumar Vishwas

तूफान में आई लहरों से वादा करके बैठे है
थोड़ा कम नहीं बहुत ज्यादा करके बैठे है

हम किसी भी माहौल में हार ही नहीं सकते
हम खुद के जीतने का इरादा करके बैठे है

©Arun Kumar Vishwas #atthetop
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Arun Kumar Vishwas

सूखी जमीं के लिए नहर है बेटियां
दुश्मनों के लिए कहर है बेटियां

कण - कण सुगन्धित है इन्हीं से
भारत की अमर धरोहर है बेटियां

©Arun Kumar Vishwas
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Arun Kumar Vishwas

ram lala ayodhya mandir सुबह महल में और जंगल में शाम हो जाना
खत्म सब क्रोध,लोभ,मोह और काम हो जाना

अरे आग से ही अपनी प्यास बुझानी पड़ती है
इतना आसान नहीं है किसी का राम हो जाना

©Arun Kumar Vishwas #ramlalaayodhyamandir #
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Arun Kumar Vishwas

अपनी कहानियों से हैरान नहीं हूं मैं
उससे बिछड़ कर परेशान नहीं हूं मैं

हथेली की मेंहदी में नाम छिपाया उसने
मैं न समझूं इतना भी नादान नहीं हूं मैं

जब चाहा,जो चाहा,जहां चाहा फेंक दिया
अरे रकीब हूं किसी का कूड़ेदान नहीं हूं मैं

©Arun Kumar Vishwas
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Arun Kumar Vishwas

लो सब कुछ कर दिया नाम पिता पर

अब तो है बस आसूं मुझमें
और दिखे अब पीड़ाएं मुझमें
बचपन तो बस यादों में है
आंखों में है ज्वालाएं मुझमें
पल–पल ये रटती तुमको
जिव्हा का ये काम पिता पर

लो सब कुछ कर दिया नाम पिता पर

मंदिर देखा मस्जिद देखा
और है देखा गिरजाघर
दिन में है बेचैनी मुझमें और
रस्ता देखूं रतिया भर
दुनिया सारे तीर्थ घूमें
मेरे है सब धाम पिता पर

लो कर दिया सब कुछ नाम पिता पर

रस्तों पर देखो कंकड़ है 
और बगिया है अब सूनी सारी
निर्बल,दुर्बल सी काया है
हिम्मत ख़त्म है अंदरूनी सारी
मंजिल हमको मिली नहीं है
रस्ते में ही हो गई शाम पिता पर

लो कर दिया सब कुछ नाम पिता पर

कहां दिखेगा चेहरा उसका
कौन निभाएगा सब रस्में
तुमनें छोड़ा जग रूठा है
क्यों तोड़ दी तुमने सारी कसमें
सूरज है ये चंदा है ये 
मिटा सभी का ताम पिता पर

लो कर दिया सब कुछ नाम पिता पर

धरती छूटी अंबर छूटा
और छूट गए हैं तारें सारे
सारी खुशियां छिन–बिन हो गई 
लगें है आसूं हाथ हमारे
रिश्तें सबकी कीमत तौले
फीके है सब दाम पिता पर

लो कर दिया सब कुछ नाम पिता पर

©Arun Kumar Vishwas #GoldenHour
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Arun Kumar Vishwas

कितने संगम हो रहें है गंगा तेरी रेत में
कितने मोती बो रहें है गंगा तेरी रेत में

पांव पे खड़े हो गए है गंगा तेरी रेत में
गोद में ही बड़े हो गए है  गंगा तेरी रेत में

अनगिनत पाप धुले है गंगा तेरी रेत में
वृहद प्रश्न भी तो खुले है गंगा तेरी रेत में

रोज़ी–रोटी चलती है गंगा तेरी रेत में
हजारों बस्तियां बसती है गंगा तेरी रेत में

शिखर सा सम्मान मिला गंगा तेरी रेत में
मुझको हिंदुस्तान मिला गंगा तेरी रेत में

अनेकों संस्कार समाहित है गंगा तेरी रेत में
पक्षी तक भी आह्लादित है गंगा तेरी रेत में

मौन अधरों से संवाद है गंगा तेरी रेत में
यहां हर शै आजाद है गंगा तेरी रेत में

सदियों का इतिहास है गंगा तेरी रेत में
पल प्रति पल उल्लास है गंगा तेरी रेत में

सभी के पाप धुलते है गंगा तेरी रेत में
निश्चल भाव फिरते है  गंगा तेरी रेत में

वार्षिक नगरी बसती है गंगा तेरी रेत में
दीवारें तक भी हंसती है गंगा तेरी रेत में 

कितने जलपात्र चल रहे गंगा तेरी रेत में
कितने नाविक पल रहे गंगा तेरी रेत में

हम भय नहीं खाते है गंगा तेरी रेत में
निर्भीक हो मुस्कराते है गंगा तेरी रेत में

©Arun Kumar Vishwas
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Arun Kumar Vishwas

साल दर साल मिलते है हम बहनों से बुआओं से
धरा जीवंत है राखी के धागों से और दुआओं से

एक अजीब सी मिसाल है इस रक्षा सूत्र के बंधन में
इससे कुल दीपक जलता है बुझता नहीं हवाओं से

©Arun Kumar Vishwas #rakshabandhan poem
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Arun Kumar Vishwas

मेरी ज़िंदगी में अब और कोई बचा नहीं है
ऐसा कौन है जग में जिसे तूने रचा नहीं है

कमल के समान मुख है,सप्तरंगी ललाट है
बड़ा मूर्ख होगा फिर वो जिसे तू जँचा नहीं है

बहुत ही आत्ममुग्ध हूँ यही मैं सोचकर बस 
मेरा है ही क्या यहाँ पर जो मेरा बचा नही है

©Arun Kumar Vishwas #ramsita
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