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shaileshkumar6178
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shailesh kumar (शेलमाही)

सोचता हूं तो लिखता हूं।तभी लगता है आज भी जिंदा हूं ।

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shailesh kumar (शेलमाही)

खुद से खुद को हार गये आज हम।
उड़ने चले थे। हवाओं के विपरीत।
देखो ना ज़मी पर आ गिरे आज हम।

लड़ सकते थे ज़माने से हम।
देखो ना आज तुम्हारी मोह्बत से ही हार बैठे हम ।

खेल वह था जिंदगी का जिस मे पता था अन्त मे हारेंगे हम।
मना बैठे थे इस दिल को अपने फिर से जलेंगे किसी की यादों मे आज हम।

खुद से खुद को हार गये आज हम।
समझ नही आता पा गये है सजा बेवफाई की या सच बोलने की हम।

रह गई अधुरी हसरतें और हो गये आज जुदा हम ।
मिलने को खुद से और गिनने को अपनी बची सांसे जाने कहा चल दिये आज हम 

जियेंगे जिन्दगी को ऐसे हम की मौत भी शर्मा जाए गले मिलने से अब।
खवाहिशे है यही की लगा लेना वह बिन्दी छोटी सी माथे पर अपने और ना गिरने देना नैनो से अपने अस्को को अब।
अब लगता है खुद को हार गये खुद से आज हम । #hargayehum
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shailesh kumar (शेलमाही)

सहर से पहले तेरे जीत की रोशनी होगी।
ना चाहते हुए भी हर किसी के जुबा पर तेरी ही बात होगी।
मंजिले नही तुझे तो हर एक दिन नये रास्तो से मोह्बत होगी।
मुकमल तो होगी ये ज़मी 
देखना एक दिन फलक पे भी तेरी जीत मुकमल होगी। #manzil#Jeet
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shailesh kumar (शेलमाही)

#adhuresawal
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shailesh kumar (शेलमाही)

शहर भर मे चाहनेवालों की कमी ना थी।
हम बेवजह ही "हमसफर" बन गये।
पता ही नही चला वादे करने थे।
हम तो बेईंन्ताहा मोह्बत कर बेठे थे।
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shailesh kumar (शेलमाही)

होत सहर।उड़ चले ये परिंदे अपनी डगर।
नयी मंजिले,नये फासले करने को तय संग इनके है "हमसफर"।

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shailesh kumar (शेलमाही)

डूबा हू।अस्त नही।
उगते और अस्त होते सूर्य को पूजने वाला बिहार हूं ।

सुनहरे कल को खोजता।
साथ आज भी अपने अतीत को समेटे बिहार हूं ।

हू अगर मे महात्मा बुध और माहावीर जैन का बिहार
तो सब कुछ अपना मानवता पे निछावर करने वाला गुरु गोबिंद सिंह का संसार हूं ।
हां में बिहार हू।

रास्ट्र कवी "दिनकर" की कावय पंक्तिया हूं ।तो
असी साल के बाबू वीर कुवर सिंह के तलवार की धार हूं ।
हां में बिहार हू।

हिंदुस्तान के हर शहर की नयी प्रगती के पथ की गाथा लिखता अधिकारी तो।
उस पथ को नया आकार देता मजदूर का हाथ हूं ।

डूबा हूं।अस्त नही हुआ।
फिर होना है खडा मुझे।क्यों की हराया जिस लोधी को उस"शेर शाह "की धरती मे महान हूं ।

डूबा हूं पर हारा नही में वह "बिहार"हूं । #patnaflood
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shailesh kumar (शेलमाही)

बहुत कुछ खोया है। कभी गम किया नही।
कुछ पल का अफसोस हुआ पर उम्मीद को अब तलक खतम मैनें किया नही है।

अब मिले हो। तो खोना नही
क्योंकी खुदा की मुझे दे कर छिन लेने की आदत अब तक गई नही है।

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shailesh kumar (शेलमाही)

"शहर"
आज फिर शहर रंगीन लगने लगा है।
एक अरसे बाद फिर आज मुझे वह "रंगरेज"मिला है।

मुकमल ना हो सकी जिंन रस्तो पर चल के मोह्बत।
आज फिर उन ही राहो मे एक नया "हमसफर"मिला है।

सफर अधूरा।तस्वीर अधुरी।और मेरी अधुरी "मोहबत"को आज फिर एक हमनवा मिला है।

ना रूठने की अब ख्वाहिश थी और ना ही तेरे आने की कोई उम्मीद।
आज फिर उन राहो पर चल मंजिलो को पाने का कारवां मिला है।

अरसे बाद जाने क्यों ये बेरंग सा शहर।आज फिर रंगीन लगने लगा है। #शहर
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shailesh kumar (शेलमाही)

मां तेरी ही उंगली थाम कर चला।
तुने ही रास्ते दिखाये।

ना कह क्या है खवाहिशे तेरी।
बस इतनी सी दुआ और ताकत दे।
ताकी कर सकू तेरी ही बनदगी मे।
आज एक मुकाम की खोज मे ना जने कब लाँघ गया तेरी दहलिज मे।
सोचता हू फिर मिले वह लम्हा
ताकी ओड सकू दो गज तेरी आँचल का कोना मे।


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