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Mihir Choudhary
तुमने तो हँस के पूछा था बोलो न कितना प्रेम है बोलो कैसे मैं बतलाता बोलो ना कैसे समझता जब अहसास समंदर होता है तो शब्द नही फिर मिलते हैं उन बेहिसाब से चाहत को कैसे कैसे मैं बतलाता बोलो न कैसे दिखलाता बोलो न कैसे समझता तब भी हिसाब का कच्चा था अब भी हिसाब का कच्चा हूँ जो था वो ना मेरे बस का था अब तो जो हालात हुए उनसे तो मैं अब बेबस हूं अब अंदर -अंदर सब जलता है लावा जैसा सा कुछ पलता है धीमे धीमे कुछ रिसता है कुछ टूट-टूट के पीसता है नस-नस मैं जैसे कुछ खौलता है धड़कन बिजली सा दौड़ता है अब बेहिसाब ये यादे है बस बेहिसाब ये चाहत है बोलो क्या वो प्रेम ही था बोलो न क्या ये प्रेम ही है मिहिर... बिरहा
Anuj Ray
" बिरहा की रातें" न धुंआ न कहीं ,आग जला करती है, बिरहा की रातें यूं ही ,खामोश जला करती हैं जलता है बदन आग की लपटों में,दो बूंद की उम्मीद लिये, बेबसी हाथ मला करती है। फागुन का महीना हो, या घनी सावनी रातें, पिया मिलन की आस में, यूं ही ख़ला करती हैं। ©Anuj Ray #बिरहा की रातें
रजनीश "स्वच्छंद"
तमद्वार का दीपक।। मैं तमद्वार का दीपक,रौशन कुछ हिस्सा तो कर जाऊंगा। रवि-रश्मि का तेज लिए,अमर कुछ किस्सा तो कर जाऊंगा। तू मूक रहा, कर बांधे खड़ा,निजशब्दों में तेरा हुंकार भरूंगा। कंपित से तेरे अधरों पर,बन शब्द, नेपथ्य से पुकार करूँगा। धीर है तू हीमवर सा अडिग,शोणित में धार समेटे यमुना गंगा की। प्रसार तेरा बटवृक्ष सा है,ऊंचाई, अम्बर छूती कंचनजंगा सी। त्वरित गति, असाध्य बल,भुजाओं में फड़कता, असीमित सागर अनंत। तू अनजान, हनुमान है,मैं ले लेखनी बाल्मीक, शब्दों को बना दूँ जामवंत। तू महज़ मनुज का भेष नही,राम सा शील, अल्हड़ कृष्ण सा, दधीचि का अनुयायी है। एटलस सा है कंधा तेरा,तू इस जग के उत्थान-पतन उदय-अस्त का उत्तरदायी है। तू इस कवि की धृष्टता,एक बागी, स्वजन का रखवाला है। मेरी कविता भी जिसपे नाज़ करे,तू मदमस्त, बेखौफ, एक मतवाला है। ©रजनीश "स्वछंद" #NojotoQuote तमद्वार का दीपक।।।
"Kumar शायर"
हर किसी को देखो यहाँ कुछ ना कुछ छुपाता है, गुमनाम अंधेरो में साजिशों का दीपक जलाता है, डूबती है नईया ज़िन्दगी की जब तो तुफानो में क्यों छटपटाता है, बिना मल्लाह खुद को माझी समझ समंदर में जो उतर जाता है, किनारों की राहे भी कही खो जाती है, जब बीच भवर में खुद वो डूब जाता है, जो हो रहा है उसे होने दो सोते को क्यों जगाता है, फिर मौका नही मिलता सँभलने का, चंद सिक्को की आगोश में जो खुद को खुदा समझ इतराता है.✍️✍️✍️✍️ Written:- By Umesh kumar #साजिशों का दीपक
पवित्रा राजवंश
मन का दीप घोर अंधेरा हो पर भी एक दीपक जलाए रखना हताशा निराशा ना उम्मीदों की दौर में भी मन का आशाओं का दीपक जलाए रखना मन का दीपक