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deepakkumardivak4012
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Deepak Kumar Divakar

कवि हिर्दय प्राणी हूँ,बड़ा सुकून सा मिलता हैं लफ्ज़ कागज पर उतर कर चीख भी लेता हूँ और आवाज़ भी नही होती,,,

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Deepak Kumar Divakar

चलो फिर इस सर्द मौसम की बरसात में साथ भींगते है,
उन लम्हे उन यादों को फिर से बिनते है,
जब टिप टिप बरसात की बूंदों में
 बाहें पसारे झूमा करती थी
 और मै देख तुम्हे आहे भरा करता था,,
चलो ना आज फिर से वही जज्बात बुनते है,,
चलो फिर इस सर्द मौसम की बरसात में साथ भींगते है,
                     
               ✍️..D.K.DIVAKAR #RAIN_VECTOR
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Deepak Kumar Divakar

#lovebeat
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Deepak Kumar Divakar

मेरी फितरत में नहीं है बदलना, 
मै हमेशा इसी अंदाज़ में मिलूंगा,, 
वो चाहे मुलाक़ात आधी रात की हो,
 या वर्षों बाद की हो,,

          ✍️..दीपक कुमार दिवाकर.. #fourlinepoetry
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Deepak Kumar Divakar

#lovebeat
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Deepak Kumar Divakar

क्यों तड़कती हो बिजलियो की तरह..
 कहर ढाने का इरादा है क्या,
मजलूमों का शहर छोड़कर..
 आज इश्क वालो कि गली आई हो,
 कही आज हमसे इश्क़ ज्यादा है क्या..।
  
                     ✍️ D.K.DIVAKAR #MereKhayaal
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Deepak Kumar Divakar

मैं शहर पटना सा हो जाऊं..
तुम लिट्टी चोखा की खुशबू सा बन जाना,
मैं दीपक बन तुझ में बह जाऊं..
 तुम बहती गंगा सा हो जाना,
मैं विश्वनाथ की प्रेम में रम जाऊं..
तुम गांधी घाट के गंगारती सी दरस जाना,
मैं शहर पटना सा हो जाऊं..
 तुम लिट्टी चोखा की खुशबू सा बन जाना,
                   ✍️..दीपक कु. दिवाकर.. #HeartBook
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Deepak Kumar Divakar

यहां अपनी खुशियों के हिस्से के लिए 
जिंदगी का किस्सा बदलना पड़ता है,
 जब पड़ती है वक्त की चोटें तो 
भाग्य को भी अपनी रेखा बदलनी पड़ती है,
यहां हर सुबह मंजिलों की तलाश में
मुसाफिर बन निकलना पड़ता है,
 यहां हर रात अंधेरों का भंवर तोड़ने 
दीपक बन जलना पड़ता हैं,
कोशिश करना पड़ता है...
यहां हर वक्त कोशिश करना पड़ता है,,
दीपक कु. दिवाकर.. मोटिवेशनल शायरी

#meltingdown

मोटिवेशनल शायरी #meltingdown #अनुभव

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Deepak Kumar Divakar

"कसक"
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बचपन में जब था तब अंधेरों से डर लगता था, 
अब जब बड़ा हो गया हूं तो उजालों से भय लगता है।

 ये आंखें अब सो कहां पाती है रातों में,
 अब सुकून कहां मिलता है दिनों में,,

अपनों के ख्वाहिशों के लिए खुद से ही लड़ता हूं,
 लाख कोशिशों के बावजूद भी अपनों को ही खलता हूं,,

दो राहों का मुसाफिर हूं..
हालातों का मारा हूं..
 फिर भी मंजिलों के लिए चलता हूं,,

मैं मिट्टी का वो दीपक हूं.. 
जो पत्तो की जरा सी ओट में रहकर,,
बारिशों और हवाओं के खिलाफ होने के बाद भी जलता हूं,

                             ✍️..दीपक कुमार "दिवाकर" दिलों की शायरी,,,

#walkingalone

दिलों की शायरी,,, #walkingalone #अनुभव

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Deepak Kumar Divakar

"तलाश ए-ज़िन्दगी"

तलाश में हूं मैं खुद की..
अब अपने हिस्से का वजूद बनना चाहता हूं,
खुद को खो दिया था खुद में,
अब संभलना चाहता हूं।

 तू हाथ तो थाम ए-जिंदगी..
तेरे साथ चलना चाहता हूं।

 माना कि अब तो सब कुछ मिल जाते है,
इस नए जमाने में....
पर वो बचपन के मेले वो किस्से-कहानियों 
का शोर सुनना चाहता हूं।

 नफरतों के इस दौर में..
जुस्तजू भरे हैं कदम-कदम पर,
मैं फिर से वही बचपन के गलियारों वाला
 दौर चुनना चाहता हूं।

लाख हवाएं खिलाफ है मेरी 
फिर भी दीपक की तरह जलना चाहता हूं,
अंधेरों के भंवर में रहकर 
 उजालों के लिए लड़ना चाहता हूं।

सही दिशा की तलाश में हूं,
दो राहों पर खड़ा मुसाफिरों की तरह
मंजिलों तक पहुंचना चाहता हूं।

तू हाथ तो थाम ए-जिंदगी..
तेरे साथ चलना चाहता हूं।
✍️..DEEPAK KUMAR DIVAKAR #WallPot
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Deepak Kumar Divakar

एक सपने के टूटकर चकनाचूर हो जाने के बाद दूसरा सपना देखने के हौसले को ही जिंदगी कहते हैं,, शायरी

शायरी

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