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तेजस

कुछ याद अधूरे हैं, कुछ बात अधूरे हैं। लिख देता हूँ यहाँ, जो जज़्बात अधूरे हैं।।

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तेजस

सैर कर दुनियाँ की ग़ाफ़िल ज़िन्दगानी फिर कहाँ
इत्तेफ़ाक़ से जो बन पड़े, वैसी कहानी फिर कहाँ 

आई एक झोंके सी, कुछ पन्ने पलट कर चली गई
खिड़कियाँ खुली हैं पर वो हवा दीवानी फिर कहाँ 

वही खिड़कियाँ हैं वही रात है और वही घटायें भी
भीगे लटों में खोया वो बारिश का पानी फिर कहाँ 

यूँ तो वजहें लाख हैं दिल के मचल जाने की मग़र
तेरे लम्स से मचली धड़कनों की रवानी फिर कहाँ 

थी अपनी दास्तान ही ऐसी कि मिसाल कोई नहीं
वो कश्ती फिर कहाँ, वो दरिया तूफ़ानी फिर कहाँ 

शब के अंधेरे में खड़े उस 'शजर' की बात ही क्या
लाख ढूंढा, मिली उसे वो सहर सुहानी फिर कहाँ

©तेजस सैर कर दुनियाँ की ग़ाफ़िल ज़िन्दगानी फिर कहाँ
इत्तेफ़ाक़ से जो बन पड़े, वैसी कहानी फिर कहाँ 

आई एक झोंके सी, कुछ पन्ने पलट कर चली गई
खिड़कियाँ खुली हैं पर वो हवा दीवानी फिर कहाँ 

वही खिड़कियाँ हैं वही रात है और वही घटायें भी
भीगे लटों में खोया वो बारिश का पानी फिर कहाँ

सैर कर दुनियाँ की ग़ाफ़िल ज़िन्दगानी फिर कहाँ इत्तेफ़ाक़ से जो बन पड़े, वैसी कहानी फिर कहाँ आई एक झोंके सी, कुछ पन्ने पलट कर चली गई खिड़कियाँ खुली हैं पर वो हवा दीवानी फिर कहाँ वही खिड़कियाँ हैं वही रात है और वही घटायें भी भीगे लटों में खोया वो बारिश का पानी फिर कहाँ #शायरी #कसक #शजर

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तेजस

सुनसान गलियों से गुजरती ये सुनसान रातें
सिसक पड़ती हैं याद कर अपनी मरहूमियत की बातें
बंद आँखों से सुनना कभी ये सिसकियाँ
ऐसे जैसे किसी बाँझ की लोरियाँ
बेचैन कर जाएँगी तुम्हें तुम्हारे सपनों में
तुम भी मरहूम पाओगे खुद को अपनों में
ये रातें मुस्कुरा भी लेती हैं कभी आँखें बचा कर सबकी
अकेले में मुस्कराने का कुछ मतलब ना निकल आये कहीं
वैसे तो अंधेरे में भी कोई राज कहाँ छुपता है
पर अंधेरे में मुस्कुराहटों से टपकता दर्द कहाँ दिखता है
ये मुस्कुराहट देख कोई बदनाम ना कर जाए
अपना भी दर्द इस रात के नाम ना कर जाए
रात भी डरती है कहीं ना कहीं इस बात से
इसीलिये तो चुपके से गुजर जाती है रात में

©तेजस सुनसान गलियों से गुजरती ये सुनसान रातें
सिसक पड़ती हैं याद कर अपनी मरहूमियत की बातें
बंद आँखों से सुनना कभी ये सिसकियाँ
ऐसे जैसे किसी बाँझ की लोरियाँ
बेचैन कर जाएँगी तुम्हें तुम्हारे सपनों में
तुम भी मरहूम पाओगे खुद को अपनों में
ये रातें मुस्कुरा भी लेती हैं कभी आँखें बचा कर सबकी
अकेले में मुस्कराने का कुछ मतलब ना निकल आये कहीं

