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narenderbhardwaj2918
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भारद्वाज

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भारद्वाज

जश्न-ए-चरागां की ये तस्वीरें हैं तो जश्न ये कैसे मनाए कोई

जिन्हें नाज है इस रामराज पे उन्हें ये सूरत-ए-हाल दिखाए कोई


कहते हैं कि दुनिया जहान में चर्चा है तेइस लाख चरागों की

क्या फायदा है  इस मुफलिस अवाम को जरा बतलाए कोई


किसी चूल्हे की आग से बढकर रौशनी नहीं कोई प्यारी कहीं

मगर आग ये नहीं जिनके चूल्हों में उनमें काश! जलाए कोई


मुल्क की सरमाया सिमटी चंद सरमायादारों की तिजोरियों में 

बाकी नब्बे फीसद क्यों बदहाली की जद में हमें समझाए कोई

©भारद्वाज
  #stilllife #दीपावली
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भारद्वाज

वो ही जद्दोजहद वो ही मशक्कत ओ लाचारी बारह महीने बाद भी।

वो ही अफरातफरी वो ही मारामारी बारह महीने बाद भी।।


न दवा है अब न ही मुनासिब इलाज हासिल अस्पताल में,

जगह मयस्सर नहीं शम्शान में भी हाहाकारी बारह महीने बाद भी।


इधर लाशों के ढ़ेर लगे तो लगे रहें,लोग मरें तो मरते रहें ,

हवस फिर किसी सूबे में हुकूमत की तैयारी बारह महीने बाद भी।


पाखंड की हद तो देखिए  दोस्त कितनी बेमिसाल है मुल्क में,

जय श्री राम के शोर में,गूंज राम नाम सत की जारी बारह महीने बाद भी।

 
अब तो ये नालायकी छिपाने से भी नहीं छिपने वाली साहिब,

बेजा कोशिशें कर रहे हो ये गुनाह की पर्देदारी बारह महीने बाद भी


ये इल्जाम फकत हमारा नहीं है हुकूमत पे अवाम के कत्लेआम का,

अदालत कहती है शर्मनाक बदइंतजामी ये सरकारी बारह महीने बाद भी।

©भारद्वाज #Corona_Lockdown_Rush
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भारद्वाज

वो ही जद्दोजहद वो ही मशक्कत ओ लाचारी बारह महीने बाद भी।

वो ही अफरातफरी वो ही मारामारी बारह महीने बाद भी।।


न दवा है अब न ही मुनासिब इलाज हासिल अस्पताल में,

जगह मयस्सर नहीं शम्शान में भी हाहाकारी बारह महीने बाद भी।


इधर लाशों के ढ़ेर लगे तो लगे रहें,लोग मरें तो मरते रहें ,

हवस फिर किसी सूबे में हुकूमत की तैयारी बारह महीने बाद भी।


पाखंड की हद तो देखिए  दोस्त कितनी बेमिसाल है मुल्क में,

जय श्री राम के शोर में,गूंज राम नाम सत की जारी बारह महीने बाद भी।

 
अब तो ये नालायकी छिपाने से भी नहीं छिपने वाली साहिब,

बेजा कोशिशें कर रहे हो ये गुनाह की पर्देदारी बारह महीने बाद भी


ये इल्जाम फकत हमारा नहीं है हुकूमत पे अवाम के कत्लेआम का,

अदालत कहती है शर्मनाक बदइंतजामी ये सरकारी बारह महीने बाद भी।

©भारद्वाज #covidvirus
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भारद्वाज

jवो कब से कर रहे थे नारा बुलंद कि मेरा देश बदल रहा है

संभल ए मेरे अहलेवतन अब तो वतन जल रहा है


दरख्त पूजने वाले मुल्क की हालत क्या कर दी गई है

कि आज हवा की किल्लत से उनका दम निकल रहा है


खता ये भी कि खेती करने वाले को भी नहीं बख्शा गया

सड़क पे आज भी उनका इंकलाब महीनों से चल रहा है


बेशर्मी की सारी हदें पार कर गए आप तो साहिब

अभी भी दिल में हूकूमत का ही अरमान मचल रहा है


यह ना समझिए जनाब कि कोई समझता ही नहीं है

आज सबको मालूम है कौन कैसे किसे छल रहा है


नजरअंदाज नहीं कर सकता ये दौरे जहां किसी तौर अब 

हरेक जुल्म, गुनाह के खिलाफ जज्बा लफ्जों में ढल रहा है

©भारद्वाज #getwellsoonpm
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भारद्वाज

मकाम आते जाते रहे जिंदगी में  मगर  जारी अपना सफर रहा।

घर से दूर रहके भी हर कहीं हमेशा घर अपना  मद्देनजर रहा।।


ना किसी महफिल में ना किसी अंजुमन में दिल बहल पाया,

परदेश में भी गाँव की गलियों-चौपाल का ऐसा असर रहा।


मुस्तकबिल के ख्वाब मुकम्मल के वास्ते ख्वाहिशमंद तो थे हम,

उम्र के गुजरे दौर से मुहब्बत का ताल्लुक लेकिन बराबर रहा।


हजारों लोगों से मिलने जुलना होता है यहां दुनियादारी में,

तन्हा आलम में  मगर इल्म औ अदब ही साथी कारगर रहा।


किस्सा-ए-जिंदगी भी जैसे दास्तान-ए-मुहब्बत थी कोई,

हम आशिक थे कोई और रोजगार अपना दिलबर रहा।।

©भारद्वाज #walkingalone
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भारद्वाज

