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दास्तान

यूं तो अक्सर डूब जाया करता था सूरज की तरह हर शाम को..!! तेरी मुलाकात ने चांद की रोशनी के बारे में बता दिया..।। पैदा हुआ हूँ एक छोटे से गॉव में लकिन सोच और जज़बा बहुत बड़ा रखता हूँ.. आया हूँ इस दुनिया में नाम कमाने और उसे कमाने की औकात रखता हूँ.. Insta -- anand_parihar_1011 Fb. -- Anand singh parihar Contact whatsapp 8120313257

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दास्तान

चलने लगी है एक हवा अच्छी कोई अच्छा लगने लगा है..
देखा नही जिसने अब तक वो अब मुस्कुरा के चलने लगा है..!!
और शैतानी है उसकी आंखो में ऐसी की दरिया सुखा और आंखो में समुंदर दिखने लगा है..।।
                    – आनंद सिंह परिहार

©दास्तान #humantouch
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दास्तान

लिखूं कुछ उस जगह के बारे में जहां मिले कुछ अपने बेगाने से..
सुरु ये किस्सा अपनी थाली से हुआ अब राते होती है बेपरवाने से..
और कुछ रिश्ते चलते नही बस अपना कह देने से..!!
उन्हें निभाना पड़ता है सच्चे याराने से..।।
             — आनंद सिंह परिहार

©दास्तान #alone
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दास्तान

उगता सूरज ढलती शाम दिन भर तेरी याद और रात तेरे नाम का जाम..
और पीने के बाद उसका हस कर रोना,उसकी यादों की व्याख्या करते सोना..!!
और गर कोई पूछे नींद में उसके बारे में बस कह देना सारे कोरे पन्ने मेरे और कलम उसके नाम..।।
                —आनंद सिंह परिहार

©दास्तान

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दास्तान

इस अपनेपन की दुनिया में चंद पराए किस्से है..!!
ये जो लोग हर वक्त अपना कहते ये उन्ही चंद के हिस्से है..।।
             – आनंद सिंह परिहार

©दास्तान

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दास्तान

लिख दू उसे या कोरा कागज़ ही रहने दू..?
तोड़ लाऊ वो फूल या उसे बाग में ही रहने दू..?
सज के जब भी निकले वो हुस्न की बला..!!
तारीफ करू लबों से उसकी या इसे भी निगाहों पे रहने दू..?
                 —आनंद सिंह परिहार

©दास्तान

10 Love

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दास्तान

हवा है कभी भी रुख बदल जायेगी..!!
जाने की बात करती है फिर तो कभी भी चली जायेगी..!!
उसकी आंखों में झांक के देखो लेखक ना जाने की बात बिन बोले ही कह जायेगी..।।
                  —आनंद सिंह परिहार

©दास्तान

10 Love

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दास्तान

कुछ होते है ना जो साथ नही होते लेकिन हर वक्त साथ होते है तो लेखक लिखता है की..—
       मसला ये नही की तुम हर वक्त हर रोज याद आते हो..!!
      सुकू ये की तुम जब भी आते हों जहन में बस जाते हो..।।
                  — आनंद सिंह परिहार

©दास्तान

8 Love

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दास्तान

कुछ है जो लेखक लिखता है —
       भीड़ के शोर में गर सुनाई न दे आवाज तेरी..
        रात के अंधेरे में खुशबू से खोज लूंगा परछाई तेरी..
        और गर गिरने लगे इस ठंड के मौसम में ओस की कुछ बूंदे..
        ओढ़ लेना मुझे समझ के अपनी चादर..!!
       आखिर अलग हुए है जिस्म मगर जान तो अब भी बाकी है मुझमें तेरी..।।
                 — आनंद सिंह परिहार

©दास्तान

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दास्तान

समय हो गया उन रास्तों में गए अंजाम मालूम है मगर जाने को जी चाहता है तो लेखक लिखता है की..
           तुम्हे लिखूं या तुम्हारी वफ़ा लिखूं..??
           दर्द लिखूं या उस दर्द की हर दवा लिखूं..??
           ये टूटा दिल है बंजारे का..!!
           इसे किसी और को दू या मैं खुद रखूं..??
                     —आनंद सिंह परिहार

©दास्तान

9 Love

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दास्तान

तुम्हारा यूं बदल जाना कुछ तो बात रही होगी..!!
कुछ तो लफ्ज़ रहे होगे कुछ तो अल्फाज रही होगी..!!
और कहते हैं हर दर्द छुपा लेते है हम..!!
तो ये पन्नो में स्याही का दर्द बेशक ही किसी और की आस रही होगी..।।
                 —आनंद सिंह परिहार

©दास्तान

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