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भगसिंह मरूधरियाई

B.Sc(Physics) Delhi university. मरू-रेगिस्तान से आया हूँ , अंबु-समंदर बनाना जानता हूँ। मैं कवि गांव का बाशिंदा, रवि लांघना जानता हूँ।।

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भगसिंह मरूधरियाई

वो मस्सला रात का था
मैं जिसे इश्क समझ बैठा था, 
मैंने फिर देर कर दी
किसी गैर ने उसकी सवेर कर दी।

©भगसिंह मरूधरियाई #ishk #मुहब्बत
#Happiness
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भगसिंह मरूधरियाई

मेरे प्यारे अधूरे सपनें अभी अधूरे है स्वप्न मिरे,अभी प्रयासों से सजाने है
पगडंडी शुरू हुई है,रास्ते अभी बनाने है,
ये नदियाँ,झीलें,दरिया सब किसकी बाधाएं है
बहाकर पसीना मुझे, समंदर अभी डुबाने है।

यूँ पानी में परछाई को चाँद समझना फितरत नहीं
आसमां चीरकर उसकी धरा पे नाम अभी गङाने है #सपनें
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भगसिंह मरूधरियाई

हवा ने उनकी ज़ुल्फ़ों को कुछ यूँ छुआ, लगा यूँ मानो अप्सरा का है आगमन हुआ

वो रुखसार चमके अचानक किसी आफताब से
नजरें ठप्प,इक पल में दिल उस अग्यार का हुआ।

न हवा ने किया गुनाह न कोई कसूर उसका था
फिर भी मेरे चैन का कत्ल उन्हीं से है हुआ। #ज़ुल्फ_घटा
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भगसिंह मरूधरियाई

वो धरती है मेरी मैं चाँद उसका
पास आने भी नहीं देती,और कहीं जाने भी नहीं देती। #चाँद_और_धरती_सा_रिश्ता
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भगसिंह मरूधरियाई

मेरा प्यारा घर माँ की रोटी छोङ, रोटी कमाने को
बिछङा हूँ घर से, घर बनाने को
पडोस की खबर से बेखबर,सारा जहाँ जानने को
पापा का अनुभव छोङ,किताबों में जिंदगी पाने को
"ए प्यारे घर मिरे"
दूर हूँ तुझसे जरा और पास आने को। #जहाँ_से_दूर_होके_जहाँ_जानने_को
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भगसिंह मरूधरियाई

कल रात के ख़्वाब में जब उनसे मुलाकात हुई मेरी आँख उसमें फिर खो गई
गया था जो मुकम्मल करने 
वो बात अधूरी फिर रह गई।
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भगसिंह मरूधरियाई

हज़ार ख़्वाहिशों का बोझ लिए चलते हैं, इक रोज की बात नही 
हर रोज लिए चलते है
बगैर नींदों के पाल रखे है सपने जो
आँखों में उनकी तस्वीर लिए चलते है।
यूँ तो हमें भी पुकारा था गली-ए-इश्क़ ने
पर याद था हमें सर पर कुछ कर्ज लिए चलते है। #ख्वाहिशें
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भगसिंह मरूधरियाई

जिगर का टुकड़ा गुलशन सा खिला हुआ 
आफताब सा चमकता हुआ 
सागर सा शांत,लहरों सा मचलता हुआ
आसमान सी आभा लिए 
क्षितिज सा बहता हुआ 
खुद में बर्फ सी ठण्डक लिए
मुझमें अगन इक लगाता हुआ,
तू जिगर का टुकड़ा मिरा,
मुझसे टुकड़ा होकर जाता हुआ,
इक हाल तो पूछता जा
मुझे मुझसे ही ले जाता हुआ। #जिगर
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भगसिंह मरूधरियाई

तुमसे प्यार में अब पहल करने का सोचा है 
तुझे ख्वाब से निकालकर हकीकत करने का सोचा है
दुनिया के डर को दरकिनार करके अब
तुझे
किनारे से किनारे तक अपना करने का सोचा है।
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भगसिंह मरूधरियाई

आँखों की जुबां भी पढ़ लेनी चाहिए,  जुबां की चुप्पी भी समझ लेनी चाहिए
हिचकियों में दिन भर उलझने से अच्छा है
इक नाम भुलाए हुए का ले लेना चाहिए। #आँखों_की_चुप्पी
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