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anubhasingh2721
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Anubha Singh

कवयित्री एवं लेखिका

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Anubha Singh

अतिथि का असली सम्मान
 अच्छे व्यंजन परोसने से नहीं बल्कि
 अच्छे शब्द परोसने से होता है।

                          अनुभा सिंह✍️

©Anubha Singh #विचार

विचार

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Anubha Singh

#हुआ जो भी गलत हमसे उसे तुम माफ कर देना।
नफरतों के लगे जाले दिलों से साफ कर देना।।
मिलें नववर्ष में खुशियाँ उन्हें रखना अकेले तुम।
यदि जो दर्द हो तुमको तो हमसे हाफ कर देना।।
♥️अनुभा सिंह✍️

#हुआ जो भी गलत हमसे उसे तुम माफ कर देना। नफरतों के लगे जाले दिलों से साफ कर देना।। मिलें नववर्ष में खुशियाँ उन्हें रखना अकेले तुम। यदि जो दर्द हो तुमको तो हमसे हाफ कर देना।। ♥️अनुभा सिंह✍️ #कविता

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Anubha Singh

कहानी शीर्षक 

  ( माता- पिता के प्रकार )

क्या आपको पता है माता- पिता के भी प्रकार होते हैं...?नहीं न,
मुझे भी नहीं पता था कि माता-पिता कितने प्रकार के होते हैं । फिर एक शाम जब मैंने पार्क में बैठी दो सहेलियों की बातें सुनी तो मुझे एहसास हुआ कि माता- पिता भी कई प्रकार के होते हैं।
काजल और पलक दोनों घनिष्ठ मित्र थीं काजल ने एक धनाढ्य परिवार में जन्म लिया और पलक बहुत ही गरीब परिवार में पैदा हुई।
काजल और पलक दोनों की ही पढ़ाई सरकारी स्कूल में हुई पलक के पिता के पास इतने पैसे न थे कि वो अपनी बेटी को अच्छे स्कूल में पढ़ा सकते और काजल के पिता ये सोचकर उसे अच्छे स्कूल में नहीं पढ़ा रहे थे कि बेटी तो पराया धन होती है तो व्यर्थ ही उस पर खर्चा करूँ। स्नातक पूर्ण होने के बाद दोनों ने अपने-अपने माता-पिता से  बी० एड० करने की इच्छा जाहिर की ।
पलक के पिता ने ये सोचकर मना कर दिया कि उनकी आर्थिक स्थिति बहुत खराब है लेकिन पलक की माँ ने उन्हें समझाया कि बेटियों के पंख नहीं काटा करते बल्कि उन्हें खुला आसमान देते हैं जिससे वो ऊँची उड़ान भर सकें, अब पलक के पिता को सारी बात समझ में आ गई थी और उन्होंने फटाफट काजल के पिता से ब्याज पर रुपये उधार लेकर बेटी को बी०एड० करने की सहमति दे दी।
वहीं काजल ने जब अपने माता-पिता से बी०एड० करने की इच्छा जाहिर की तो उसकी माँ ने उसके पिता को समझाया कि जिन पैसों से इसे बी०एड० कराओगे वो पैसे इसकी शादी के लिए रखो, और अफसोस कि काजल के पिता ने अपनी पत्नी की बातों में आकर काजल को बी०एड० नहीं करने दिया।
धीरे धीरे दो वर्ष बीत गए उधर पलक का बी०एड० कम्प्लीट हुआ इधर काजल की शादी के लिए उसके माँ बाप ने एक बेरोजगार लड़का ढूँढ दिया ।
सरकारी नौकरी बाला ये सोचकर नहीं ढूँढा ताकि ज्यादा पैसा न खर्चा हो,
एक साथ पली बढ़ी दोनों सहेलियों की जिंदगी बिल्कुल विपरीत हो चुकी थी।
जहाँ एक ओर काजल की शादी उसके माँ बाप ने ये सोचकर कर दी थी कि बेटियाँ बोझ होती हैं और इस बोझ को जितनी जल्दी उतार फेंका जाये उतना ही अच्छा होगा।