सुनसान गलियों से गुजरती ये सुनसान रातें सिसक पड़ती हैं याद कर अपनी मरहूमियत की बातें बंद आँखों से सुनना कभी ये सिसकियाँ ऐसे जैसे किसी बाँझ की लोरियाँ बेचैन कर जाएँगी तुम्हें तुम्हारे सपनों में तुम भी मरहूम पाओगे खुद को अपनों में ये रातें मुस्कुरा भी लेती हैं कभी आँखें बचा कर सबकी अकेले में मुस्कराने का कुछ मतलब ना निकल आये कहीं #Raat #कविता #Raatein #raatkibaat

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तेजस

मुद्दतों बाद, फिर वही मुश्किल है सामने
के मुद्दतों बाद आज मिरा दिल है सामने 

दिल चाहता है के हो जाऊँ फना फिर से
तबस्सुम सजाए, मिरा क़ातिल है सामने 

अक्सर बस्तियों को होता है झूठा गुमान
सैलाब से बचाएगा जो साहिल है सामने 

ग़ज़लों को अपने गुनगुनाता हूँ तन्हाई में
क्यों गुम हैं हवास जो महफ़िल है सामने 

कर लूँ कुबूल तो अना पर आती है बात
ना करूँ तो ये दिल ए बिस्मिल है सामने 

बिखरने क्यों लगे हैं मिरे औसान 'शजर'
कदम साथ नहीं दे रहे, मंज़िल है सामने

©तेजस मुद्दतों बाद, फिर वही मुश्किल है सामने
के मुद्दतों बाद आज मिरा दिल है सामने 

दिल चाहता है के हो जाऊँ फना फिर से
तबस्सुम सजाए, मिरा क़ातिल है सामने 

अक्सर बस्तियों को होता है झूठा गुमान
सैलाब से बचाएगा जो साहिल है सामने

मुद्दतों बाद, फिर वही मुश्किल है सामने के मुद्दतों बाद आज मिरा दिल है सामने दिल चाहता है के हो जाऊँ फना फिर से तबस्सुम सजाए, मिरा क़ातिल है सामने अक्सर बस्तियों को होता है झूठा गुमान सैलाब से बचाएगा जो साहिल है सामने #शायरी #katil

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तेजस

शाम ओ सहर लबों पर सजाता हूँ तुझे
उतार कर ग़ज़लों में, गुनगुनाता हूँ तुझे 

लिखता हूँ तुझे, मैं तन्हाइयों में अक्सर
सजा कर महफ़िलें फिर सुनाता हूँ तुझे 

यूँ तो ये तन्हाईयाँ अब हमसाया हैं मेरी
होने लगे जो वहशत तो बुलाता हूँ तुझे 

लगा सीने से सुलाता हूँ, तस्वीर को तेरे
फिर सरे-शब ख़्वाबों में जगाता हूँ तुझे 

फ़लक पर अक्स तेरा देखता हूँ जब मैं
तस्सवुर में अपने दुल्हन बनाता हूँ तुझे 

लोग कहते हैं तू शायर बन गया 'शजर'
ये बस मैं जानता हूँ, के मैं गाता हूँ तुझे

©तेजस शाम ओ सहर लबों पर सजाता हूँ तुझे
उतार कर ग़ज़लों में, गुनगुनाता हूँ तुझे 

लिखता हूँ तुझे, मैं तन्हाइयों में अक्सर
सजा कर महफ़िलें फिर सुनाता हूँ तुझे 

यूँ तो ये तन्हाईयाँ अब हमसाया हैं मेरी
होने लगे जो वहशत तो बुलाता हूँ तुझे

शाम ओ सहर लबों पर सजाता हूँ तुझे उतार कर ग़ज़लों में, गुनगुनाता हूँ तुझे लिखता हूँ तुझे, मैं तन्हाइयों में अक्सर सजा कर महफ़िलें फिर सुनाता हूँ तुझे यूँ तो ये तन्हाईयाँ अब हमसाया हैं मेरी होने लगे जो वहशत तो बुलाता हूँ तुझे #शायरी #YouNme

