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Sanjay Sharma Saras
तूँ मेरे घर तो नहीं आया दिल में महके है, तूँ कोई इत्र है,संदल है के’ लोबान !बता ? © संजय शर्मा 'सरस' 9929632496/9354352919 शेर - संजय शर्मा 'सरस'
Sanjay Sharma Saras
तुम्हारी चुप्पियाँ अक़्सर हमें मायूस करती हैं, समंदर हो तो तुम मचलो हमें बस डूब जाने दो। © संजय शर्मा 'सरस' शेर - संजय शर्मा 'सरस'
Sanjay Sharma Saras
सभी को साथ ले'चलना ही ख़ूबी है रवायत की, भले ख़ुद टूट जाना,पर किसी का हाथ ना छूटे। © संजय शर्मा 'सरस' 9929632496 शेर - संजय शर्मा 'सरस'
Sanjay Sharma Saras
शायद किसी के लब पे मेरी शायरी सजे, ख़ुशकिस्मती मेरी कि जमीं दे दी आपने। © संजय शर्मा 'सरस' 9929632496 शेर- संजय शर्मा 'सरस'
Sanjay Sharma Saras
दुनियां से जो ज़ख्म छिपाया करते हैं, तन्हाई में सच है, नुमाया करते हैं। ऊंचे पेड़ नहीं कहते, हम झाड़ी हैं, ठंडी छांव में आओ साया करते हैं। जाने कौन जुलाहे ने बुन दी चादर, ओढ़ रात को दिन में बिछाया करते हैं। बचपन का किस्सा गुड्डे-गुड़िया का खेल, नित जीवन का ब्याह रचाया करते हैं। क्या जाने उनके कदमों की आहट हो, हम जिनकी कुंडी खटकाया करते हैं। वो सतयुग की बातें थीं,अब कलयुग है, जो बोया है वही तो पाया करते हैं। स्वप्न में आ जो हमसे हंसकर बात करें, जब मिलते हैं, क्यों शरमाया करते हैं। सुख-दुख धूप और छाया ही मानों, ये जीवन में आया-जाया करते हैं। जग की बातें सुनी,ना दिल की मानी है, ऐसे फ़रिश्ते ही पछताया करते हैं। जिनकी ख़ातिर लहू ज़िगर का दे डाला, 'सरस' दोस्त वो कम बतलाया करते हैं ©Sanjay Sharma Saras ग़ज़ल - संजय शर्मा 'सरस'
Sanjay Sharma Saras
ज़माने भर के सतानेवालों मुझे किसी से गिला नहीं है, मैं जानता हूँ मुहब्बतों का रहा अज़ल से सिला यही है। जो पास मेरे था दे के ख़ुश हूँ किसी जनम का जो क़र्ज़ उतरा, मगर चुका दे कोई मेरा भी जो माँगता हूँ मिला नहीं है। © संजय शर्मा ‘सरस’ 9929632496 हिंदी मुक्तक - संजय शर्मा 'सरस'
Sanjay Sharma Saras
रूहें अज़ल से इश्क़ को ढूंढ़े है आज तक, ज़िस्मों की भूख ने उसे पाने नहीं दिया। ©संजय शर्मा 'सरस' 9929632496 शेर - संजय शर्मा 'सरस'
Sanjay Sharma Saras
जितना जिसका भाग है , देकर हर्षित होय, जो पाकर तुमसे गया,हुआ ऊऋण क्यों रोय। © संजय शर्मा 'सरस' 9929632496 दोहा - संजय शर्मा 'सरस'
Sanjay Sharma Saras
मैं अपने कर्म में जी-जान से रत हूँ मेरे ईश्वर, सफलता या विफलता हो, तेरे खाते में जानी है। © संजय शर्मा 'सरस' 9929632496 कविता - संजय शर्मा 'सरस'