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praveen muntjir

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praveen muntjir

Alone  मरने वाले खैर हैं वेबस,
जीने वाले भी कमाल करते हैं।
जिनकी हिम्मत न हुई,मेरे सामने कभी बोलने की,
आज वही सवाल पूछने की मजाल करते हैं।

©praveen muntjir #alone
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praveen muntjir

दूर जाना हीं था तुमको, तो पास आए क्यों l
जो सपने तोड़ने थे तो सजाऐ है क्यों।
तड़पना अगर मेरे नसीब में है तो तड़प लूंगा मगर,
क्या तुम भी मेरे बगैर चैन से सो पाओगे क्यो।
यही उम्मीद थी तुमसे मिलूं और बातें करू,
तुम न बात करते हो ना जवाब देते हो क्यों।
ऐसे साथ नहीं निभाये जाते,
और बातें बड़ी-बड़ी करते हो क्यों ।

©praveen muntjir #Anhoni
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praveen muntjir

अच्छा ख़ासा बैठे बैठे गुम हो जाता हूँ
अब मैं अक्सर मैं नहीं रहता तुम हो जाता हूँ

©praveen muntjir #MereKhayaal
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praveen muntjir

नित नये प्रयोग काव्य मै करना है,
बाधाएं आती है आए।
हमे न रूकना है ,ठहरना है।
जीवन मूल्य को सार्थक करना है,
बाधाएं आती है आए।
पोखरण मै बुद्ध मुस्कराए,
बाधाएं आती है आए।

©praveen muntjir #legend atalji
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praveen muntjir

ओस के मोती चुन कर ला रहा है । 
यह देखो आंधियों में भी कोई दीपक जला रहा है।
मिल रहा है सभी से अकेला होकर भी,
अकेला चांद ही सभी को उजेला दे रहा है ।
मुझे तन्हा ही छोड़ दे कुछ देर,
खुद को खुद से मिला दूं  नही तो वक्त बीता जा रहा  है ।
मौसम बदला मिजाज बदला,
तुम्हें बदलते देखा सब कुछ बदलता नजर आ रहा है।
मेरे हार के दिनों के दोस्त भी अजीब है,
कामयाबी मिली तो सब कुछ दूर जाता नजर आ रहा है।
जिन हवाओं में लोग घर से ना निकले,
उन हवाऔ में कोई अपना आंचल लहरा रहा है । 
जिन कागजों पर दवाएं लिखी जाती थी कभी,
उन्ही कागजो पर"प्रवीण" गजल लिख रहा है 
कहां जाना था कहां पहुंच गए,
यह राही कब से मंजिल का गीत गा रहा है ।
मंजिल मिलेगी इतना तय है,
हार के बाद ही जीत का मजा आ रहा है।
मेरी ग़ज़ल की खुशबू चारों तरफ फैल रही है,
यह अगली सदी का नया शायर आ रहा है ।
बुजुर्गों की उम्मीद थी सरकारी नौकर बनू,
हम तो बादशाह हैं फकीरी में भी आजादी का मजा आ रहा है।

©praveen muntjir #Independence2021
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praveen muntjir

बचपन मे स्वतंत्रता दिवस ही वह त्यौहार था जिसमे हम बहुत खुस होते थे।
तिरंगे की टोपिया,चूडियां चहरे भी तिरंगे से दिखाई देते थे ।
हम महके महके से और हाथो मे तिरंगा लिए घूमते रहते थे।