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तेजस

आज फिर एकदम से अंतरात्मा चौंका है,
पर्यावरण दिवस है भाई, अच्छा मौका है।
कुछ करूँ कुछ लिखूँ सुबह से इसमें जुटा था,
तभी से जब AC बंद कर के बिस्तर से उठा था।
मैं भी तो प्रकृति प्रेमी हूँ ख्याल आया,
कुछ लिखने को मैं कलम उठाया।
20-30 पन्ने फाड़ा, कुछ ढंग का नहीं लिखाया,
टिश्यू पेपर से लगातार पसीना सुखाया।
जाने कितने पेड़ों को काट कर ये पेपर बने होंगे,
अंत में 'सेव पेपर सेव इन्वरामेन्ट' भी लिखने होंगे।
लेकिन पसीने का क्या किया जाए,
टिश्यू पेपर के बिना कैसे जिया जाए?
बिना AC के अब रहा नहीं जा रहा है,
पता नहीं कौन ग्लोबल वार्मिंग बढ़ा रहा है।
पर्यावरण दिवस पर लिखने में इतनी समस्या है,
लिखने से मेरा मन अब उकता सा गया है।
सोच रहा स्विमिंग पूल में एक डुबकी लगाने की,
फिर दो लाइन लिखूँगा पानी बचाने की।
चलो लिखना छोड़ के कुछ कर ही लेता हूँ,
जो कचरा जमा है उठा के नदी में बहा देता हूँ।
स्वच्छता में थोड़ा अपना भी योगदान दूँ,
'क्लीन रिवर' पर फिर थोड़ा ज्ञान दूँ।
पर्यावरण को बचाने के लिए क्या इतना नहीं काफी है?
कि मुझमें अभी भी पर्यावरण की बहुत चिंता बाकी है।

©तेजस आज फिर एकदम से अंतरात्मा चौंका है,
पर्यावरण दिवस है भाई, अच्छा मौका है।
कुछ करूँ कुछ लिखूँ सुबह से इसमें जुटा था,
तभी से जब AC बंद कर के बिस्तर से उठा था।
मैं भी तो प्रकृति प्रेमी हूँ ख्याल आया,
कुछ लिखने को मैं कलम उठाया।
20-30 पन्ने फाड़ा, कुछ ढंग का नहीं लिखाया,
टिश्यू पेपर से लगातार पसीना सुखाया।

आज फिर एकदम से अंतरात्मा चौंका है, पर्यावरण दिवस है भाई, अच्छा मौका है। कुछ करूँ कुछ लिखूँ सुबह से इसमें जुटा था, तभी से जब AC बंद कर के बिस्तर से उठा था। मैं भी तो प्रकृति प्रेमी हूँ ख्याल आया, कुछ लिखने को मैं कलम उठाया। 20-30 पन्ने फाड़ा, कुछ ढंग का नहीं लिखाया, टिश्यू पेपर से लगातार पसीना सुखाया। #विचार #पर्यावरणदिवस

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तेजस

ना रवा कहिए, ना सजा कहिए
दर्द ए दिल को ही शिफा कहिए 

दिल लगाने की सजा मिलती है
क्यों ना ऐसे शै को खता कहिए 

वो देते तो थे, वफ़ा की मिसाल
छोड़िए, उन्हें मत बेवफ़ा कहिए 

आँचल की छाँव मिली जिसकी
क्यों ना उस माँ को खुदा कहिए 

यूँ ठहर के उनका पलकें उठाना
हया कहिए उसे के अदा कहिए 

छोड़ जाए परिंदा बहार में शजर
खिजां नहीं तो और क्या कहिए

©शजर... ✍️💔 ना रवा कहिए, ना सजा कहिए
दर्द ए दिल को ही शिफा कहिए 

दिल लगाने की सजा मिलती है
क्यों ना ऐसे शै को खता कहिए 

वो देते तो थे, वफ़ा की मिसाल
छोड़िए, उन्हें मत बेवफ़ा कहिए

ना रवा कहिए, ना सजा कहिए दर्द ए दिल को ही शिफा कहिए दिल लगाने की सजा मिलती है क्यों ना ऐसे शै को खता कहिए वो देते तो थे, वफ़ा की मिसाल छोड़िए, उन्हें मत बेवफ़ा कहिए #adventure #शायरी

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तेजस

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| अश्कों में डूबी दास्तां सुन ले कोई,
दाद नहीं थोड़ी सी दुआ चाहिए।

