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sanjay6931927865340
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संजय श्रीवास्तव

मुझसे मिलोगे तो दिल में उतर जाऊंगा

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संजय श्रीवास्तव

White 
#बारिश का ही मौसम था
भर गया था ताल पोखरा
तृप्त हो गयी  थी प्यासी धरा
#चांदनी रात की बिखरी किरणें
धरा पर उतरती 
कानों गूंजती
झींगुर की आवाज
निस्तब्धता को भंग करती
टर्र टर्र करते दादुर की आवाज
अचानक ही तुम आयी थी
पानी से सराबोर भीगे कपड़ो में
हाथों में लिये भरे हुए आमों के टोकरे 
जो शायद अभी अभी टपके थे
टपक रहीं थीं पानी की बूंदें 
तुम्हारे सुर्ख गालों पर
जैसे कोई श्वेत मोती 
निकल आया हो सीप से बाहर
नज़रों से नजर ने बात की 
शायद अनछुआ कोई अहसास थी
चली गयी थी तुम छोड़कर
भरे हुये आमों के टोकरे को
जिस पर लिखा दिया था
#प्रेम की मूक परिभाषा
सच कहूं!क्या हुआ 
हमारे प्रेम में #मिलन की
कोई डगर नहीं है
तू  आज अगर मेरा
#हमसफ़र नहीं है
मैं तो आज भी जीता हूं तुममें 
उन हसीन पलों के साथ
जिसमें शामिल हैं
तेरी मासूम मुहब्बत के जज़्बात

©संजय श्रीवास्तव #love_shayari
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संजय श्रीवास्तव

White 
#बारिश का ही मौसम था
भर गया था ताल पोखरा
तृप्त हो गयी  थी प्यासी धरा
#चांदनी रात की बिखरी किरणें
धरा पर उतरती 
कानों गूंजती
झींगुर की आवाज
निस्तब्धता को भंग करती
टर्र टर्र करते दादुर की आवाज
अचानक ही तुम आयी थी
पानी से सराबोर भीगे कपड़ो में
हाथों में लिये भरे हुए आमों के टोकरे 
जो शायद अभी अभी टपके थे
टपक रहीं थीं पानी की बूंदें 
तुम्हारे सुर्ख गालों पर
जैसे कोई श्वेत मोती 
निकल आया हो सीप से बाहर
नज़रों से नजर ने बात की 
शायद अनछुआ कोई अहसास थी
चली गयी थी तुम छोड़कर
भरे हुये आमों के टोकरे को
जिस पर लिखा दिया था
#प्रेम की मूक परिभाषा
सच कहूं!क्या हुआ 
हमारे प्रेम में #मिलन की
कोई डगर नहीं है
तू  आज अगर मेरा
#हमसफ़र नहीं है
मैं तो आज भी जीता हूं तुममें 
उन हसीन पलों के साथ
जिसमें शामिल हैं
तेरी मासूम मुहब्बत के जज़्बात

©संजय श्रीवास्तव #Sad_Status
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संजय श्रीवास्तव

White 
वो है बेशक बेवकूफ तुम्हे अकल तो है
तुम्हारे जैसे ही उसकी भी शक्ल तो है

वो भी निकला है जनाब धूप में तपकर
खेतों में खड़ी पास उसके फसल तो है

उसके कंधे पर बंदूक रख चलाने वाले
बरबाद करने में तुम्हारा भी दखल तो है

जीने दोगे क्या उसको उसी के अंदाज में 
है वो खामोश मगर दिल में हलचल तो है

फंस गया वो  सियासत दानों की चंगुल में 
अभी गनीमत है संजय पांव में चप्पल तो है

©संजय श्रीवास्तव #love_shayari
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संजय श्रीवास्तव

