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deepbodhi4920
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दीपबोधि

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दीपबोधि

White जब तेरे ख़त सिरहाने रखते हैं,
लगता है जैसे खज़ाने रखते हैं।

तुमको तन्हा चलने की आदत क्यों,
हम तो साथ अपने ज़माने रखते हैं।

उसकी बेरूखी का ग़म नहीं होता,
दिल को बहलाने के बहाने रखते हैं।

हमको नहीं गरज किसी मयख़ाने की,
आंखों में अश्कों के पैमाने रखते हैं।

अब भी उठती है महक तेरी यादों की
सूखे गुलाबों में अफ़साने रखते हैं।

कभी तो मिलेगा 'आस' का मुकाम,
यही सोचकर सीने में उड़ानें रखते हैं।

©दीपबोधि
  #love_shayari
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दीपबोधि

White जब तेरे ख़त सिरहाने रखते हैं,
लगता है जैसे खज़ाने रखते हैं।

तुमको तन्हा चलने की आदत क्यों,
हम तो साथ अपने ज़माने रखते हैं।

उसकी बेरूखी का ग़म नहीं होता,
दिल को बहलाने के बहाने रखते हैं।

हमको नहीं गरज किसी मयख़ाने की,
आंखों में अश्कों के पैमाने रखते हैं।

अब भी उठती है महक तेरी यादों की
सूखे गुलाबों में अफ़साने रखते हैं।

कभी तो मिलेगा 'आस' का मुकाम,
यही सोचकर सीने में उड़ानें रखते हैं।

©दीपबोधि
  #Camera
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दीपबोधि

परचा बावड़ी 
( रणिचा)( रामदेवरा) (जैसलमेर)

परचा बावड़ी ( रणिचा)( रामदेवरा) (जैसलमेर) #भक्ति

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दीपबोधि

White तेरे खयालों की रोशनी रही पास हमेशा,
ज़िदगी मेरी फिर भी रही उदास हमेशा।

ये अलग बात थी कि तू न सुन पाया,
तुझको आवाज़ देती रही मेरी हर सांस हमेशा।

पतझड़ में भी हंसने की कोशिश कर ले,
मिलता नहीं किसी को भी मधुमास हमेशा।

बेइमानों के ही हक़ में होते रहे फ़ैसले,
वो चलते रहे हैं चाल कुछ खास हमेशा।

न पूछ क्यूं रिश्तों के जाल में उलझकर,
दम तोड़ती रही मेरी हर 'आस' हमेशा।

©दीपबोधि
  #sad_shayari
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दीपबोधि

White तेरे खयालों की रोशनी रही पास हमेशा,
ज़िदगी मेरी फिर भी रही उदास हमेशा।

ये अलग बात थी कि तू न सुन पाया,
तुझको आवाज़ देती रही मेरी हर सांस हमेशा।

पतझड़ में भी हंसने की कोशिश कर ले,
मिलता नहीं किसी को भी मधुमास हमेशा।

बेइमानों के ही हक़ में होते रहे फ़ैसले,
वो चलते रहे हैं चाल कुछ खास हमेशा।

न पूछ क्यूं रिश्तों के जाल में उलझकर,
दम तोड़ती रही मेरी हर 'आस' हमेशा।

©दीपबोधि
  #t20_worldcup_2024
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दीपबोधि

White तेरे खयालों की रोशनी रही पास हमेशा,
ज़िदगी मेरी फिर भी रही उदास हमेशा।

ये अलग बात थी कि तू न सुन पाया,
तुझको आवाज़ देती रही मेरी हर सांस हमेशा।

पतझड़ में भी हंसने की कोशिश कर ले,
मिलता नहीं किसी को भी मधुमास हमेशा।

बेइमानों के ही हक़ में होते रहे फ़ैसले,
वो चलते रहे हैं चाल कुछ खास हमेशा।

न पूछ क्यूं रिश्तों के जाल में उलझकर,
दम तोड़ती रही मेरी हर 'आस' हमेशा।

©दीपबोधि
  #t20_worldcup_2024
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दीपबोधि

White ये अश्क हैं किसके ये किसके निशां हैं,
पिघलती मोम है ज़िंदगी किसके बयां हैं।

यहां तो खामोशी के सिवा कुछ भी नहीं,
कौन रहते हैं यहां, ये किसके मकां हैं।

अजब शहर की हालत नज़र है आती,
हर तरफ़ हाथों में मौत के सामां है।

उठ गई हैं दीवारें रिश्तों के दरमियां,
रह गए घरों में रिश्तों के गुमां हैं

ज़रा सोचकर यहां दिल लगाइए साहब,
मुहब्बत हवा का झोंका नहीं तूफ़ां है।

मिलता नहीं प्यार अदब, सलीका कहीं,
दिल सभी के यहां मतलबों के दुकां है।

ऐतबार करना मगर ज़रा संभल के 'आस',
कब वादों से मुकर जाये ये जुबां है।

©दीपबोधि
  #t20_worldcup_2024
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दीपबोधि

White ये अश्क हैं किसके ये किसके निशां हैं,
पिघलती मोम है ज़िंदगी किसके बयां हैं।

यहां तो खामोशी के सिवा कुछ भी नहीं,
कौन रहते हैं यहां, ये किसके मकां हैं।

अजब शहर की हालत नज़र है आती,
हर तरफ़ हाथों में मौत के सामां है।

उठ गई हैं दीवारें रिश्तों के दरमियां,
रह गए घरों में रिश्तों के गुमां हैं

ज़रा सोचकर यहां दिल लगाइए साहब,
मुहब्बत हवा का झोंका नहीं तूफ़ां है।

मिलता नहीं प्यार अदब, सलीका कहीं,
दिल सभी के यहां मतलबों के दुकां है।

ऐतबार करना मगर ज़रा संभल के 'आस',
कब वादों से मुकर जाये ये जुबां है।

©दीपबोधि
  #olympic_day
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दीपबोधि

White जिंदगी इंतकाम ले रही कि इम्तिहान क्या पता,
जान में आफत है कि आफत में जान क्या पता।

इसीलिए खुले छोड़े हैं हमने दिल के दरवाजे,
जाने कब कहां से आये कोई मेहमान क्या पता।

गम के सहरा में कहां तक जाओगे।
राहें-मुश्किल है बड़ी थक जाओगे।

कब तक परदे में छुपा रहा है कोई?
प्यारी नजरों को कभी तो झलक जाओगे।

हम गलत हैं कि सही आजमा तो लेते,
कभी महफिल में अपनी बुला तो लेते।

फिर कहते कि कम्बख्त चीज है बुरी,
पहले जाम होठों से लगा तो लेते।

©दीपबोधि
  #cg_forest
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दीपबोधि

White ये अश्क हैं किसके ये किसके निशां हैं,
पिघलती मोम है ज़िंदगी किसके बयां हैं।

यहां तो खामोशी के सिवा कुछ भी नहीं,
कौन रहते हैं यहां, ये किसके मकां हैं।

अजब शहर की हालत नज़र है आती,
हर तरफ़ हाथों में मौत के सामां है।

उठ गई हैं दीवारें रिश्तों के दरमियां,
रह गए घरों में रिश्तों के गुमां हैं

ज़रा सोचकर यहां दिल लगाइए साहब,
मुहब्बत हवा का झोंका नहीं तूफ़ां है।

मिलता नहीं प्यार अदब, सलीका कहीं,
दिल सभी के यहां मतलबों के दुकां है।

ऐतबार करना मगर ज़रा संभल के 'आस',
कब वादों से मुकर जाये ये जुबां है।

©दीपबोधि
  #good_evening_images
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