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sakhicharandas7308
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Sakhicharan Das

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Sakhicharan Das

गुन औगुन बिसारि जग जाल के,
तेरे गुनगान गिरधारी नित गायौ करूँ ।
भटकूं न द्वार द्वार जग के मंझार प्यारे,
आय तेरे द्वार निजभाग कूं सिरायौ करूँ।
पायौ करूँ प्रसाद व्रजवासिन सौं माँगि माँगि,
गंग मानसी नहाय परिकम्मा लगायौ करूँ ।
गोवर्धननाथ ऐसी कृपा करौ रीझ मोपै,
शरण तेरी आय फेरि जग में न जायौ करूँ ।
-Sakhicharan Das
25/12/2019
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Sakhicharan Das

अब नहीं भागता मैं पीछे पीछे रिश्ते को बचाने के लिए न ही वक़्त है मेरे पास
रूठने और मनाने के लिए।

अंधेरों से हो गई है दोस्ती इस क़दर,

कि चरागों की जरुरत ही न रही 
आशियाने के लिए।

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Sakhicharan Das

इतनी बेरुखी से पेश न आ ऐ सनम
कहीं हमने रुख बदला 
तो
 न जमी में जगह मिलेगी और न ही जन्नत में #बेरुखी
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Sakhicharan Das

रहने दो मुझे अपनी धुन में ,
आप क्या जानो क्या है मेरे मन में ।

कभी मानस पटल पर 
चित्र सुनहरे आँकता हूँ मैं ।
कभी झरोखों से, 
स्तब्ध गलियारों में झाँकता हूँ मैं ।
कभी लग जाता हूँ 
पता नहीं किस उधेडबुन में ।।

राह चलते चलते सहसा खडा रह जाता हूँ मैं ।
कभी मौन, तो कभी बहुत बडबडाता हूँ मैं ।
कभी किसी के औगुन में, तो कभी किसी के गुन में ।।

- सखीचरण दास

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Sakhicharan Das

यूँ तो ज़िन्दग़ी बड़ी आसान है, 
पर उनके लिए बिल्कुल भी नहीं ,
जो खुद से ही परेशान हैं ।

तौहमत न लगा किसी ग़ैर को,
असल गुनहगार तो ,खुद के ही अरमान हैं ।

कवायदें छोड़ दो ,औरों को हद में रखने की,
खुद की हदों का ज़रा भी ध्यान हैं?

चाहे तो दरिया डुबा सकता है जहाँ को,
पर हद में रहना ही तो उसकी शान है।

वक्त मिले तो गुफ्तगू कर भी लेना कभी,
मिटा लेना फासले,जो दरम्यान हैं ।


#Sakhicharan Das
15/12/19,sunday
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Sakhicharan Das

यूं तो बातें बहुत थीं कहने को मगर,
कह न पाया ये मेरी मजबूरी थी ।

नहीं मायने रखता ये मसला कि,
हर वक्त होती रहे गुफ्तगू तुमसे।

इशारों में बता दी वो सारी बातें, 
जो तुमसे बेहद जरूरी थीं ।

तुम्हैं सुना सुनता ही गया हद तक,
और फिर ये जाना ,
 तुम बिन जिन्दगी भी, कहाँ पूरी थी?

-Sakhicharan Das #गुफ्तगू
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Sakhicharan Das

तेरी बस्ती से डर लगता है ,
अब तो वीराना ही घर लगता है ।
यह जी भी बड़ी फ़जीहत है जी, 
न इधर लगता है न उधर लगता है ।।

19/07/2019 #डर
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Sakhicharan Das

तेरे मेरे इश्क़ का अभी एक किस्सा बाकी है 


आ बैठ बाँट लें रंज ओ गम, उनमें भी एक हिस्सा बाकी है।

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Sakhicharan Das

लम्बे सफर का राही हूँ, 
रुकना मुझे मंजूर नहीं ।
न रोको,चलने दो मुझे,
मंजिल भी अब दूर नहीं ।। #सफर #राही
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Sakhicharan Das

बदल जाते है लोग वक़्त की तरह, वक्त भी बदला गुमनाम की तरह।
जो कहते थे बड़े खास हो तुम,
वो भी ढल गए शाम की तरह। #बदलते_रंग
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