ख्वाब में कल रात राब्ता मेरे और मुंशी जी के दरम्यान हुआ।।

बोले सौ साल पहले के होरी जैसा क्यों आज का किसान हुआ।।


आज अपनी ही हुकूमत है अपना ही निजाम है बेहतर हालात हैं,

फिर भी क्यों नये हिंद में मजदूर किसान इतना परेशान हुआ।।


अब भी खुदकुशी करे कर्ज की वजह से ये खेती करने वाला,

वो मुफलिस ही रहा क्यों आज तक क्यों ऐसे हलकान हुआ ।


वो सडक़ पर क्यों निकला दिल्ली की तरफ इंकलाबी तेवर में ,

उसकी बाबत गांव रवाना क्यों नहीं कोई सियासतदान हुआ ।


सुना है कुछ तो जान गवां चुके हैं अपनी इस जद्दोजहद में,

इस हाल पर अब तक संजीदा क्यों नहीं हुक्मरान हुआ।


उनके किसी सवाल का जवाब ही नहीं दिया गया मुझसे,

बस मेरी आखें नम हुईं गला रुंधा और मैं बेजुबान हुआ।

©भारद्वाज #किसान
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भारद्वाज

आरजू ने खुदकुशी की तो कभी कत्ल हुआ अरमान का।

आगाज से अंजाम गम ही मौजू है मेरी दास्तान का।।

कुछ लोग जिंदा रह कर भी जिंदा नहीं होते हैं,

मौत के लिए जरूरी नहीं जाना जिस्म से जान का।


घर में रहकर भी बहुत से लोग बेघर भी होते हैं,

घर महज होता नहीं  ईंट पत्थर के मकान का ।।
 

जिंदगी कोई मकाम नहीं मंजिल नहीं बस सफर है,

जब तक सफर जारी तब तक ही वजूद है इंसान का।


इस पार से उस पार साहिल पे देर सबेर पहुंचते हम भी,

नाखुदा ने ही कश्ती डुबायी कसूर नहीं है किसी तूफान का।

©भारद्वाज #शायरी

शायरी

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भारद्वाज

बेकार है तालीम जो काम न आए इंसाफ और सच्चाई के लिए।

आइए आवाज बुलंद करें मेहनतकश की वाजिब कमाई के लिए।।


वो हमें नाकाबिल ,गाफिल और न जाने क्या क्या समझ रहे हैं,

जो नालायक हैं  खुद अब हमारी नुमाइंदगी और रहनुमाई के लिए।


वजीर से वजीरेआजम तक गुलाम है जब सरमायादारों का,

आम आदमी उम्मीद कैसे करें भला फिर अपनी भलाई के लिए।।


गर्मी में सड़क पर मजदूर तकलीफ में हो कि सर्दी में किसान,

शरम उन्हें कैसे आए मगर, मशहूर हैं जो अपनी बेहयाई के लिए।


वक्त आ गया है अपने हूकूक के लिए हुकूमत से जद्दोजहद का,

वर्ना तैयार रहिए फिर आने वाली नस्ल की रूसवाई के लिए।।

©भारद्वाज #किसान
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भारद्वाज

रास्ते लंबे हो गए हैं, लगती है मंजिल बहुत दूर अब।

फासले तय कैसे हों, कदम हो गए हैं थक के चूर अब।


जिधर गुजरना चाहें गुजरे नहीं, ठहरना था वहां ठहर ना सके,

अनचाही डगर  अनजाने ठिकाने की तरफ जाने को मजबूर अब।


अपने हालात के लिए कौन जिम्मेदारी लेगा ऐ अहले वतन,

क्या किसी की खता कहें, क्या बताएं किसी का कसूर अब।


वो पुराने उसूल औ'मानी दुनियादारी के बदल गए हैं आजकल,

हम तो नाकाबिल हुए निभाने को,जमाने के नए दस्तूर अब।


नाउम्मीद और नाकाम हो गया है दिल जिंदगी की जद्दोजहद में,

बावजूद इसके कभी कभी लगता है"अच्छे दिन"आएंगे जरूर अब।
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भारद्वाज

रास्ते लंबे हो गए हैं, लगती है मंजिल बहुत दूर अब।

फासले तय कैसे हों, कदम हो गए हैं थक के चूर अब।

जिधर गुजरना चाहें गुजरे नहीं, ठहरना था वहां ठहर ना सके,
अनचाही डगर अनजाने ठिकाने की तरफ जाने को मजबूर अब।

अपने हालात के लिए कौन जिम्मेदारी लेगा ऐ अहले वतन,
क्या किसी की खता कहें, क्या बताएं किसी का कसूर अब।

वो पुराने उसूल औ'मानी दुनियादारी के बदल गए हैं आजकल,
हम तो नाकाबिल हुए निभाने को,जमाने के नए दस्तूर अब।

नाउम्मीद और नाकाम हो गया है दिल जिंदगी की जद्दोजहद में,
बावजूद इसके कभी कभी लगता है"अच्छे दिन"आएंगे जरूर अब। #worldnotobaccoday
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