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कवि रंजन सिंह

सबका यूँ कुछ न कुछ उपकार है इसीलिए आभार व सबसे प्यार है। हम आवारा हैं तो, आवारा ही रहने ही दो, जो अदावत न करे वो बंजारा ही रहने दो।

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कवि रंजन सिंह

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कवि रंजन सिंह

ये जो ज़रा सी उम्मीद है, 
अब इसे भी तोड़ दो ना।
सुनो एक एहसान करो, 
अब तुम मुझको छोड़ दो ना।
बेबस हैं मेरी आँखे,
 तुम पर ही रुक जाती हैं।
हैं सब राहें दुश्मन मेरी, 
लौट तुम्ही तक आती हैं।
मेरा मुझ पर ज़ोर नही, 
तुम मुझसे मुह मोड़ लो ना।
सुनो एक एहसान करो, 
अब तुम मुझको छोड़ दो ना।
.

©कवि रंजन सिंह #alone
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कवि रंजन सिंह

#OpenPoetry इस मोहब्बत पे कुछ लिखा क्यों नही जाता,
पल भर की मोहब्बत किया क्यों नही जाता।
जो औरो को अपनी कठपुतली समझते हैं,
मुझसे उनकी इज्जत किया क्यों नही जाता।
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©कवि रंजन सिंह #RESPECT #mohabat #Love 

#OpenPoetry
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कवि रंजन सिंह

प्रकृति को पहुंचाने का नुकसान खल रहा है,
डर डर के बच्चा बूढा और जवान पल रहा है।
कभी हमने ही लगाई थी चिंगारी फितरत में,
आज यहाँ इसीलिए ये मेरा देश जल रहा है।

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©कवि रंजन सिंह #India #prakriti ##hindipoetry #nojatohindi
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कवि रंजन सिंह

कोई उठना चाहता है,
कोई उड़ना चाहता है,
कोई चलना चाहता है,
कोई गिरना चाहता है,
कोई गिर-गिरकर सम्भलना चाहता है
ये बेरुखी मौसम ये हवाएं
ये रंगीनियां ये फिजायें
ये उड़ानियां ये सोहरतें
ये इश्कियां ये मोहब्बतें
कोई इन बदलाओं को बदलना चाहता है
न वो इन बंदिशों को जाने 
न इन पाबंदियों को पहचाने 
न जाने कि रश्में रिवाजे क्या है
न सुने की बोली दरवाजे क्या है
छोड़ सब अपनी धुन में चलना चाहता है
छोडो भी अब उसको जाने भी दो न
दुनिया को अब उसे पहचानने भी दो न
उड़ जाने दो अब उसे पाबंदियों को छोड़
ले आएगा अब बदलाव का एक नया मोड़
वो अब यहाँ एक नए भेष में ढलना चाहता है
अब यहाँ एक नए परिवेश में पलना चाहता है
हर मोड़ पर गिर - गिरकर सम्भलना चाहता है
बदलने दो अब उसे, जो वो बदलना चाहता है

©कवि रंजन सिंह

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कवि रंजन सिंह

कब तक रक्षा मांगोगी तुम इन नपुंसक सरकारों से
कब तक आश लगाओगी तुम रद्दी के अखबारों से
ये स्वयं जो वस्त्रहीन हुए हैं वो सब क्या वस्त्र बचाएंगे
सुनो द्रौपदी शस्त्र उठालो अब कोई कृष्ण नही आएंगे

धनवानों के चंद पैसो के आगे न्याय जहां पर बिकता हो
सच की कलम भी जहां अधिकारों का हनन लिखता हो
स्वयं जो मानहीन हुए हैं वे सब क्या सम्मान बचाएंगे
सुनो द्रौपदी शस्त्र उठालो अब कोई कृष्ण नही आएंगे

हर तरफ है त्राहि- त्राहि इंसान यहां कंकाल हुआ है
हर तरफ तो शकुनि के षणयंत्रों का संजाल हुआ है
स्वयं जो लज्जाहीन हुए हैं अब वे क्या लाज बचाएंगे
सुनो द्रौपदी शस्त्र उठालो अब कोई कृष्ण नही आएंगे


"~कवि रंजन सिंह~" #Stoprape
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कवि रंजन सिंह

हम ये जिंदगी जीने की कई तरकीबे रखेंगे
इन कोरे पन्नो पे अपनी इक कहानी लिखेंगे
जब मेहनत की इक स्याही इन पन्नो पे चलेगी
तब जिंदगी पतंग बन आसमां को छूने लगेगी #Motivation #Inspiration #Motivational
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कवि रंजन सिंह

कोई उठना चाहता है,
कोई उड़ना चाहता है,
कोई चलना चाहता है,
कोई गिरना चाहता है,
कोई गिर-गिरकर सम्भलना चाहता है
ये बेरुखी मौसम ये हवाएं
ये रंगीनियां ये फिजायें
ये उड़ानियां ये सोहरतें
ये इश्कियां ये मोहब्बतें
कोई इन बदलाओं को बदलना चाहता है
न वो इन बंदिशों को जाने 
न इन पाबंदियों को पहचाने 
न जाने कि रश्में रिवाजे क्या है
न सुने की बोली दरवाजे क्या है
छोड़ सब अपनी धुन में चलना चाहता है
छोडो भी अब उसको जाने भी दो न
दुनिया को अब उसे पहचानने भी दो न
उड़ जाने दो अब उसे पाबंदियों को छोड़
ले आएगा अब बदलाव का एक नया मोड़
वो अब यहाँ एक नए भेष में ढलना चाहता है
अब यहाँ एक नए परिवेश में पलना चाहता है
हर मोड़ पर गिर - गिरकर सम्भलना चाहता है
बदलने दो अब उसे, जो वो बदलना चाहता है

:--【"कवि रंजन"】 #Hindi #Motivation #Nojoto #nojotopoetry #hindipoetry #hindikavita 

#InspireThroughWriting
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कवि रंजन सिंह

एक निर्णय लेना
और असफ़ल हो जाना
यूँही कोशिश करना
और विफल जो जाना
यूँ उठो गिरो
फिर उठो
और ऐसे आगे बढना 
कि एक संकल्प करना
और फिर तुम
सफल हो जाना #nojato #Nojoto #successquotes #Decision #koshish #Hindi #Motivation #Motivational
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कवि रंजन सिंह

आस्तीनों से हटकर अब जीभों पे रहने लगे हैं

आज के 'साँप' अपनी फितरत बदलने लगे हैं



"~कवि रंजन~" #सांप #आस्तीन #फितरत #बदलना #जीभ #रहना
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