जज़्बात दिल के उकेरे हैं गजलों में,
लिखता नहीं के मुझे सना चाहिए।

बोल दे कोई दो बोल हमदर्दी के,
रोने को इतनी सी वजह चाहिए।

अश्कों में डूबी दास्तां सुन ले कोई, दाद नहीं थोड़ी सी दुआ चाहिए। जज़्बात दिल के उकेरे हैं गजलों में, लिखता नहीं के मुझे सना चाहिए। बोल दे कोई दो बोल हमदर्दी के, रोने को इतनी सी वजह चाहिए। #शायरी #शजर

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तेजस

समझ जाना उसे तू तवील ए बयां ए नज़र से।
रह गयी जो बात अधूरी लफ्ज़ ए मुक्तसर से।।

खयालों में तेरा अक्स जब भी उभर आता है,
महक सा उठता है मेरा वजूद तेरे ही सहर से।

जो मुत्तासिर है बेपनाह, तेरे किताबी हुस्न से,
क्या शिकवा करूँ तेरी मैं भला उस क़मर से?

खिजाँ को कह दो अभी करें थोड़ा इन्तिज़ार,
के दिल चाहता नहीं फ़रार बहार के असर से।

रुत वस्ल की आयी भी तो हवाएँ दरम्यां में थी,
ये रहेगा गिला हमेशा मेरी आंखों का मंजर से।

उसके तीर ए नज़र का बनता ना क्यूँ निशाना,
के नावाक़िफ़ जो था दिल क़ातिल के हुनर से।

कोई परवाह कहाँ तखल्लुस का, ऐ मेरे दोस्त,
कभी ग़ज़ल ने की जो इल्तज़ा, उस शायर से।

यूँ ही नहीं वापस आते परिंदे परवाज़ के बाद।
कुछ तो ताल्लुक़ात रहे होंगे उनके 'शजर' से।। समझ जाना उसे तू तवील ए बयां ए नज़र से।
रह गयी जो बात अधूरी लफ्ज़ ए मुक्तसर से।।

खयालों में तेरा अक्स जब भी उभर आता है,
महक सा उठता है मेरा वजूद तेरे ही सहर से।

जो मुत्तासिर है बेपनाह, तेरे किताबी हुस्न से,
क्या शिकवा करूँ तेरी मैं भला उस क़मर से?

समझ जाना उसे तू तवील ए बयां ए नज़र से। रह गयी जो बात अधूरी लफ्ज़ ए मुक्तसर से।। खयालों में तेरा अक्स जब भी उभर आता है, महक सा उठता है मेरा वजूद तेरे ही सहर से। जो मुत्तासिर है बेपनाह, तेरे किताबी हुस्न से, क्या शिकवा करूँ तेरी मैं भला उस क़मर से? #Dreams #शायरी

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तेजस

#Main_Ladka_Hun
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तेजस

दास्तान ये मेरी नहीं, मेरे बेबसी की है।
शौक से वरना किसने ख़ुदकुशी की है?

आज भी देखो, मेरा ग़म मुझमें ही रहा,
चर्चा शहर में आज भी मेरे हँसी की है।

आज होंगे कुछ चेहरे गमगीन भी यहाँ,
ये जुर्म भी तो किसी की बेहिसी की है।

दुनियाँ को दिखा बस तबस्सुम ए लब,
ये अंजाम होती अक्सर बेक़सी की है।

दर्द दिल का जाहिर करता भी तो कहाँ,
परवाह किसे किसी की नालिशि की है?

वो जश्न मना रहे परिन्दे के परवाज का,
तवज्जोह 'शजर' पे कहाँ किसी की है? #SushantSinghRajput को समर्पित...

सुशांत सिंह 'राजपूत' को समर्पित...

दास्तान ये मेरी नहीं, मेरे बेबसी की है।
शौक से वरना किसने ख़ुदकुशी की है?

आज भी देखो, मेरा ग़म मुझमें ही रहा,

#SushantSinghRajput को समर्पित... सुशांत सिंह 'राजपूत' को समर्पित... दास्तान ये मेरी नहीं, मेरे बेबसी की है। शौक से वरना किसने ख़ुदकुशी की है? आज भी देखो, मेरा ग़म मुझमें ही रहा,

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