वहीं दूसरी ओर पलक के माँ बाप अपनी बेटी को ब्याज पर रुपये उधार लेकर सरकारी अध्यापिका बनाने का सपना देख रहे थे जो कि आज पूरा भी हो गया ।
पलक अब पास के ही प्राथमिक विद्यालय में शिक्षिका थी।
पलक के लिए अब एक से बढ़कर एक अच्छे रिश्ते आने लगे थे।फिर पलक ने अपने ही विभाग के एक शिक्षक से विवाह कर लिया ।
उधर काजल का पति बेरोजगार होने के कारण काजल की आर्थिक स्थिति और ज्यादा बिगड़ने लगी , फिर एकदिन अचानक काजल का एक्सीडेंट हो गया उसकी सारी जमापूँजी काजल के इलाज में लग गई यहाँ तक कि उसे अपना घर मकान ,गहने सब कुछ गिरवी रखना पड़ा।खैर काजल की जान तो बच गई लेकिन उस पर हद से ज्यादा कर्जा हो गया।
काजल ने जब अपने माता-पिता से मदद माँगी तो उन्होंने उसे ये सोचकर पैसे नहीं दिए कि पता नहीं ये मेरे पैसे कितने समय बाद लौटा पायेगी।जबकि काजल के माता पिता के पास पैसों की कोई कमी नहीं थी।
वहीं जब पलक के माता पिता को काजल के एक्सीडेंट की ख़बर मिली तो जब उन्होंने काजल की हालत देखी तो मन ही मन भाँप लिया कि काजल की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है ।उन्होंने घर जाकर काजल के पिता से पैसे ब्याज पर उधार लेकर काजल के पास ये कहकर भेजे कि ये पैसे पलक ने नौकरी लगने की खुशी में अपनी दोस्त के लिए भेजे हैं।
 काजल ने खुशी खुशी वो पैसे रख लिए और फूटफूटकर रोने लगी । ये सोचकर कि आज उसके मायके में धन दौलत की कोई कमी नहीं है । फिर भी माँ बाप के जीवित होते हुये भी वो एक एक पैसे की मोहताज है।
क्या पिता की संपत्ति पर बेटियों का इतना भी अधिकार नहीं है कि उन्हें उस संपत्ति का कुछ अंश उधार रूप में ही मिल जाये।
लोग कहते हैं बेटियों को सबसे ज्यादा प्रेम उसके माता पिता करते हैं । ये कैसा प्रेम है..?
ऐसी संपत्ति किस काम की जो आपकी बेटियों के सपने न पूरे कर सके....?
ऐसी संपत्ति किस काम की जिसके होते हुए भी आप अपनी बेटी की शादी एक बेरोजगार से कर दें..?
बेटियाँ आपकी मर्जी से पढ़ती हैं, आपकी मर्जी से विवाह करती हैं,
फिर उनकी परेशानियों में सिर्फ उनका दोष ही क्यों आपका क्यों नहीं..?
काजल आज लाखों सवालों से घिरी हुई थी पर जबाब नहीं मिल रहा था।मन को थोड़ा शांत करने के लिए जब वह पार्क में घूमने गयी तो अचानक अपनी बचपन की मित्र पलक को देखकर उसकी आँखें भर आईं ,न जाने कितनी बातें जो एक दूसरे को आपस में करनी थीं।फिर एकांत में बैठकर काजल ने जब पलक को रुपये भेजने के लिए धन्यवाद कहा तब काजल को पता चला कि वो पैसे पलक ने नहीं दिए थे बल्कि पलक के पिता ने काजल के ही पिता से उधार लेकर वो रुपये काजल को दिये थे।
सच जानने के बाद काजल की आँखों से आँसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे।

मैं बस दूर बैठकर दोनों की बातें सुने जा रही थी,और सोच रही थी कि माता पिता भी कई प्रकार के होते हैं।एक वो जो अपनी बेटी के लिए सब कुछ कुर्बान कर देते हैं और एक वो जिन्हें बेटियाँ भार लगती हैं और अपनी सारी संपत्ति सिर्फ बेटों के लिए ही रखना चाहते हैं।
बस मेरे मन में बार बार एक ही प्रश्न आ रहा था कि असल में किसका पिता ग़रीब है पलक का या काजल का  ...?

