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मेरी हस्ती मिटा पाना नहीं मुमकिन ज़माने को, भला कब लूट पाया है कोई खाली खज़ाने को, सुना है जबसे कि दरिया में मैं कश्ती उतारूंगा, खड़ा है सामने तूफान मुझको आजमाने को... वो आलम होश का हो या कि आलम बेखुदी का हो, तुम्हारे तीर से बेहद मोहब्बत है निशाने को...
Bhushan
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