©praveen muntjir happy independence day

#India2021

happy independence day #India2021

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praveen muntjir

सारे शहर में सावन बरसा,फिर भी इक हम थे जो रेगिस्तान ही रहे l
कुछ हुआ नहीं, कुछ किया नहीं
न नाम हुआ, ना काम हुआ
पर लोगों में यूं ही बदनाम रहे l
सारे शहर में सावन बरसा फिर भी ..........
पहली बारिश की आशा में
घर से निकला इक प्यासा में
न इस जमीन के, न उस आसमान के रहे ।
सारे शहर में सावन बरसा फिर भी.............
चुनौतियां सबकी रख ली मैंने
एक कठिन राह चुन ली मैंने
हार नहीं मानी मैंने, बस जिद पर यूं ही अड़े रहे l
सारे शहर में सावन बरसा फिर भी..............
गिरकर उठना, उठकर चलना
ठोकरो ने सिखा दिया मुझे
सीखा बहुत कुछ हमने मगर, न किसी काम के रहे ।
सारे शहर में सावन बरसा फिर भी.............
ना हार हुई,ना जीत हुई
जैसे चलती घड़ी की सुई
बस बार-बार वही राह रहे l
सारे शहर में सावन बरसा फिर भी..........
पहले कुछ दिन खेल लगी
जिंदगी समझते देर लगी
जिंदगी हमसे और हम जिंदगी से खेलते रहे l
सारे शहर में सावन बरसा फिर भी .........
पाल लिया मैंने सपना
जिसे करने चला था अपना
जीतकर सब कुछ हारते रहे ।
सारे शहर में सावन बरसा फिर भी............
अपने खोए,सपने टूटे
फूल बोये, कांटे मिले
उन कांटो पर चलकर, दुनिया को दिखलाते रहे ।
सारे शहर में सावन बरसा हम फिर भी..........
अजीब सी उदासी अंतर्मन में
रहा हमेशा खालीपन जीवन में
"प्रवीण" भीड से हाथ मिलाते रहे ।
सारे शहर में सावन बरसा फिर भी ........
एक मेरा अकड़पन और भुलक्कड़पन
ले डूबा मुझे उस दरिया में
जिसमे रोज नाव चलाते रहे।
सारे शहर में सावन बरसा फिर भी.......
बंजरपन और अड़ियल रवैया
कौन है मेरी नाव खिबैया
हम अकेले ही समुंदर में गोते खाते रहे।
सारे शहर में सावन बरसा फिर भी.........
अपने रूठे, पराए छूटे
लाख जोड़े फिर भी रिश्ते टूटे
और हम टुकड़े-टुकड़े बटते रहे ।
सारे शहर में सावन बरसा फिर भी...........
खिलती कलियां, बाग की गलियां
हार गले का कान की बालियां
ये सब बाजार के भाव बिकते रहे
सारे शहर में सावन बरसा फिर भी इक हम थे जो रेगिस्तान ही रहे ।

©praveen muntjir #WorldOrganDonationDay
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praveen muntjir

बहक जाऊं उससे पहले संभाल ले मुझको l
हवा की तरह न बह जाऊं संभाल ले मुझको l
शीशा हूं टूट कर बिखर न जाऊं,
इन पत्थरों के शहर से निकाल ले मुझको ।
उम्र भर तेरा इंतजार क्या यूं ही करना पड़ेगा,
किसी रोज आ और थाम ले मुझको ।
तनहा ना कटेगी जिंदगी फकत मेरे से,
अपने सीने से लगा और तू कभी ना जुदा कर मुझको।
मुझ में अब  सहन करने की क्षमता नहीं रही,
अपना बनाकर खुद में समा ले मुझको।

©praveen muntjir #NationalSimplicityDay
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praveen muntjir

तुम्हे चाहने के अलावा और क्या काम किये है मैने ।
जो बर्षो हरे होते रहे जख्म, बो ही सिये है मैने ।

दूरियाँ बढी दरिया के किनारो की तरह,
तुम उस किनारे रहे, इस किनारे जिये है मैने ।

मुझसे बिछड कर किस तरह संभाला होगा खुद को,
याद को तुम्हारी जिस तरह ओढकर सोये है मैने ।

बडा ताज्जुब सा लगता है तुम भी नही भूल पायी अब तक मुझे,
जिस तरह भूल कर भी साथ गुजरे दिन नही भुलाये है मैने ।

अभिनय जिंदगी के रंगमंच पर दोनों ने ही निभाए है,
किस्मत ने जो भी तोहफे दिये है,हंस कर मंजूर किये है मैने ।

समय के साथ हर जख्म भर जाता है "प्रबीण"
तुमसे बिछडने के बाद अश्क ही अश्क पिये है मैने ।

©praveen muntjir #Azaadkalakaar
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praveen muntjir

निर्बल नहीं नारी आज की ।
आपनी आन की खातिर,
दाग गोली सीने मे दुश्मन की।
नारी के मन मै हो चिंगारी फूलन सी

©praveen muntjir
  मन में हो चिंगारी फूलन सी

#BanditQueen

मन में हो चिंगारी फूलन सी #BanditQueen

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