भटकता क्यों फिरे बन में
अरे नादान परदेसी
वो टूटी आम कि डाली
वो रोया बागों का माली बागीचा हों गया खाली।अरे नादान परदेसी......
भटकता क्यों फिर #UnhideEmotions
read more
Deep voice ...
काँटा हूँ मैं जिसे चुभ जाता हूँ उसी का हो जाता हूँ, फूल नहीं हूँ जिसे हर भंवरा चूमता फिरे