White 
वो है बेशक बेवकूफ तुम्हे अकल तो है
तुम्हारे जैसे ही उसकी भी शक्ल तो है

वो भी निकला है जनाब धूप में तपकर
खेतों में खड़ी पास उसके फसल तो है

उसके कंधे पर बंदूक रख चलाने वाले
बरबाद करने में तुम्हारा भी दखल तो है

जीने दोगे क्या उसको उसी के अंदाज में 
है वो खामोश मगर दिल में हलचल तो है

फंस गया वो  सियासत दानों की चंगुल में 
अभी गनीमत है संजय पांव में चप्पल तो है

©संजय श्रीवास्तव #Sad_Status
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संजय श्रीवास्तव

White 
एक मैं हूं और साथ -- मेरा अतीत है
मेरी तन्हाई में लिखे हुए कुछ गीत है

 वो भी दौर था हमारी मुफलिसी का
 आज हूं  जो भी मेरी कलम की जीत है

उनकी रूसवाईयो का ग़म नहीं है मुझको
यही है दुनिया और यही इसकी रीत है

रात ललचाई सी मुझको नहीं सोने देती
ख्वाब में फिर से आने वाला मेरा मीत है

यूं ही मिल जाये तो पुछेंगे उससे संजय
सच बताना  क्या अभी भी तुमको प्रीत है

©संजय श्रीवास्तव #rainy_season
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संजय श्रीवास्तव

White उसी ने हमारा मुकद्दर बदला
 जो हमारे  मुकद्दर में नहीं था

©संजय श्रीवास्तव #love_shayari
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संजय श्रीवास्तव

White आदमी अच्छा है उसको ---जख्म भी मिला होगा
कभी कोई गिला शिकवा --नहीं उसने किया होगा
किसी चारागर की उसको -- जरूरत ही नहीं होती
दर्द सहने की आदत है -----दर्द हंसकर सहा होगा

©संजय श्रीवास्तव #good_night
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संजय श्रीवास्तव

White आदमी अच्छा है उसको ---जख्म भी मिला होगा
कभी कोई गिला शिकवा --नहीं उसने किया होगा
किसी चारागर की उसको -- जरूरत ही नहीं होती
दर्द सहने की आदत है -----दर्द हंसकर सहा होगा

©संजय श्रीवास्तव #sad_quotes
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संजय श्रीवास्तव

White 

उसकी डायरी के पन्नों में -एक पेज हमारा था

यही सोचकर हमने तन्हा -जिंदगी को गुजारा था


कोई मुश्किल भी नहीं था - कर लेना उसको हासिल 
उसकी चाहत ने भी तो  किया  मुझको इशारा था


सोचता हूं मैं जो उसको तो  सोचता ही रह जाता हूं 
पास मेरे उसकी यादों का एक  खूबसूरत पिटारा था


बिछड़ते वक्त मेरे हिस्से में -उसकी वही डायरी  आयी 
"हां तुम मेरे हो " लिखकर  वही एक पेज फाड़ा था


 बाद मुद्दत मेरे कानों में- उनकी आवाज जो गूंजी थी 
बता तुमने मोबाईल को संजय-कितनी देर निहारा था

©संजय श्रीवास्तव #Thinking
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संजय श्रीवास्तव

White 
फिर वही ख्वाब मुझको वो दिखाता क्यों है 
भूल गये जिन लम्हों को याद दिलाता क्यों है 

बिछड़ गये हम कि बिछड़ना भी  जरूरी था
वस्ल की उम्मीद फिर दिल में जगाता क्यों है

एक सितारा छोड़कर चले आये हम दूर बहुत
वही  सितारा फिर आसमां में टिमटिमाता क्यों है

आईना तुम भी औरों की तरह बेवफा ही निकले
 मेरे चेहरे में किसी और का चेहरा लगाता क्यों है

गुल गुलशन गुलफाम गुलनशीं और क्या क्या
रखा था नाम कभी संजय बेवफा बुलाता क्यों है

©संजय श्रीवास्तव #Sad_Status
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