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HINDI SAHITYA SAGAR
HINDI SAHITYA SAGAR
"आशा व्यक्ति को ऊर्जित; दिलासा साहस तो, उत्साहवर्धन मरणासन्न को जीवित कर सकता है, निराशा फिर से उठने का अवसर देती है किंतु हताशा 'व्यक्ति' को मार ही देती है।" -शैलेन्द्र राजपूत (#हिंदी_साहित्य_सागर) उन्नाव, उत्तर-प्रदेश 21.01.2023 ©HINDI SAHITYA SAGAR "आशा व्यक्ति को ऊर्जित; दिलासा साहस तो, उत्साहवर्धन मरणासन्न को जीवित कर सकता है, निराशा फिर से उठने का अवसर देती है किंतु हताशा 'व्यक्ति'
HINDI SAHITYA SAGAR
"आशा व्यक्ति को ऊर्जित; दिलासा साहस तो, उत्साहवर्धन मरणासन्न को जीवित कर सकता है, निराशा फिर से उठने का अवसर देती है किंतु हताशा 'व्यक्ति' को मार ही देती है।" -शैलेन्द्र राजपूत (#हिंदी_साहित्य_सागर) उन्नाव, उत्तर-प्रदेश 21.01.2023 https://youtube.com/@hindisahityasagar5401 ©HINDI SAHITYA SAGAR "आशा व्यक्ति को ऊर्जित; दिलासा साहस तो, उत्साहवर्धन मरणासन्न को जीवित कर सकता है, निराशा फिर से उठने का अवसर देती है किंतु हताशा 'व्यक्ति'
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दिन गुलाबी, रातें गुलाबी, सुबह गुलाबी, शामें गुलाबी। ग़र तू हमसफ़र हो तो, ज़िंदगी की राहें गुलाबी। तेरा खिलखिलाकर हँसना, हँसकर बातें करना, गले लगाना, गले लगना... लगकर गले, जीभर के रोना, आँसुओं से, तन-मन, गीला करना.. सिसकना, रुँधे गले से, भर्यायी आवाज़ में, शिकायती लहज़े में, गुस्से से आँखे दिखाना, अपना हक़ जताना, समझना, समझाना, मनाना, और फिर, मान जाना, सब याद है... सब याद है... ....(क्रमशः) (HAPPY ROSE DAY) -शैलेन्द्र राजपूत (#हिंदी_साहित्य_सागर) उन्नाव, उत्तर प्रदेश 07.02.2023 ©HINDI SAHITYA SAGAR #Rose #roseday #Love #poem दिन गुलाबी, रातें गुलाबी, सुबह गुलाबी, शामें गुलाबी। ग़र तू हमसफ़र हो तो, ज़िंदगी की राहें गुलाबी। तेरा खिलखिलाक
कवि अनूप दीक्षित राही
हमे कदम - कदम पर गहरी खाईयाँ मिली। जब भी मिला हमे कुछ बस तनहाईयाँ मिली।। - मिलने की उनसे आरजू बस आरजू ही रह गयी। हाँ अगर कुछ भी तो फकत रुसवा
HINDI SAHITYA SAGAR
कविता : "तुम आए" काली रात के अंधेरे, जीवन भर थे घेरे, तुम आए, और सुबह हो गयी.... तमाम रातें जो, काटी थी अकेले, कितने ख़्वाब, बुने,उधेड़े गए थे। जाने, अनजाने जाने कितने? डर और मायूसी, दिल में ज़ब्त किए हुए थे। तुम आये, नीरवता टूटी, तंद्रा जागी, सुबह हो गयी। ज़िंदगी फिर से, रोशन हो गयी। https://youtube.com/@hindisahityasagar5401 ©HINDI SAHITYA SAGAR https://youtube.com/@hindisahityasagar5401 कविता : "तुम आए" काली रात के अंधेरे, जीवन भर थे घेरे, तुम आए, और सुबह हो गयी....
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कविता : "कब की छूट गईं वो राहें" आज सुबह वो घर से निकले, पहन के हाँथों में दस्ताने, दस्तानों में भी ठण्डे थे, कंपित हस्त हिमानी पाले। कोहरा छाया था सड़कों पर, पथ भी नजरों से ओझल था। तन भी ठिठुर रहा था थर-थर, मन भी बेहद बोझिल था। अंगुश्ताने भी पहने थे, ऊनी-अच्छे अंगुश्ताने। न ही ठंड अधिक थी, फिर भी ठंडी थी बाहें। ठंडी थी बस बाहें, या फिर पूरा तन ठंडा था, तन ठंडा था, मन ठंडा था, या फिर जीवन ही ठंडा था। उसके मन को जान न पाए, क्यों हम थे इतने अनजाने? मन मेरा उद्विग्न हो उठा, क्या थे हम इतने बेगाने? शायद! उसकी सिसकारी से, उर में जलती चिनगारी से, पलकों की एकटक चितवन से, शायद अब तक थे अनजाने। जिन पर चलकर हमें था जाना, कब की छूट गईं वो राहें। अब तो केवल शेष बची थी, दर्द भरी सिसकी और आहें। -✍🏻शैलेन्द्र राजपूत उन्नाव, उत्तर-प्रदेश 15.01.2023 ©HINDI SAHITYA SAGAR कविता : "कब की छूट गईं वो राहें" आज सुबह वो घर से निकले, पहन के हाँथों में दस्ताने, दस्तानों में भी ठण्डे थे, कंपित हस्त हिमानी पाले। कोहर
RUPAL SINGH 'भारतीय नारी'
कैसे कैसे सामना न होता मुश्किलों से गर कभी भला क़लम से मोहब्बत मैं करती कैसे पंख कुतरे न होते ज़माने ने गर कभी भला हौंसलों की उड़ान म
RUPAL SINGH 'भारतीय नारी'
मेरे विचार होती है दुआ में वो ताकत तकदीर बदल जाती है, देते है सहारा भोले तब जब दुनिया मुकर जाती है। रिश्ते-नाते पैसा-रुपया ये तो बस जीवन का भ्रम है, जब
©Kalpana'खूबसूरत ख़याल'
Thank you 💐 मेरा बचपन से ही सपना था कि मेरी कविता अखबार में आये और आज उस अखबार में आई जो मेरे घर आता है। ♥️कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती मोटू क