          अनुभा सिंह  (कन्नौज)

©Anubha Singh कहानी

कहानी #ज़िन्दगी

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Anubha Singh

भाई दूज का पर्व मनाने आज बहन घर आई है।
इस पावन रिश्ते की सबको दिल से आज बधाई है।।
लगे उमर मेरी भी तुझको यही कामना करती हूँ।
इस दुनियां में सबसे प्यारा मुझको मेरा भाई है।।
♥️अनुभा सिंह♥️

©Anubha Singh #Bhaidooj
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Anubha Singh

व्रत रखा चौथ करवा तुम्हारे लिए
चाँद  बनकर  हमारे  चले  आइये।
                  अनुभा सिंह✍️

©Anubha Singh #KarwachauthFast
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Anubha Singh

ग़ज़ल

है  सही  मायने में   सखा  सिर्फ वो ,
देखकर  क़ामयाबी  जो जलता नहीं।

लाख  हो  अनमनी  आपके  बीच  में,
संग  दुश्मन के लेकिन वो चलता नहीं

राज़   बतलाओ  जो,, दोस्ती   में  उसे,
करके  कोई  छलावा वो छलता नहीं।

हो  मुलाक़ात  नज़रें मिला ना सको,
बैर  ये  दरमियां  इतना  पलता  नहीं।

रात दिन तुझको अनुभा उदय जो करे,
मित्र  तो  सूर्य  की  भाँति  ढलता  नहीं।

अनुभा सिंह✍️

©Anubha Singh ग़ज़ल

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Anubha Singh

ख़ुद   को  तूने  पर्वत बोला,मुझको बोला  राई  हूँ।
गिरकर जिसमें उठ न सकता मैं वो ऐसी खाई हूँ।।
दो    कौड़ी  के   इंसा  तू   मेरा  भूगोल  बताएगा?
मैं   तेरे  पुरखों तक का इतिहास बताने  आई  हूँ।।

                 अनुभा सिंह ✍️

©Anubha Singh ख़ुद को तूने पर्वत बोला,मुझको बोला  राई   हूँ।
गिरकर जिसमें उठ न सकता मैं वो ऐसी खाई हूँ।।
दो   कौड़ी   के   इंसा  तू   मेरा भूगोल बताएगा,
मैं तेरे पुरखों तक का इतिहास बताने  आई  हूँ।।
                 अनुभा सिंह ✍️

ख़ुद को तूने पर्वत बोला,मुझको बोला राई हूँ। गिरकर जिसमें उठ न सकता मैं वो ऐसी खाई हूँ।। दो कौड़ी के इंसा तू मेरा भूगोल बताएगा, मैं तेरे पुरखों तक का इतिहास बताने आई हूँ।। अनुभा सिंह ✍️ #ज़िन्दगी

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Anubha Singh

ग़ज़ल

दर्द  अपने   छिपाते   रहे  उम्र भर,
हम तुम्हें  ही  मनाते  रहे  उम्र  भर।।

दुश्मनों से  मिरे हँस के मिलना तिरा,
इस  तरह  से  जलाते  रहे  उम्र भर।।

जाम-ए उल्फ़त पिलाया था मैंने तुझे,
अश्क़  मुझको  पिलाते  रहे उम्र भर।।

सारी  दुनियाँ  के  हम थे सताए हुए,
तुम भी  हमको  सताते रहे उम्र भर।।

दिल के जज़्बात ख़त में लिखे जो तुम्हें,
दोस्तों    को    पढ़ाते    रहे    उम्र  भर।।

खूबियाँ  ना  कभी तुमको मुझमें दिखीं,
ऐब     मेरे    गिनाते    रहे    उम्र   भर।।

ख़्वाब  "अनुभा" के  पूरे  हुए ना कभी,
नींद   से   तुम   जगाते  रहे  उम्र भर।।
           अनुभा सिंह✍️

©Anubha Singh #ग़ज़ल
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Anubha Singh

नवरात्रों में ढूँढ रहे हैं
 घर घर जाकर कन्यायें,
खुद के घर जब बेटी होती मातम सा छा जाता है।
अनुभा सिंह✍️
नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं

©Anubha Singh #Navraatra


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