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hajikarbalai2802
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Haji Karbalai

जो दिल में आता है, लिख देता हूं

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Haji Karbalai

मुझे इस तरह से जीने का कोई शौक न था,
क्या कहूं दोस्त मेरे मुझसा कोई फौक़* न था। * फौक उत्कृष्ठ
आसमां छूने की ख्वाहिश थी मेरे सीने में,
इन जमीं वालो से मिलने में कोई ज़ौक़* न था। * जायका
कुछ कहूं या ना कहूं, कैसे कहूं, किससे कहूं,
इन सवालों का मेरे दिल में कोई तौक़* न था। * बेड़ी जंजीर
मेरी फेहरिस्त में थे दोस्तो के नाम बहुत,
पर मेरे दर्द से उनको भी कोई ज़ौक़ न था। *लज़्जत जायका
ना रहा दिल में कोई मैल, ना बदगुमान रहा,
मैं तो हद से कभी मगरुर या माजौक़़* न था। * असीमित, ऊपर
क्या बयां "नूर" करे अपनी दास्ताने गम,
रंग आंसू के बता देंगे ये पुर-शौक़* न था। * दिलचस्प
हाजी आफाक अहमद हैदरी "नूर"

©Haji Karbalai
  #runaway
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Haji Karbalai

ख्वाहिश अधूरी रह गई, ख्वाबों के बाजार में,
और झूठ ही बिकता रहा झूठों के संसार में।
जिस तरफ दौड़ाई नजरें मतलबी दिखते रहे,
सब मगन मिलते रहे खुदगर्ज़ी के व्यापार में।
दोस्त बनके, साथ रह के, वो दगा करते रहे,
हम वफा करते रहे, बरबाद हो के प्यार में।
लोग रखते है यहां चेहरो पे चेहरों का नकाब,
सच छुपा कर, झूठ को बेचा किए बाज़ार में।
सामने आती रही गलती नजर, लेकिन हुजूर,
कोई पछतावा नजर आता नही गुफ्तार* में। 
*बातचीत का ढंग
हर दफा गलती पे उसको, मैंने समझाया मगर,
वो सितम करता गया, साथ में, तकरार में
बेवफाई की यहां बातें सभी में आम है
"नूर" छपवा दो खबर ये आज के अखबार में।
हाजी आफाक अहमद हैदरी "नूर"

©Haji Karbalai
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Haji Karbalai

कुछ ख्वाब अधूरे लगते हैं
कुछ राज़ दिलों में रहते हैं।
जो बात नजर से होती है
वो बात कहां हम कहते हैं।
गम को किसी के दामन से,
हम कोसो दूर ही रखते हैं।
दोस्त कभी हो मुश्किल में 
हम साथ साए से चलते है।
जो गिरते है नजरो से फिर
ना नजरो में वो उठते हैं।
धोखा देने वाले भी फिर,
अपने आप में घुलते हैं।
झूठ से पावं जमाने वाले,
"नूर" कहां वो फलते है।

©Haji Karbalai
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Haji Karbalai

कुछ ख्वाब अधूरे लगते हैं
कुछ राज़ दिलों में रहते हैं।
जो बात नजर से होती है
वो बात कहां हम कहते हैं।
गम को किसी के दामन से,
हम कोसो दूर ही रखते हैं।
दोस्त कभी हो मुश्किल में 
हम साथ साए से चलते है।
जो गिरते है नजरो से फिर
ना नजरो में वो उठते हैं।
धोखा देने वाले भी फिर,
अपने आप में घुलते हैं।
झूठ से पावं जमाने वाले,
"नूर" कहां वो फलते है।

©Haji Karbalai
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Haji Karbalai

मोहब्बत को सज़ा माना नही है
सलीका इश्क़ का जाना नही है। 
किसी के दीद को बेताब नज़रे,
फरेबी दिल को पहचाना नहीं है।
बड़ी बेताबी सी दिल में लगी है,
तड़पते दिल को समझाना नही है
नज़र रहती है उनके रास्ते पर,
पता है उनको जब आना नही है
फरेबी इश्क की बेखौफ नजरे,
सितम आंखो का शर्माना नही है।
किसी के इश्क़ में ही डूब जाना
मोहब्बत का ये पैमाना नहीं है।
किसी को टूट के चाहने की सज़ा 
जिंदगी जीना है, मर जाना नही है
मीठा एहसास, वो भी दर्द भरा,
झूठे वादो से दिल माना नही है 
कहां है "नूर" सी सच्ची मोहब्बत,
सिवा नफरत के ठिकाना नहीं है।

©Haji Karbalai

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Haji Karbalai

तू सवाल है तो मैं जवाब हूं
तेरी जिंदगी की किताब हूं
तेरे इश्क के रंग में रंग गया
मैं वो दरिया ए बेहिसाब हूं
कड़ी धूप में तेरी छांव बन,
मैं शजर नुमा आफताब हूं
जो सताए सोते हुए तुझे 
शबो रोज़ का मैं वो ख्वाब हूं 
तू महकते बागों का गुल बने,
मैं गुलों में खिलता गुलाब हूं 
तू नजर उठा आसमां तो देख
तू फलक मैं तेरा माहताब हूं
तू है शबनमी तू इक "नूर" है,
तेरी रोशनी का मैं हिजाब हूं।
हाजी आफाक अहमद हैदरी "नूर"
27 12 2022

©Haji Karbalai #WinterEve तू सवाल है तो मैं जवाब हूं

#WinterEve तू सवाल है तो मैं जवाब हूं #शायरी

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