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Anuj Ray
White प्यार का इज़हार " ख़ुद ही तड़प के मछलियों की तरह ,जान दे देंगी। ये तो बताओ पहले, क्या मिलेगा तुमसे," प्यार के इज़हार में"। झूठे ख़्वाब ,झूठे प्यार के वादे, बीत जाएगी सारी उम्र, तेरे इंतज़ार में । क्या भरोसा है किसी दिन, दिल भर गया तो चल दोगे ,छोड़के मझधार में। ©Anuj Ray # प्यार का इज़हार "
Anuj Ray
इज़हार करके देखो ना" कच्ची उम्र की अमिया,समय की डाल पर धारी धारी पक जाए ना कहीं। इससे पहले किसी से मोहब्बत में लड़ा के नैना , इज़हार करके देखो ना। हसीं जवां,जवान रुत हर किसी की जिन्दगी में यूं रोज-रोज नहीं आती। झूठ ही सही दो-चार दिन के लिए, किसी अजनबी से प्यार करके देखो ना। ©Anuj Ray # इज़हार करके देखो ना"
Shashi Bhushan Mishra
White प्यार करके देखो, इज़हार करके देखो, उल्फ़त के तराजू में, इक़रार भरके देखो, रखेंगे याद तुमको, उधार करके देखो, यादों में बावरा दिल, बेक़रार करके देखो, मेरी तरह मुहब्बत, दिलदार करके देखो, लोग बा-बदल जाएंगे, इन्कार करके देखो, रहमत ख़ुदाई तुझपे, दमदार करके देखो, 'गुंजन' रुहानियत का, तलबगार करके देखो, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई ©Shashi Bhushan Mishra #इज़हार करके देखो#
Shiv gopal awasthi
ऐसा पढ़ना भी क्या पढ़ना,मन की पुस्तक पढ़ न पाए, भले चढ़े हों रोज हिमालय,घर की सीढ़ी चढ़ न पाए। पता चला है बढ़े बहुत हैं,शोहरत भी है खूब कमाई, लेकिन दिशा गलत थी उनकी,सही दिशा में बढ़ न पाए। बाँट रहे थे मृदु मुस्कानें,मेरे हिस्से डाँट लिखी थी, सोच रहा था उनसे लड़ना ,प्रेम विवश हम लड़ न पाए। उनका ये सौभाग्य कहूँ या,अपना ही दुर्भाग्य कहूँ मैं, दोष सभी थे उनके लेकिन,उनके मत्थे मढ़ न पाए। थे शर्मीले हम स्वभाव से,प्रेम पत्र तक लिखे न हमने। चंद्र रश्मियाँ चुगीं हमेशा,सपनें भी हम गढ़ न पाए। कवि-शिव गोपाल अवस्थी ©Shiv gopal awasthi कविता
Jagdish Pant
फूल देई का त्यौहार था, मैं फिर भी बैठा अकेला था । चारों तरफ़ हर्षोल्लास था, मैं अकेला बैठा निराश था । जब मैने चारों तरफ देखा , तब पता चला कि मैं गांव से दूर किसी शहर के भिड़ में बैठा अकेला उदाश था ।। ✍️ Jagdish Pant आज फूलदेई के पर्व पर एक कविता मेने लिखि ।
एस पी "हुड्डन"
Nature Quotes इज़हारे इश्क करने एक जनाब आए थे, ना महंगी निशानियां ना गुलाब लाए थे। हाथ में फूल छोटा सा दिल में अरमान बड़े थे, नज़र झुकाए थोड़े से घबराए नादान खड़े थे। हम उनकी इस मुहब्बत की क़ीमत क्या लगाते, मासूमियत और मुफलिसी को क्या आज़माते। हमने पास अपने उनको तसल्ली दे कर बिठाया, हाथों में हाथ दे कर उनका थोड़ा हौंसला बढ़ाया। दुनियां की कोई चाहत इज्ज़त से अज़ीज़ नहीं होती, हम उनको ठुकरा लेते अगर उनमें तमीज़ नहीं होती। ©एस पी "हुड्डन" #इज़हार