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poojalodhi7888
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ll जीवन प्रभा ll

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ll जीवन प्रभा ll

#sad_shayari इस नहीं कविता

#sad_shayari इस नहीं कविता

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ll जीवन प्रभा ll

किसी अपरिचित व्यक्ति से 
आकस्मिक ही
क्षमा मांग लेने वाले 
हम लोगों का

क्यों इतना असहज और 
कठिन हो जाता है 
किसी अपने से क्षमा मांगना 

- पूजा 












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©ll जीवन प्रभा ll
  #GateLight
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ll जीवन प्रभा ll

वंचित है स्वयं
कदाचित् इसीलिए हीन भावना दिखा रहे हैं

जिस वेदना को सबने
सहा,समझा और महसूस किया
उसी को पुन:दोहरा रहे हैं

निज परिस्थिति में आकर हम भी
लोगों सा रवैया अपना रहे हैं

जिसका स्थान देवों ने भी सर्वश्रेष्ठ रखा
उस प्रेम के रिश्ते को हम कुत्सित कह कर ठुकरा रहे हैं

- पूजा ♡








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©ll जीवन प्रभा ll
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ll जीवन प्रभा ll

प्राथमिकताओं के आभाव में, 
सीमित कर ख़ुद को समझती वो बोझ थी |

उसके नेत्रों को हर स्थान पर, 
जिसकी खोज थी |

सम्मुख था वो उसके,
अनभिज्ञ वो देखती हर रोज थी |

निश्छल मन की वो अबोध लड़की,
उसके ह्रदय रूपी पुष्कर की एक मात्र सरोज थी |

- पूजा ♡

©ll जीवन प्रभा ll
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ll जीवन प्रभा ll

#tumhidekhona
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ll जीवन प्रभा ll

#tumhidekhona
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ll जीवन प्रभा ll

#tumhidekhona
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ll जीवन प्रभा ll

मैं,
गहरी सोच में 
मेरे पास 
मुस्कुराने की कोई तो वजह होगी ?

जब गहरी सोच से 
बाहर आई तो
जोर से हंसी आ गई

यह सोच कर की मैं

क्या सोच रही हूं!
जैसे स्वत: सब कुछ स्थिर हो गया हो
उस वक्त जो वेदना महसूस हुई
वो वाक़ेई

सागर से गहरी
आकाश से ऊंची
और हिमालय से भी विशाल थी 

- पूजा लोधी

©पूजा लोधी
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ll जीवन प्रभा ll

अरमां ‌ही नहीं अब मेरे
ख्वाहिशों ने भी दम तोड़ दिए हैं

पिरो के रक्खे थे यादों के मोती
बदलते वक्त ने पुराने गुल्लक भी तोड़ दिए हैं

सम्हाले के रखती हूं आशियां अपना
दिल जलों ने तो मंदिर मस्जिद भी तोड़ दिए हैं

शिकवा क्या करना किसी से
फिसलती रेत ने वक्त के पहिए  तोड़ दिए हैं

भ्रम में खिल रही थी जो कलियां
आकर्षित हो माली ने मोह के वो फूल तोड़ दिए हैं

- पूजा लोधी

©पूजा लोधी
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ll जीवन प्रभा ll

विशाल सा साम्राज्य बना रक्खा है
समाज, संस्कृति और रिवाजों का
ज़र-ज़र हो रही दीवारों में
दफ़न है
किसी के अरमान
किसी के सपने
किसी की आंकांछाए
वो बोलती नहीं बस सहती हैं
ताकि निर्माण हो सके विशिष्ट सामाज का
भव्य से इन महलों में
नींव हैं
किसी के त्याग
किसी के बलिदान
किसी की स्वतंत्रता
वो मर्यादा और संस्कृति की जिम्मेदारी लेती हैं
तो क्यों, शासन अधिकार नहीं नारी का
संकुचित चेतना से ग्रस्त पुरुषों का साम्राज्य
निगल जाता है
किसी का बचपन
किसी की उम्मीदें
किसी की भावनाएं
वो पैतृक सत्ता बन कर रह जाती हैं
नियंत्रित करना तुच्छ स्वभाव है पुरुषों का
मत लो परीक्षा
किसी के धैर्य
किसी की सहनशीलता की
नष्ट हो जाएगा साम्राज्य
बुर्ज खलीफा सी इमारत भी चंद पलों में ढह जाएगी
मैं,नहीं सहूंगी! जिस दिन स्त्री कह जाएगी

- पूजा लोधी

©पूजा लोधी
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